जानें होलिका दहन पर कब तक है भद्रा, इस काल में नहीं करना चाहिए होलिका दहन
होली का त्यौहार बेहद ही नजदीक है और इस साल होली 21 मार्च को मनाई जाएगी। इससे पहे 20 मार्च को होलिका दहन होंगा। होली की पवित्र अग्नि में जौ की बाल और शरीर पर लगाए गए सरसों के उबटन को डालते हैं। ऐसा माना जाता है की शरीर की गंदगी और सारी नकारात्मक शक्ति अग्नि में जलकर भस्म हो जाएगी औऱ साथ ही ऐसा करने से घर में खुशियां आती है। होलिका दहन भद्रा में कभी नहीं होता है।इस वजह से 20 मार्च को सुबह 10.45 से लेकर रात 8.59 मिनट तक भद्रा काल बना रहेगा और होलिका दहन 9 बजे किया जाएगा।
होलाष्टक में नहीं करना है शुभ काम
होली के अगले दिन दुल्हंडी का पर्व मातंग योग में मनाया जाएगा। इसमें पूर्वा फागुनी और उत्तरा फागुनी नक्षत्र पड़ रहे हैं। स्थिर योग होने के कारण होली का शुभ पर्व माना जाता है। फागुन शुकल पक्ष में आठ दिनों के होलाष्टक 14 मार्च को लगेंगे और फाग के दिन समाप्त होंगे। इन आठ दिनों में किसी भी प्रकार का कोई शुभ काम नहीं किया जाता है। फिर होलिका दहन होता है। अगले दिन होली मनाते है और इस दिन एक दूसरे को रंग गुलाल, अबीर लगाकर एक दूसरे को होली की बधाई देते हैं।
होलिका दहन की कथा के बिना होली का त्यौहार अधूरा है।हम सभी को पता होना चाहिए की आखिर हम होली का त्यौहार क्यों मनाते हैं। सतयुग में एक राजा था हिरण्यकश्यप। वो भगवान ब्रह्मा की तो पूजा करता था, लेकिन विष्णु भगवान से उसे नफरत थी क्योंकि उन्होंने उसके भाई को मारा था। उसने अपनी पूरी प्रजा को आज्ञा दी थी की कोई भी भगवान विष्णु के नाम का जप नहीं करेगा बल्कि उसे ही अपना राजा मानेगा।
अग्नि में बैठी होलिका प्रहलाद के संग
दूसरी तरफ उनका खुद का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। वो अपने पिता से कहीं ज्यादा भगवान विष्णु को मानता था। राजा ने कई बार अपने पुत्र को मारने की कोशिश की थी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता था। राजा की बहन थी होलिका जिसे आग में भी ना जलने का वरदान प्राप्त था। राजा ने कहा कि अपने भतीजे प्रहलाद को लेकर अग्नि मे बैठ जाए। वो तो जलेगी नहीं , लेकिन प्रहलाद मारा जाएगा।
होलिका ने अपने भतीजे प्रहलाद को गोद में बैठा लिया और अग्नि जला दी। उसे वरदान तो था, लेकिन दुराचारी और अधर्म करने के लिए भगवान ने उसे दंडित किया। होलिका अग्नि में जल गई और प्रहलाद बच गया। इससे बुराई के ऊपर अच्छाई जीत मिली। उसी समय के बाद से लोग होलिका दहन करते चले आ रहे हैं।
होलका का एक और अर्थ होता है। माना जाता है कि भुना हुआ धान्य या अनाज को संस्कृत में होलका कहते हैं और ये होलिका शब्द होलका से लिया हुआ है। इस अनाज से हवन किया जाता है औ फिर इसी अग्नि की राख को लोग अपने माथे पर लगा लेते हैं जिससे उनके ऊपर कोई बूरा साया ना पड़े। इस राख को भूमि हरि के रुप में भी जाना जाता है। फाल्गुन की संध्या को अग्नि जलाई जाती है और रक्षोगण के मंत्र का उच्चाण किया जाता है। इसमें लोग अग्नि देवता को प्रसाद भी चढ़ाते हैं। अगले दिन रंग खेलकर सारी बुराईयां एक दूसरे की माफ कर देते हैं।
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