भारत के लिए चिंता की बात, वर्ष 2100 तक समाप्त हो सकते हैं पूर्वोत्तर के ग्लेशियर
ग्लोबल वार्मिंग पूरी दुनिया के लिए इस समय चिंता का विषय है और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटने के लिए दुनिया के सभी देश एक साथ मिलकर कई कार्य भी कर रहे हैं. ताकि ग्लोबल वार्मिंग की इस समस्या को हल किया जा सके और ग्लोबल वार्मिंग से हमारे पर्यावरण पर पड़ रहे नुकसानों को कम किया जा सके. ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बुरा असल ग्लेशियर पर पड़ रहा है और ये ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं. जिससे की धरती में पानी का स्तर बढ़ रहा है.
पूर्वी हिमालय के ग्लेशियर पर पड़ा रहा है बुरा असर
हमारे देश के ऊपरी हिस्सा कई सार ग्लेशियर से लगा हुआ है और इन ग्लेशियर की मदद से हमारे देश की नदियों को पानी मिलता है. वहीं हाल ही में विशेषज्ञों द्वारा इन ग्लेशियर को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की गई है और इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले समय में पूर्वी हिमालय के ग्लेशियर पर ग्लोबल वार्मिंग का सबसे अधिक असर पड़ने वाला है और ये ग्लेशियर धीरे धीरे खत्म हो जाएगा. ये रिपोर्ट 210 विशेषज्ञों द्वारा बनाई गई है. इस रिपोर्ट में कही गई ये बात काफी चिंता वाली है और इस रिपोर्ट में लिखी बात अगर सच होती है तो इस सदी के खत्म होते होते हिंदू कुश पर्वतों के एक तिहाई से भी अधिक ग्लेशियर पिघल जाएंगे.
भारत के लिए चिंता की बात
इस रिपोर्ट में भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को लेकर चिंता जनक बात कही कई है और इस रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी हिमालय के ग्लेशियर पूरी तरह से समाप्त हो सकते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक अगर ग्लोबल वार्मिंग ऐसे ही बढ़ती गई तो करीब 95 फीसदी ग्लेशियर पिघल जाएंगे. वहीं इसको कंट्रोल में करने के बावजूद भी पूर्वी हिमालय के ग्लेशियर का 64 फीसदी ग्लेशियर 2100 के अंत तक खत्म हो जाएंगा.
कहां हैं हिंदू कुश पर्वत
ये पर्वत शृंखला अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान (विवादीत भाग) के मध्य में स्थित हैं. ये शृंखला 800 किमी तक फैली है और इसका सबसे ऊंचा पहाड़ पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत में है जिसका नाम तिरिच मीर पर्वत है. इस पर्वत के दूसरे सबसे ऊंचे पहाड़ का नाम नोशक पर्वत है और तीसरे सबसे बड़े पहाड़ का नाम इस्तोर-ओ-नल है. इस पर्वत शृंखला को तीसरा पोल के नाम से भी जाना जाता है और इस पर्वत शृंखला के जरिए दो अरब लोगों को पानी मिलता है. जिसके चलते इसे एशिया का वाटर टावर भी कहा जाता है.
पूर्व पश्चिम के ग्लेशियर पर नहीं पड़ेगा असर
इस खोज में जहां पूर्वी हिमालय के ग्लेशियर पिघलने की बात कहीं गई है वहीं दूसरी तरफ इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि पश्चिमी हिमालय के ग्लेशियर इतनी जल्दी नहीं पिघलने वाले हैं और इन ग्लेशियर में बढ़ोतरी होगी. आपको बता दें कि ये ग्लेशियर जम्मू और कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड में स्थित हैं और अधिक बर्फबारी के कारण इन ग्लेशियर में बढ़ोतरी होगी.
पिघलने से क्या होगा प्रभाव
अगर ग्लेशियर पिघलते हैं तो इससे नदियों का बहाव अधिक हो जाएगा. जिसके कारण प्राकृतिक आपदाएं, जैसे की बाढ़ आने का खतरा बढ़ जाएगा. वहीं जब ये ग्लशियर पूरी तरह से खत्म हो जाएंगे तो लोगों को पानी नहीं मिल सकेगा और ऐसा होने से 2 अरब लोग पर असर पड़ेगा.