उत्तराखंड का ये मंदिर है श्रापित, शिवलिंग होने के बाद भी लोग नहीं करते पूजा, ये है वजह
अक्सर पूजा पाठ औऱ भगवान के दर्शन करने के लिए हम मंदिर जाते हैं। कई बार जब हमारा मन भटकता है या घबराता है तो हमें भगवान याद आते हैं और उन्हें याद करने में दिक्कत होती है तो हम मंदिर ही चले जाते हैं। ऐसे में क्या आप मान सकते हैं कि कोई ऐसा मंदिर भी हो सकता है जो शापित है। सुनने में आपको अजीब लग सकता है, लेकिन उत्तरखंड में एक मंदिर है जिसे देवालय कहते हैं उसे अभिशप्त यानी की श्रापित माना जाता है। ऐसा मानते हैं कि जो लोग यहां पूजा करते हैं उनका जीवन बर्बाद हो जाता है। आपको बताते हैं कि ये मंदिर कहा हैं और क्यों श्रापित है।
मूर्तिकार ने एक हाथ से बनाया मंदिर
ये श्रापित मंदिर भगवान शिव का मंदिर है और पिथौरागढ़ से करीब 6 किमी दूर बल्तिर ग्राम सभा में स्थित है। इस मंदिर को एक हथिया देवाल के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को श्रापित क्यों माना जाता है इसके पीछे एक कहानी है। इस गांव में बहुत साल पहले एक मूर्तिकार रहता था। जो पत्थरों को तराश कर उन्हें मूर्ति का रुप देता था। उसकी काम की हर जगह तारीफ होती थी। वो अपने काम में इतना मग्न रहता था।
एक दिन किसी दुर्घटना में उसका एक हाथ खराब हो गया। एक मूर्तिकार के लिए उसका हाथ सबसे प्रिय होता है क्योंकि इसी से वो अपनी अद्भभूत रचना को अंजाम देता है। मूर्तिकार का उत्साह फिर भी कम नहीं हुआ और वो अपने काम में लगा रहा। वो अपने एक हाथ के सहारे ही मूर्तियों का निर्माण करें। हालांकि इस घटना के बाद लोग उसे ताना मारने लगे। आते जाते हर कोई उसका मनोबल गिराने का प्रयास करता। सभी उससे कहते की कोई एक हाथ से मूर्ति कैसे बना सकता है।
मूर्तिकार अपने काम मे तनमयता से लगा रहा, लेकिन एक पल ऐसा आया जब वो उनकी बातें सुन सुनकर परेशान हो गए। उसकी सहन शक्ति समाप्त हो गई औऱ उसने निश्चय किया की वो अब गांव में नहीं रहेगा। रात के समय ही वो मूर्तियां बनाने का जरुरी सामान लेकर गांव के दक्षिणी छोर पर निकल गया। गांव के इस छोर पर एक बहुत बड़ी चट्टान थी।
शिवलिंग है विपरीत दिशा
रात भर मूर्तिकार चट्टान को काटता रहा औऱ अंत में उसने देवालय बना लिया। शौच जाने के लिए गांव वाले आए तो देखा कि चट्टान की जगह एक मंदिर दिखा। रातों रात मंदिर बना देख सभी गांव वाले हैरान रह गए। मूर्तिकार लोगों के सामने नहीं आया, लेकिन लोग समझ गए की इतनी तत्परता से ऐसा काम तो वही कर सकता है।
मंदिर सिर्फ एक ही हाथ से बना था इसलिए इसे हथिया देवाल मंदिर कहा जाने लगा। जब पंडित मंदिर के अंदर पूजा करने के लिए गए तो देखा कि शिवलिंग का अर्घा विपरीत दिशा में है जिससे यहां पूजा करना अशुभ माना गया। ऐसा कहा जाता है कि जो भी इस देवालय में आकर पूजा करता है उसका जीवन बर्बाद हो जाता है और उसे कोई सुख समृद्धि नहीं मिलती। यहां पर पूजा करने तो लोग नहीं आते, लेकिन मुंडन आदी संस्कार के लिए लोग पास के तालाब में आते हैं।
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