मृत्यु के सत्य को हम सभी जानते हैं फिर भी इस सच से हम दूर भागना चाहते हैं
मृत्यु हम सभी के जीवन का सत्य है और इस बात को हम सभी जानते हैं, लेकिन फिर भी इस बात को झुठलाना चाहते हैं औऱ इस बात से भागना चाहते हैं। हमें पता है कि एक दिन हम सब मर जाएंगे, कहीं ना कहीं, किसी ना किसी दिन फिर भी हम हमेशा मौत की बात सुनकर डर जाते हैं। आपको ये बात हम कहानी के तौर पर समझाते हैं।
राजा को हो गई गंभीर बीमारी
बहुत पहले के समय में एक बड़े प्रतापी राजा हुआ करते थे। एक बार उन्हें कोई गंभीर रोग हुआ। तमाम तरह के इलाज चलने लगे। राजवैद्य ने बताया कि किसी भी इलाज का कोई असर नहीं होगा औऱ कुछ ही दिनों में उनकी मृत्यु हो जाएगी। राजा को अपनी मौत के बारे में पता चला तो वो बेहद दुखी रहने लगे। उनके पास इतनी धन संपदा थी, सभी तरह की सुविधाएं थीं बावजूद इसके वो अपना इलाज नहीं करा पा रहे थे। इसी बीच उन्हें पता चला कि एक जंगल में तपस्वी रहते हैं और उनके पास सारी समस्या का हल है।
राजा को जैसे ही ये बात पता चली वो तुरंत उस तपस्वी के पास गए। राजा ने तपस्वी को बताया कि उनके शरीर में गंभीर रोग हुआ है। तपस्वी ने सारी बातें सुनी और कहा कि मेरे पास तुम्हारी समस्या का इलाज है, मैं तुम्हें कहानी सुनाता हूं, इसी कहानी में तुम्हारी समस्या का सारा समाधान छिपा हुआ है। तपस्वी ने जी ने कहानी सुनाना शुरु किया।
उन्होंने एक राजा की कहानी सुनाई। एक राजा जंगल में शिकार करने गया, लेकिन जंगल में रास्ता भटक गया। इसके बाद तेज बारिश होने लगी। भयानक जानवरों की आवाज आने लगीं। उसके साथ के सारे लोग पीछे छूट गए थे और राजा बिल्कुल अकेले था। सामने उसे एक झोपड़ी दिखाई दी। राजा ने देखा कि उस झोपड़ी में एक बहेलिया रहता है जो चल फिर नहीं सकता था। वो सारा मल मूत्र अपने झोपड़े में ही करता है। झोप़ड़े में ही सारा मांस इक्ट्ठा है। वो झोपड़ी बहुत गंदी थी, अंधेरी थी और उसमें से बहुत दुर्गंध आती थी। वो किसी राजा तो क्या आम इंसान के लिए भी रहने लायक नहीं था।
तपस्वी ने राजा को बताया समस्या का हल
राजा की मजबूरी थी। उसने बहेलियो को बताया की उसके पास अभी कोई जगह नहीं हैं। उसने कहा कि वो रात वहीं रुकना चाहता है। बहेलिया ने कहा कि आश्रय की लालच में बहुत सारे लोग यहां आते हैं, लेकिन यहां से जाते नहीं है। इस झोपड़ी की गंध उन्हें भा जाती है कि वो इसे छोड़ना नहीं चाहते है, इसलिए मैं आपको यहां ठहरने की आज्ञा नहीं दे सकता।
राजा ने बहेलिये के सामने कड़ी प्रतिज्ञा की कुछ भी हो जाए वो सुबह तक उस जगह को छोड़कर चला जाएगा। सुबह जब राजा उठा तो झोपड़ी की बदबू उसे अच्छी लगने लगी थी। राजा वहीं रहने का विचार करने लगा। ये बात बहेलिया को पता चली तो भड़क गया औऱ राजा को भला बूरा कहने लगा।
इतनी कथा सुनाने के बाद तपस्वी ने राजा से पूछा- क्या राजा को उस स्थान पर हमेशा के लिए रहना चाहिए था, या इसके लिए झंझट करना सही था? इस राजा ने कहा कि तपस्वी जी वो कौन सा मूर्ख राजा था जो ऐसी गंदी झोपड़ी में रहने का हठ कर रहा था, तपस्वी ने कहा कि वो मूर्ख राजा तो आप ही हैं। इस मल मूत्र की गठरी यानी यए शरीर जिसमें आपकी आत्मा को रहना आवश्यक था, वह अवधि तो अब समाप्त होने वाली है, लेकिन आप भी इसे पकड़े रहने की हठ कर रहे हैं। क्या ये आपकी मूर्खता नहीं हैं? राजा को सारी बात समझ आ गई और उसने उदास रहना छोड़ दिया।
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