आखिरी दिनों में महज हड्डियों का ढांचा रह गईं थीं मधुबाला, बेहद दर्दनाक थे अंतिम क्षण
ऐसा माना जाता है कि भारतीय सिनेमा की अभिनेत्रियां जितनी खूबसूरत रही हैं उतनी शायद ही किसी फिल्म इंडस्ट्री की अभिनेत्रियों को पसंद किया गया होगा. बॉलीवुड में सबसे ज्यादा याद की जाने वाली एक्ट्रेस मधुबाला है जिन्हें आज गूगल ने अपने डूडल के जरिए श्रद्धांजलि अर्पित की है. मधुबारा का नाम सुनते ही मनमोहक चेहरा, खूबसूरत नाक-नक्शा और दिलकश अदाएं याद आती हैं. 50 के दशक में मधुबाला ने अनारकली बनकर कई नौजवानों की रातों की नींद उड़ाई थी लेकिन बहुत कम लोग जाते हैं कि उनका अंत बहुत बुरा हुआ था. आखिरी दिनों में महज हड्डियों का ढांचा रह गईं थीं मधुबाला, इनके बारे में सनकर आपकी रूह कांप सकती है और आप सोचेंगे कि इनके साथ ही ऐसा क्यों हुआ ?
आखिरी दिनों में महज हड्डियों का ढांचा रह गईं थीं मधुबाला
14 फरवरी, 1933 को दिल्ली में जन्मी मधुबाला का असली नाम मुमताज जेहन देहलवी था और ये अपने 11 भाई-बहनों में पांचवे नंबर पर थीं. मधुबाला की खूबसूरती का अंदाजा लगाना हो तो साल 1990 मे प्रकाशित पत्रिका मूवी के बॉलीवुड की ऑल टाइम ग्रेटेस्ट एक्ट्रेसेस की लोकप्रियता वाले सर्वेक्षण को देख सकते हैं जिसमें 58 फीसदी लोगों ने मधुबाला को ही वोट दिया था. मधुबाला की खूबसूरती के चर्चे विदेशों तक थे और वहां के कई लोग इनसे मिलने भारत आया करते थे. उनकी खूबसूरती और पॉपुलैरिटी इतनी थी कि ऑस्कर अवॉर्ड विनर निर्देशक फ्रैंक कापरा मधुबाला को हॉलीवुड फिल्मों में ब्रेक देने का मन बना चुके थे लेकिन मधुबाला हॉलीवुड फिल्मों में काम नहीं करना चाहती थीं. जिस समय मधुबाला की कामयाबी कदम चूम रही थी तभी उन्हें एक गंभीर बीमारी ने घेर लिया. जिस दौरान फिल्म मुगल-ए-आजम की शूटिंग कर रही थीं उसी समय उन्हें कमजोरी और चक्कर आता था लेकिन वो फिल्म की शूटिंग टालना नहीं चाहती थीं क्योंकि उन्हें अनारकली का रोल बहुत मुश्किल से मिला था और वो ये खाना नहीं चाहती थीं.
मधुबाला को एक नहीं बल्कि दो बीमारियां थी जिसके चलते उनका करियर तो खत्म हुआ ही साध उनकी जिंदगी भी खत्म हो गई. मधुबाला के दिल में छेद था और फेफड़ों में भी कई शिकायतें थीं, इसके अलावा उन्हें एक और गंभीर बीमारी थी जिसमे उनके शरीर का खून सूखने लगा था. इतना नहीं उनके नाक-मुंह से भी खून निकलता था. ये खून तब तक निकलता था जब तक उनके शरीर से खून निकाल कर दोबारा ना चढ़ा दिया जाए. मधुबाला तड़पती रहती थीं उन्हें असहाय दर्द भी होता था लेकिन उनकी बीमारी का इलाज नहीं हो पा रहा था. डॉक्टर्स हर दिन उनके घर आते और खून बदलते थे. हर दिन वो खांसती रहती और खून निकलता रहता था इसकी वजह से उन्हें सांस लेने भी समस्या होती थी. मधुबाला को बीमारी ने इस तरह जकड़ लिया था कि वो नौ सालों तक बिस्तर पर पड़ी रहीं.
दर्दनाक हुआ मधुबाला का अंत
एक समय ऐसा भी आया जब मधदुबाला के करोड़ों दिवाने उनकी सेहत अच्छी हो जाए इसके लिए दुआ करते थे लेकिन मधुबाला हड्डियों की ढांचा मात्र रह गई थीं. बड़ी ही दर्द भरी जिंदगी को काटते हुए मधुबाला हर दिन मौत की दुआएं मांगने लगी थी. ना तो उन्हें उनका प्यार मिला, ना अपनी करियर की सफलता को एन्जॉय कर पाईं और ना ही उनका साथ किसी ने दिया. साल 1964 में एक बार पिर मधुबाला ने फिल्म इंडस्ट्री की तरफ रुख लिया लेकिन फिल्म चालाक के पहले दिन की शूटिंग में ही वो बेहोश हुईं और इसके बाद बिस्तर से नहीं उठ पाईं. 23 फरवरी 1969 को मधुबाला ने दुनिया को अलविदा कह दिया.