शिव कथा: क्रोधित होकर महादेव ने इस जगह खोली थी अपनी तीसरी आंख, यहां अपने आप खौलता है पानी
शिवजी की कल्पना एक ऐसे देव के रूप में की जाती है जो कभी संहारक तो कभी पालक होते हैं. भस्म, नाग, मृग चर्म, रुद्राक्ष आदि भगवान शिव की वेष-भूषा व आभूषण हैं. इन्हें संहार का देव भी माना गया है. सभी जानते हैं कि जब महादेव क्रोधित होते थे तो अपनी तीसरी आंख खोलते थे. लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख कहां खोली थी और वह स्थान कहां पर स्थित है? हिंदू धर्म के बारे में बहुत से किस्से और कहानियां प्रचलित हैं और आज महाशिवरात्रि के पावन दिन पर ऐसी ही एक कहानी हम आपके लिए लेकर आये है. यह कहानी हिमाचल प्रदेश के मणिकर्ण को लेकर बहुत मशहूर है. इसके बारे कहा जाता है कि यहां भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख खोली थी.
कहां है मणिकर्ण
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू से 45 किलोमीटर की दूरी पर है मणिकर्ण. यहां हिंदू और सिख धर्म के ऐतिहासिक धर्म स्थल हैं. मणिकर्ण से पार्वती नदी बहती है जिसके एक तरफ है शिव मंदिर और दूसरी तरफ स्थित है गुरु नानक का ऐतिहासिक गुरुद्वारा.
क्रोधित होकर खोला तीसरा नेत्र
प्रचलित कहानी के मुताबिक यहां भगवान शिव ने क्रोधित होकर अपना तीसरा नेत्र खोल दिया था. दरअसल माता पार्वती के कान के आभूषण क्रीड़ा करते वक़्त पानी में गिर कर पाताल लोक पहुंच गए थे, जिसके बाद भगवान शिव ने अपने शिष्यों को मणि ढूंढने को कहा. बहुत प्रयास करने के बावजूद मणि न मिलने पर क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख खोल दी. तीसरी आंख खुलते ही नैना देवी प्रकट हुई. उस दिन से इस स्थान को नैना देवी का जन्म स्थान कहा जाता है. जब नैना देवी ने पाताल लोक में जाकर शेषनाग से मणि लौटाने के लिए कहा तो शेषनाग ने भगवान शिव को वह मणि भेंट स्वरुप अर्पित कर दी.
दूसरी कहानी भी है प्रचलित
बलिया वाराणसी रेलमार्ग पर चितबड़ागांव एवं ताजपुर डेहमा रेलवे स्टेशनों के बीच में स्थित है ‘कामेश्वर धाम’. इस धाम के बारे में मान्यता है कि शिव पुराण मे वर्णित यह वही जगह है जहां भगवान शिव ने देवताओं के सेनापति कामदेव को जला कर भस्म कर दिया था. यहां पर आज भी वह आधा जला हुआ हरा भरा आम का पेड़ मौजूद है, जिसके पीछे छिपकर कामदेव ने समाधि मे लीन भोले नाथ को जगाने के लिए पुष्प बाण चलाया था.
मान्यता अनुसार, सती की मृत्यु के बाद भगवान शिव अपने तांडव से पूरे संसार में हाहाकार मचा देते हैं. देवताओं के समझाने पर भगवान शिव शांत होकर परम शांति के लिए समाधि में लीन हो जाते हैं. उधर महाबली राक्षस तारकासुर भगवान ब्रह्मा को अपनी तपस्या से प्रसन्न कर वरदान प्राप्त कर लेता है कि उसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र के हाथों ही हो. वरदान मिलने के बाद तारकासुर सृष्टि में उत्पात मचाने लगता है. वह स्वर्ग पर भी अधिकार जमाने की कोशिश करता है. इस बात से चिंतित सभी देवगण समाधि में लीन भगवान शिव के समक्ष कामदेव को भेजने का निश्चय करते हैं. कामदेव भगवान शिव को समाधि से जगाने के लिए आम के पेड़ के पत्तों के पीछे छिपकर शिवजी पर पुष्प बाण चलाते हैं. पुष्प बाण सीधे भगवान शिव के हृदय में लगता है और उनकी समाधि टूट जाती है. अपनी समाधि टूट जाने से भगवान शिव बहुत क्रोधित होते हैं और कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से जला कर भस्म कर देते हैं. (और पढ़ें – शिव तांडव स्त्रोत के लाभ)
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