पाक के जेलों में कैद 54 युद्धबंदियों की गुनहगार है कांग्रेस, जिन्हें भूल चुके हैं लोग अब
विंग कमांडर अभिनंदन की वतन वापसी पर जहां एक तरफ पूरा देश खुश है, तो वहीं दूसरी तरफ युद्धबंदियों को लेकर चर्चा भी तेज़ हो चुकी है। विंग कमांडर अभिनंदन उन खुशनसीब युद्धबंदियों में से एक हैं, जोकि जल्द ही अपने वतन वापस आ सके हैं। जी हां, अभिनंदन वर्थमान का वतन लौटने पर अभिनंदन हैं। अभिनंदन की घर वापसी पर एक बार फिर से 54 युद्धबंदियों की चर्चा हो रही है, जोकि अपनी फैमिली से कभी नहीं मिल पाएं हैं और अब पता नहीं किस हाल में होंगे या नहीं भी हो सकते हैं। तो चलिए जानते हैं कि हमारे इस लेख में आपके लिए क्या खास है?
वर्तमान समय में सैन्य बलों की हिमायती बनने की कोशिश करने वाली कांग्रेस के दामन में कई ऐसे दाग हैं, जिससे वह चाहकर भी नहीं बच सकती है और इसमें सबसे बड़ा दाग 54 युद्धबंदी हैं, जोकि अपने परिवार से एक मिल भी नहीं पाएं। वो अब किस हाल में होंगे? ज़िंदा भी हैं या नहीं, यह भी कोई नहीं जानता हैं। सालों से इस मसले पर समिति बनी हुई हैं, लेकिन वह समिति आजतक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाई, जोकि बहुत ही ज्यादा दुखद है।
सियासत में लापता हो गये 54 युद्धबंदी
1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ होने वाले युद्ध में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कभी भी 54 युद्धबंदियों पर ध्यान नहीं दिया। भारत ने 1971 के युद्ध में 93000 युद्धबंदी को रिहा किया गया, लेकिन तत्कालीन सरकार अपने 54 जवानों को भूल गई। इंदिरा गांधी ने खुद को महान बनाने के लिए 93000 युद्धबंदियों को बिना किसी शर्त के रिहा तो कर दिया, लेकिन एक बार फिर पाकिस्तान की सरकार से यह नहीं कहा कि हमारे 54 युद्धबंदी कहां है? उन्हें आप छोड़ेंगे? ऐसे में आज भी 54 युद्धबंदी यानि भारत के जवान लापता हैं। कोई यह भी नहीं बता सकता है कि वह जिंदा भी हैं या नहीं।
आरटीआई से हुआ खुलासा
1965 और 1971 के युद्ध के कैदियों को भारत सरकार ने छुड़ाने के लिए क्या कुछ किया, इसके बारे में एक आरटीआई से पूछा गया। आरटीआई का जवाब रक्षा मंत्रालय के तरफ से आया। बता दें कि यह खुलासा 2007 में हुआ था। रक्षा मंत्रालय से जवाब आया कि सरकार पाकिस्तान से लगातार इस बारे में बात कर रही है, लेकिन पाकिस्तान यह स्वीकार नहीं कर रहा है कि उसके यहां युद्धबंदी हैं। साथ ही आपको बता दें कि 2007 में ही युद्धबंदियों के रिश्तेदारों को पाकिस्तान जेल ले जाया गया था, लेकिन कोई भी युद्धबंदी वहां नहीं मिल पाया, ऐसे में यह तत्कालीन भारत सरकार की लीपापोती की वजह से ही हुआ है।
इसी आरटीआई के जवाब में विदेश मंत्री ने भी जवाब देते हुए कहा कि 1965 के 6 युद्धबंदी पाकिस्तान के कब्जे में हैं, जिसमें लेफ्टिनेंट वीके आजाद, गनर मदन मोहन, गनर सुज्जन सिंह, फ्लाइट लेफ्टिनेंट बाबुल गुहा, फ्लाइंग अफसर तेजिंदर सिंह सेठी और स्क्वाड्रन लीडर देव प्रसाद चटर्जी शामिल हैं। साथ ही सरकार इन्हें छुड़ाने का प्रयास कर रही हैं, जिसके लिए समिति बनाई गई है, लेकिन आज तक यह समीति किसी नतीज़े पर नहीं पहुंची। साथ ही आपको बता दें कि विदेश मंत्रालय ने यह भी स्वीकारा कि 1971 युद्ध के 48 युद्धबंदी और वहां की जेलों में हैं, लेकिन पाकिस्तान यह स्वीकार नहीं कर रहा है।
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ये थे पुख्ता सबूत
1. साल 1971 में पाकिस्तानी अखबार आब्जर्वर ने फ्लाइट लेफ्टिनेंट का नाम युद्ध बंदी के तौर पर छापा और यह भी कहा कि पाकिस्तान के कब्जे में भारत के पांच अन्य युद्धबंदी है, लेकिन सरकार उन्हें छुड़ा नहीं पाई।
2. 1971 में ही टाइम मैगजीन ने मेजर ए.के. घोष की तस्वीर छापी थी, जिसमें कहा गया था कि ये पाकिस्तान के कब्जे में हैं, लेकिन सरकार सिर्फ महान बनी रही।
3. 1988 में पाकिस्तान की जेल से रिहा हुए दलजीत सिंह ने बताया था कि उन्होंने अपनी आंखों से फ्लाइट लेफ्टिनेंट वीवी तांबे को लाहौर जेल में देखा था, लेकिन तत्कालीन सरकार ने उनके लिए कुछ नहीं किया।
इस तरह के ढेरो मीडिया रिपोर्ट्स मौजूद हैं, लेकिन तब से लेकर अब तक सरकारें आई और गई, लेकिन उन 54 युद्धबंदियों के बारे में कोई भी पुष्टि नहीं हो पाई और किस हाल में है या नहीं भी है, इसके बारे में कहना मुश्किल है।