आखिर क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्री, नहीं जानते होंगे ये दो कहानियां
हमारे देश में हर समय कोई ना कोई त्यौहार आता रहता है और हर पर्व, व्रत औऱ पूजा का कोई महत्व होता है। भारत में महाशिवरात्री भी धूमधाम से मनाई जाती है औऱ इस साल ये 4 मार्च को है। इस दिन लोग महादेव के नाम पर उपवास रखते हैं और भगवान शिव को फल-फूल अर्पित कर शिवलिंग पर दूध और जल भी अर्पित करते हैं। इस दिन महादेव की पूजा होती है। हालांकि आपके मन में भी ये सवाल आता होगा की आखिर महाशिवरात्री क्यों मनाई जाती है औऱ इसे महाशिव का नाम क्यों दिया गया है। आपको बताते हैं महाशिवरात्री मनाने का कारण।
जब नीलकंठ हुए महादेव
जब समुद्र मंथन हो रहा था तो असुरों औऱ देवताओं में हर बात की जंग छिड़ी थी। मंथन से हाथी घोड़ा सोना चांदी सब निकलें जो बांट दिए गए, लेकिन असुरों और देवताओं असली विवाद तो अमृत को लेकर था। जो भी इसका पान करता वो अमर हो जाता है इसकी एक भी बूंद को कोई बेकार नहीं देना चाहता था। मंथन में अमृत निकलने से पहले विष निकला था। विष की ये आग ज्वालाएं पूरे आकाश में फैलकर सारे जगत को अपने में समाने लगी। देवता श्रषि-मुनी सभी डरने लगे औऱ डरकर शिव के पास मदद के लिए गए। भोलेनाथ ने समस्या के निदान के लिए विष को ही पी लिया औऱ अपने कंठ में रोक लिया। इसी वजह से शिव को नीलकंठ बुलाया जाने लगा।
महादेव के इस बड़ी विपदा को पल भर में निपटाने और गले में विष की शांति के लिए उस चंद्रमा की चांदनी में सभी देवताओं ने रात भर शिव जी का गुणगान कि. और उनकी उपासना की। इस महा रात्रि को शिवरात्रि का नाम दिया गया औऱ फिर इसे महाशिवरात्री का नाम दिया गया। इस दिन जो भी व्यक्ति शिव के लिए व्रत करता है उसके पूजा पाठ से महादेव प्रसन्न हो जाते हैं और उस पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं।
ज्योतिर्लिंग के रुप में प्रकट हुए शिव
महाशिवरात्री मनाने के पीछे एक औऱ कहानी का बखान किया जाता है। एक बार ब्रह्मा औऱ विष्णु में इस बात को लेकर विवाद हो गया था कि दोनों मे से कौन बड़ा है। विवाद बढ़ने लगा तो जगत में त्राहिमाम मचने लगा। देवता-श्रषि मुनियों ने शिव का रुख किया और उनसे अनुरोध किया की किसी भी तरह से इस विवाद को खत्म किया जाए। इसके बाद शिव जी ज्योतिर्लिंग के रुप में प्रकट हुए। इस लिंग का ना कोई आदि था और ना ही कोई अंत।
ब्रह्मा और विष्णु ये लिंग देखकर समझ नहीं पाए की ये क्या चीज है। भगवान विष्णु ने सुकर का रुप धारण किया और ब्रह्मा हंस के रुप में ऊपर की ओर गए ताकी जान सके कि कहां से इस लिंग की शुरुआत हुई है और कहां इसका अंत हुआ है। जब दोनों ये जान पाने में असमर्थ रहे तो उन्होंने हाथ जोड़ लिया। उसी समय ऊं की ध्वनि सुनाई दी। ब्रह्मा और विष्णु दोनों ही हैरान रह गए। फिर उन्होंने देखा कि लिंग के दाहिने ओर आकार, बायीं ओर उकार औऱ बीच में मकार है और शुद्ध स्फटिक भगवान शिव दिखाई दिए। इस दृश्य को देखकर ब्रह्मा और विष्णु बहुत प्रसन्न हुए औऱ शिव की पूजा करने लगे। पहली बार ज्योतिर्लिंग के रुप में प्रकट होने की वजह से उस रात्रि को महाशिवरात्री के रुप में मनाया गया।
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