तो इस वजह से कृष्ण जी ने किया था एकलव्य का वध
एकलव्य एक महान योद्धा हुआ करते थे जो कि अर्जुन से काफी शक्तिशाली थे. एकलव्य को धनुर्विद्या में कोई भी नहीं हरा सकता था. एकलव्य के साहस और बल के बारे में महाभारत में भी वर्णन किया गया है और बताया गया है कि किस तरह से एकलव्य को धनुर्विद्या में अर्जुन से बेहतर पाकर,एकलव्य से उसका अंगूठा मांग लिया गया था. ताकि धनुर्विद्या में अर्जुन से बेहतर कोई और ना हो सके. हालांकि एकलव्य ने अपना अंगूठा काटने के बाद भी धनुष को नहीं छोड़ा और ये केवल चार अंगूलियों की मदद से ही धनुष चला लिया करते थे.
कौन थे एकलव्य
महाभारत के मुताबिक एकलव्य के पिता का नाम निषादराज हिरण्यधनु था जो कि श्रृंगवेरपुर राज्य के राजा हुआ करते थे और ये राज्य काफी बड़ा हुआ करता था. जब एकलव्य पांच साल के थे तभी से उन्होंने अस्त्र-शस्त्र में अपनी रुचि दिखाना शुरू कर दिया था और वो गुरु द्रोण से धनुर्विद्या सिखाना चाहते थे. लेकिन गुरु द्रोण केवल उच्च वर्ग के बच्चों को ही धनुर्विद्या सिखाया करते थे. जिसके कारण उन्होंने एकलव्य को धनुर्विद्या सिखाने से मना कर दिया था. गुरु द्रोण के मना करने के बाद एकलव्य ने इनकी एक मूर्ति बनाकर उस मूर्ति के सामने खुद से ही धनुर्विद्या सिखाना शुरू कर दी और ये धनुर्विद्या में एकदम माहिर हो गए थे.
एक दिन जंगल में गुरु द्रोण का कुत्ते एकलव्य को देखकर भौंकने लगा और कुत्ते के भौंकने के कारण एकलव्य को धनुष चलाने के अभ्यास करने में दिक्कत होने लगी. कुत्ते को चुप करवाने के लिए एकलव्य ने धनुष से एक तीर चलाया जिससे कुत्ते का मुंह बंद हो गया. एकलव्य ने ये तीर इस तरह से चलाया था कि कुत्ते को किसी तरह की चोट भी नहीं आई थी. वहीं ये कुत्ता भागकर गुरू द्रोण के पास चलेगा. कुत्ते को देख गुरु द्रोण हैरान हो गए कि कैसे किसी ने बिना हानि पहुंचे इसका मुंह एक तीर से बंद कर दिया.
कुत्ते और अपने शिष्य को लेकर गुरू द्रोण एकलव्य की तलाश पर निकले गए और उन्हें जब एकलव्य मिला तो उन्होंने एकलव्य से उसके गुरु के बारे में पूछा तब एकलव्य ने गुरू द्रोण को उनकी मूर्ति दिखाई और कहा कि वो ही उनके गुरू है. गुरू द्रोण को ये पता चल चुका था कि एकलव्य अर्जुन से बेहतर है. जिसके चलते गुरू द्रोण ने एकलव्य से गुरू दक्षिणा लेते हुए एकलव्य से उसके हाथ का अंगूठा मांग लिया और एकलव्य ने बिना कुछ सवाल किए अपना अंगूठा काट कर उन्हे दे दिया.
बिना अंगूठे चलाना सिखा तीर
एकलव्य ने अपना अंगूठा गुरु दक्षिणा में देने के बाद भी अपनी धनुर्विद्या जारी रखी और उन्होंने धनुर्विद्या भी महारत हासिल कर ली. वहीं जब एकलव्य बड़ा हुआ तो उसने अपने पिता का राज्य संभाल लिया और अपने राज्य की सीमाओं को और बढ़ाने लग गए. अपने राज्य को बढ़ाने के हेतु इन्होंने जरासंध की सेना की तरफ से मथुरा पर आक्रमण कर दिया और कृष्ण की सेना को मारना शुरू कर दिया. जब कृष्ण को इस बारे में पता चला तो वो एकलव्य से लड़ने के लिए चले गए और उन्होंने जब एकलव्य को केवल चार अंगुलियों की मदद से धनुष चलाते देखा, तो वो हैरान हो गए और एकलव्य की वीरता को मान गए. वहीं एकलव्य को मारना आसानी नहीं थी इसलिए कृष्ण ने छल से एकलव्य को मारने की नीति बनाई और उनकी नीति कामयाब भी हो गई. महाभारत के मुताबिक अर्जुन को महान योद्धा बनाने के कारण से ही कृष्ण जी ने एकलव्य का वध करने का निर्णय लिया था और उन्हें मार दिया था.