जानिए कुंभ मेला खत्म होने के बाद कहा रहते हैं नागा बाबा, कैसे बिताते हैं जीवन
न्यूज़ट्रेंड वेब डेस्क: इलाहाबाद में चल रहे कुंभ मेले का सबसे बड़ा आकर्षण होता है नागा बाबा। संगम शुरू होने के समय ये नागा बाबा देश के कोनों-कोनों से इलाहाबाद पहुंचते हैं। निर्वस्त्र, शरीर पर भभूत लपेटे, रास्तों में नाचते-गाते ये बाबा कुंभ मेले में पहुंचते हैं और मेला खत्म होने के बाद गायब हो जाते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर ये बाबा जाते कहा हैं। अगर नहीं सोचा तो अब आपके दिमाग में जरूर आया होगा कि वो आकर गायब कहा हो जाते हैं। तो आप अब अपने दिमाग पर इतना ज्यादा जोर मत डालिए हम आपको बताएंगे कि आखिर ये बाबा आखिर गायब कहा हो जाता हैं।
गुफाओं में रहते हैं
बता दें कि नागा बाबा हर समय तपस्या करते रहते हैं और गुफाओं में रहते हैं। लेकिन वो कभी भी एक स्थान पर टिक कर नहीं रहते हैं और वो हमेशा अपना स्थान बदलते रहते हैं। इस वजह से इनकी सटीक जगह का पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है। ये बाबा किसी गुप्त स्थान में रहकर तपस्या करते हैं, बाबा भोलेनाथ की भक्ति में डूबे ये बाबा जड़ी-बूटी और कंदमूल के सहारे पूरा जीवन बिता देता हैं. कई नागा जंगलों में घूमते-घूमते सालों काट लेते हैं और अगले कुंभ या अर्ध कुंभ में नजर आते हैं।
जंगलो के सहारे करते हैं यात्रा
बता दें कि नागा बाबा जंगलों के सहारे ही एक जगह से दूसरी जगह पर जाते हैं। ये एक स्थान से दूसरे स्थान पर किसी शहर का रास्ता लेने के बजाए जंगलो और वीरानों का रास्ता चुनते हैं और जाते हैं। कुछ नागा साधु झुण्ड में निकलते है तो कुछ अकेले ही यात्रा करते हैं।
जमीन पर सोते हैं
बता दें कि इनके जीवन यापन के नियम बहुत कठिन होते हैं ये लोग सोने के लिए किसी बेड़, पलंग या खाट का उपयोग नहीं करते हैं बल्कि सोने के लिए ये जमीन पर सोते हैं। उनको किसी भी तरह के बिस्तर या पलंग पर सोने की मनाही होती है। और इन सब नियमों का पालन नागा बाबाओं को करना पड़ता है।
एक समय करते हैं भोजन
बता दें कि नागा बाबा रात और दिन में केवल एक समय ही भोजन करते हैं। इसके अलावा वो वही खाना खाते हैं जो उन्होंने भिक्षा में मांगा होता है। बता दें कि एक नागा साधू को कवल सात घरों में ही भिक्षा मांगने की अमुमति होती हैं। यदि इन सात घरों में उनको खाने को कुछ नहीं मिलता है तो उन्हें भूखा रहना पड़ता है। या फिर जो भी मिले उसे ही खाना होता है।.
एक कोतवाल
बता दें कि इनके अखाड़े होते हैं और हर अखाड़े में एक कोतवाल होता है। जब नागा बाबाओं की दीक्षा पूरी हो जाती हैं तो वो साधु अखाड़े छोड़कर जंगलों में तपस्या करने चले जाते हैं। तब ये कोतवाल नागा साधुओं और अखाड़ों के बीच एक कड़ी का काम करते हैं और कुंभ और अर्धकुंभ जैसे महापर्वों पर उन तपस्या पर गए साधुओं को बुलाते हैं।
पहाड़ों पर रहते है
बता दें कि इन अखाड़ों के ज्यादातर बाबा हिमालय, काशी, गुजरात और उत्तराखंड में रहते हैं वो वहीं पहाड़ों पर भ्रमण करते है और जगह-जगब घूमते हैं।