जब शिवजी पर पड़ी थी शनिदेव की वक्र दृष्टि, तो धारण करना पड़ा था शिव को हाथी का रूप
शनिदेव की वक्र दृष्टि से हर मनुष्य डरता है और हर कोई शनिदेव की वक्र दृष्टि से बचने के लिए लाखों उपाय करता है. कहा जाता है कि जिस पर भी इनकी ये वक्र दृष्टि पड़ती है उस मनुष्य के जीवन में दुख आने लगते हैं और उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. शनिदेव जी की वक्र दृष्टि से ना केवल मनुष्य बल्कि भगवान को भी डर लगता है और भगवान भी इनकी वक्र दृष्टि से बचे रहने चाहते हैं. शनिदेव की वक्र दृष्टि से जुड़ी एक कथा में इस बात का उल्लेख भी है. इस कथा में बताया गया है कि किस तरह से शनिदेव की वक्र दृष्टि से बचने के लिए भगवान शिव जी को हाथी का रूप धारण करना पड़ा था.
जब शंकर भगवान बने थे हाथी
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक ऐसा समय आए था जब शनिदेव की वक्र दृष्टि किसी और पर नहीं बल्कि भगवान शंकर पर पड़ गई थी और इनकी इस वक्र दृष्टि के बचने के लिए शंकर भगवान को अपना समय मृत्युलोक में बिताना पड़ा था. कहा जाता है कि एक बार शनिदेव खुद भगवान शंकर से मिलने के लिए हिमालय पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने शिव जी को बताया कि वो कल से उनकी राशि में आने वाले हैं और उनपर शनि की वक्र दृष्टि पड़ने वाली है. शनिदेव की ये बात सुनकर शिव जी सोच में पड़ गए हैं और उन्होंने कुछ देर बाद शनिदेव से पूछा कि उनपर कितने समय तक ये वक्र दृष्टि पड़ने वाली है. शिव जी के इस सवाल का जवाब देते हुए शनिदेव बोले कि कल सवा प्रहर तक मेरी वक्र दृष्टि आप पर रहने वाली है.
शनिदेव शिव जी को वक्र दृष्टि के बारे में बताकर वहां से चले गए. वहीं भगवान शिव शनि की वक्र दृष्टि से बचने के लिए उपाय करने की सोच में पड़ गए. वहीं अगले दिन होते ही शिव भगवान ने बिना देरी किए मृत्युलोक की और प्रस्थान कर लिया. शनिदेव जी की व्रक दृष्टि इनपर ना पड़े इसलिए इन्होंने एक हाथी का रूप ले लिया. हाथी का रूप लेने के बाद शिव जी सवा प्रहर तक वहां पर रहें और जैसे ही सवा प्रहर का समय खत्म हो गया वो वापस कैलाश पर्वत जाने पर विचार करने लगे .
शिव जी को लगा की अब व्रक दृष्टि का समय खत्म हो गया है और वो अब बिना किसी डर के कैलाश पर्वत में रह सकते हैं. हालांकि जैसे ही शिव जी कैलाश पर्वत आए उन्होंने वहां पर शनिदेव को पाया. शनिदेव को देखकर शिव जी ने कहा कि अब तो सवा प्रहर का समय खत्म हो गया है और मुझ पर आपकी दृष्टि का कोई असर नहीं पड़ा.
शिव जी की ये बात सुनते ही शनिदेव ने कहा कि मेरी दृष्टि से कोई भी नहीं बच सकता है, मेरी दृष्टि किसी पर भी पड़ सकती है. मेरी इसी दृष्टि के कारण ही आपको देवयोनी को छोड़कर पशुयोनी में जाना पड़ा और सवा प्रहल तक आपको हाथी के रूप में ही रहने पड़ा. जो कि मेरी दृष्टि के कारण हुआ.