इन 3 चीजों का अपमान करना मतलब ईश्वर को दुख पहुंचाना होता है, नष्ट होता है मनुष्य का सारा धन
एक भला इंसान अपनी जिंदगी में बहुत फूंक-फूंककर कदम रखते हैं और रुपये के साथ-साथ इज्जत भी कमाते हैं. हमेशा अपनी इज्जत की बात करने वाले उन चीजों से भी बचना चाहते हैं जिनसे उनका अर्जित किया हुआ धन भी हमेशा बना रहे. नारदपुराण और धर्म शास्त्रों की कई पुस्तकों में कुछ ऐसे कामों का वर्णन हुआ है जिसमें मनुष्य के द्वारा किए गए सारे पुण्य कर्मों का फल एक पल में समाप्त हो जाता है. ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है फिर वो अमीर हो या फिर गरीब इसलिए हमें कुदरत की बनाई हर चीज का सम्मान करना चाहिए खासकर मानव जाति को इन 3 चीजों का अपमान करना मतलब ईश्वर को दुख पहुंचाना होता है, इसके अलावा उसका क्या-क्या खोता है उसे इसकी कल्पना भी नहीं होती.
इन 3 चीजों का अपमान करना मतलब ईश्वर को दुख पहुंचाना होता है
गाय का अपमान
इस प्राकृति की संरचना में गाय को ना सिर्फ मनुष्य ने बल्कि देवताओं ने भी खास दर्जा दिया है. पुराणों में गाय को नंदा, सुनंदा, सुरभि, सुशीला और सुमन कहा गया है और ऐसा माना जाता है कि कृष्ण कथा में शामिल सभी पात्रों में भी गाय का विशेष स्थान है. गाय को कामधेनु और गौ माता माना गया है, गाय के द्वारा ही मनुष्य को दूध, दही, घी, गोबर-गोमूत्र के रूप में प्राप्त होता है. सृष्टि की संरचना पंचभूत से हुई है और यह पिंड ब्राह्मांण, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश पंचतत्वों से मिलकर बना है और इन पंचतत्वों का पोषण और शोधन गोवंश से प्राप्त पंच तत्वों से होता है इसलिए गाय को पंचभूत की मां भी कहा गया है. देवीय पुराण और हिंदू धर्म के सभी शास्त्रों में लिखा है कि गाय का अपमान करने वाले सीधे ईश्वर का अपमान करते हैं और इसका प्रायश्चित करने का मौका भी मनुष्य को नहीं करने को मिलता है.
तुलसी का पौधा
विष्णुपुराण और हिंदू धर्म में ये बात वर्णित है कि तुलसी का अपमान करना ईश्वर के अपमान के समान होता है. तुलसी का सबसे बड़ा अपमान है कि घर में तुलसी का पौधा रखकर भी उसकी पूजा नहीं करना. ऐसा माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वह स्थान देवीय दृष्टि से पूजनीय स्थान होता है और उस घर में बीमारी का आगमन नहीं होता है. धार्मिक कार्यों में पूजी जाने वाली तुलसी को विज्ञान की दृष्टि से देखो तो इससे ज्यादा औषधीय पौधा और कोई नहीं होता.
गंगाजल
हिंदू धर्म में गंगा का अवतरण स्वग से सीधे पृथ्वी पर हुआ और ऐसा माना जाता है कि गंगा नदी के अंदर खुद माता गंगा निवास करती हैं. विष्णुपुराण और शिवपुराण में ऐसा बताया गया है कि जो व्यक्ति गंगा का अपमान करता है तो उसके द्वारा किए गए सभी पुण्य कर्मों के फल नहीं मिलते है. इसलिए पवित्र गंगाजल का सम्मान एक मां की तरह की जानी चाहिए. अनेक धार्मिक अनुष्ठानों में भी उसका प्रयोग होता है.