धारा-370 है कश्मीर के फसाद की जड़, हटाने से इस तरह लग सकती है आतंक पर लगाम
जम्मू कश्मीर के पुलवामा मे हुए आतंकी हमले में हमारे लगभग 40 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए. उन 40 जवानों के साथ-साथ उनके परिवार की खुशियां भी खो गई हैं और अब इससे पूरे भारत में जनआक्रोश फैल गया है. हर कोई पाकिस्तान के खिलाफ है और साथ में कश्मीर के उन लोगों से भी नाराज है जिन्होंने आतंकियों का साथ दिया और इतना सारा बारूद वहां आने दिया. पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद एक बार फिर जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35 ए हटाने की मांग बढ़ने लगी है. लाखों की संख्या में लोग जम्मू-कश्मीर के मिले इस खास दर्जे की वापसी की मांग तेजी मे है. पुलवामा हमला के बाद जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाने की बढ़ी मांग, लोगों का कहना है कि धारा 370 और 35 ए को खत्म करने के लिए तत्काल कानून बनाया जाए.
पुलवामा हमला के बाद जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाने की बढ़ी मांग
370 और 35 ए धारा कश्मीर में अलगाववाद की भावना को बढ़ाने का काम कर रही है और यही समय है जब केंद्र सरकार इसे खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ सकती है. लोगों का कहना है कि धारा 370 की वजह से ही कश्मीरी ये मानने लगे हैं कि उन्हें विशिष्ट अधिकार हासिल हैं और वे भारत से अलग है. वे कश्मीरियत की बात तो करते ही हैं लेकिन उसे भारतीयता से अलग मानते हैं और इस मानसिकता तो खत्म करना ही चाहिए. मुंबई से बीजेपी विधायक प्रभात लोढ़ा ने पीएम को खत लिया जिसमें पीएण मोदी से संसज का विशेष सत्र बुलाकर जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने की मांग की है. आपको बता दें कि भारतीय संविधान की धारा 370 जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करती है. धारा 370 भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद है जो जम्मू-कश्मीर को भारत के दूसरे राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार देती है. भारतीय संविधान में अस्थायी संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध संबंधी भाग 21 का अनुच्छेद 370 जवाहरलाल नेहरू के विशेष हस्तक्षेप से तैयार किया गया था और जैसा कि आप जानते हैं कि साल 1947 में विभाजन के समय जब जम्मू कश्मीर को भारतीय संघ में शामिल करने की प्रक्रिया भी तब शुरु हुई.
इसी दौरान तभी पाकिस्तान समर्थित कबिलाइयों ने वहां पर आक्रमण कर दिया जिसके बाद उन्होंने भारत में विलय की अनुमति दी. उस समय की आपातकालीन स्थिति को मद्देनजर तब कश्मीर का भारत में विलय करने की संवैधानिक प्रक्रिया पूरी करने का समय नहीं था. इसलिए संघीय संविधान सभा में गोपालस्वामी आयंकर ने धारा 306-ए का प्रारूप पेश किया है. यही बाद में धारा 370 बनाया गया जिसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर को दूसरे राज्यों से अलग अधिकार मिले.
जम्मू-कश्मीर को दूसरे राज्य से अलग ये अधिकार मिले
1. साल 1951 में राज्य को संविधान सभा को अलग से बुलाने की अनुमति दी गई.
2. नवंबर, 1956 में राज्य के संविधान का कार्य पूरा हुआ. 26 जनवरी 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया- धारा 370 के प्रावधानों के मुताबिक संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है.
3. किसी दूसरे विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की सहमति लेनी पड़ती है.
4. इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती. राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है.
5. साल 1976 का शहरी भूमि कानून भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता.
6. भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते हैं. धारा 370 के तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि खरीदने का अधिकार है.
7. भारतीय संविधान की धारा 360 यानी देश में वित्तीय आपातकाल लगाने वाला प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता.
8. जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय करना उस वक्त की बड़ी जरूरत थी. इस कार्य को पूरा करने के लिए जम्मू-कश्मीर की जनता को उस समय धारा 370 के तहत कुछ विशेष अधिकार दिए गए थे। इसी की वजह से यह राज्य भारत के अन्य राज्यों से अलग है.