वैष्णों माँ के मंदिर में लोगों की मुरादें होती हैं पूरी, लेकिन इस के पीछे की कहानी चौंका देगी
हिंदू धर्म में वैष्णों माँ का विशेष महत्व है. वैष्णों देवी मंदिर में हर साल लाखों भक्तों का तांता लगा रहता है. मान्यता है कि वैष्णो माँ के मंदिर में जो भी भक्त जाता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. शायद यही वजह है जो वैष्णो देवी मंदिर भारत का एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल बन चुका है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि वैष्णों माँ के इस मंदिर के पीछे एक कहानी छिपी हुई है. यही कहानी इस बात की वजह है जो भक्तों की मुरादें पूरी करने के तथ्यों को दर्शाती है. बता दें कि वैष्णों देवी के दर्शन करने के लिए नवरात्रि का पर्व ख़ास माना गया है. ढेरों भक्त नवरात्रि में माँ की पूजा करने के लिए और अपनी मन्नत मांगने के लिए यहाँ आते हैं. यहाँ तक कि नवरात्रि के कुछ दिनों बाद तक की मंदिर के आस पास की जगह पर्यटकों से भरी रहती है.
क्या है वैष्णो देवी के मंदिर का सच?
गौरतलब है कि जिस मंदिर को आज हम सभी लोग वैष्णों माँ के रूप के लिए जानते हैं, असल में उस मंदिर में माता की पिण्डी मौजूद नहीं है. जम्मू के त्रिकूट पर्वत पर बनी एक भव्य गुफा में तीन पिंडियां बनी हुई हैं जिनमे से एक पिण्डी देवी लक्ष्मी माँ की है, दूसरी सरस्वती माँ की है जबकि तीसरी माँ काली की है. मान्यता के अनुसार इसी भव्य गुफा में वैष्णों माँ अदृश्य रूप में है इसलिए इस स्थल को वैष्णों देवी तीर्थ स्थल कहा जाता है.
700 साल पहले बना था यह मंदिर
मंदिर के निर्माण की बात करें तो वैष्णों देवी का यह मंदिर लगभग 700 सालों पहले एक ब्राह्मण पनदिर पुजारी श्रीधर द्वारा बनवाया गया था. श्रीधर एक गरीब आदमी थे लेकिन उनके मन में वैष्णों माता के लिए असीम प्रेम और भक्ति थी. एक रात उन्हें वैष्णों माँ सपने में दिखाई दी और उनसे भंडारा करवाने की बात कही. अगली सुबह ब्राह्मण ने एक शुभ महूर्त देख कर गाँव वालों को भंडारे के लिए आमंत्रित किया और उनसे भोजन ग्रहण करने के लिए प्राथना की. देवी माँ की इच्छा अनुसार उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह पूरे गाँव को खाना खिला सके. हालाँकि उसने कईं लोगों से भंडारे के लिए मदद मांगी मगर उतनी मदद एक बड़े भोज के लिए काफी नहीं थी. जैसे जैसे भंडारे का दिन नज़दीक आता गया, ब्राह्मण की परेशानियाँ और भी अधिक बढ़ती चली जा रही थी.
स्वयं माँ ने की मदद
भंडारे की एक रात पहले श्रीधर काफी चिंतित थे. वह यह सोच कर सो नहीं पा रहे थे कि आखिर इतने बड़े भंडारे में वह सबको कैसे खाना खिला पाएंगे. ऐसे में वह देवी माँ से एक चमत्कार की उम्मीद में सो गए. जब सुबह पूजा के बाद भोज के लिए सब कुटिया में आए तो अचानक से श्रीधर ने अपने सामने एक लड़की को कुटिया से बाहर आते हुए देखा. इस लड़की का नाम वैष्णवी था. वह सबको खाना खिला रही थी.भंडारे के खत्म होते ही श्रीधर उस कन्या के बारे में सच जानने को विचलित थे लेकिन अचानक से वैष्णवी गायब हो गई और उसके बाद गाँव में कभी किसी ने उसको नहीं देखा. एक रात ब्राह्मण सो रहे थे कि उन्हें दोबारा वैष्णों माँ का सपना आया. इस सपने से उन्हें पता चला कि वैष्णवी कोई और नहीं बल्कि खुद वैष्णों माँ ही थी.
कन्या के रूप में वैष्णवी ने उन्हें माता रानी की एक सनसनी गुफा के बारे में बताया जिसे तलाशने श्रीधर घर से निकल पड़े. आखिरकार एक दिन उन्हें वह गुफा मिल गई और उन्होंने सारी जिंदगी माँ की सेवा करने की ठान ली. तब से ले कर आज तक उस गुफा में वैष्णों माँ के दर्शन करने भक्त दूर दूर से आते हैं.