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कुंभ 2019 : खुद का श्राद्ध कर बनते हैं ‘नागा साधु’, जानिए इनकी रहस्मयी दुनिया की रोचक बातें

प्रयागराज में कुंभ का आगाज हो चुका है। कुंभ में भारी संख्या में साधु संत शामिल हुए हैं। इनमें सबसे ज्यादा चर्चित नागा साधु हैं। हर बार की तरह इस बार भी कुंभ में नागा साधु धूम मचा रहे हैं। प्रयागराज से लेकर सोशल मीडिया तक नागा साधु के चर्चे हैं। नागा साधु के बारे में हर कोई जानना और समझना चाहता है। जी हां, नागा साधु बनना किसी भी व्यक्ति के लिए आसान नहीं है, बल्कि कई पड़ावों से होकर गुज़रना पड़ता है। ऐसे में हम आज आपको नागा साधु के जीवन के कुछ रहस्मयी बाते बताने जा रहे हैं, जिन्हें जानने का बाद आप भी इनके लगन और त्याग की तारीफ करने से पीछे नहीं हट पाएंगे।

कैसे हुई थी अखाड़ें की स्थापना?

माना जाता है कि जब विदेशी आक्रमणकारी भारत की भूमि पर आने लगे तो आदि शंकराचार्य अखाड़ों की स्थापन की। जी हां, आदि शंकराचार्य का मानना था कि पूजा-पाठ के साथ शारीरिक श्रम व अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा भी साधुओ को मिलना चाहिए, ताकि आक्रमणकारियों से निपटा जा सके। इसके लिए आदि शंकराचार्य ने 7 अखाड़ो की स्थापना की। हालांकि, अब यह संख्या 13 हो चुकी है।

1. करना पड़ता है खुद का श्राद्ध

नागा साधु बनने की दीक्षा लेने से पहले व्यक्ति को अपना श्राद्ध पूरी रीति रिवाज से करना पड़ता है। श्राद्ध करने के बाद अखाड़े के गुरू जो नाम देते हैं, उसी नाम से व्यक्ति जाना जाता है। इसके अलावा दीक्षा देने से पहले व्यक्ति पर खुद के नियंत्रण को भी परखा जाता है। बता दें कि तीन साल तक दैहिक ब्रह्मचर्य के साथ मानसिक नियंत्रण को परखने के बाद ही जब व्यक्ति सफल होता है, तभी उसे नागा साधु बनने की दीक्षा दी जाती है।

2. हिंदू धर्म का व्यक्ति ही बन सकता है नागा साधु

बताते चलें कि जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री महंत परशुराम गिरी का कहना है कि नागा साधु की दीक्षा सिर्फ उसी व्यक्ति को दी जाती है, जोकि हिंदू धर्म का होता है। फिर चाहे वह किसी भी जाति का क्यों न हो। साथ ही उन्होंने आगे कहा कि यदि दूसरे किसी धर्म का व्यक्ति नागा साधु बनना चाहता है, तो वह नहीं बन सकता है, क्योंकि यह अखाड़े का नियम है।

3. बस्ती के बाहर करते हैं निवास

नागा साधुओं का कहना है कि उन्हें बस्ती के बाहर रहना पड़ता है। दरअसल, बतौर नागा साधु वे न तो किसी से प्रणाम कर सकते हैं और न ही किसी की निंदा कर सकते हैं। ऐसे में उन्हें बस्ती के बाहर रहकर संन्यासी की तरह जीवनयापन करना होता है। नागा साधु का कहना है कि दीक्षा लेने वाले हर नागा साधु को यह नियम मानना ही पड़ता है।

4. भिक्षा मांगकर ही खाते हैं खाना

नागा साधुओं का यह भी नियम है कि उन्हें दिन में सिर्फ एक बार ही खाना खाना होता है। यह खाना भी वे सिर्फ भिक्षा मांगकर खाते हैं। इसके अलावा नागा साधु एक दिन में सिर्फ 7 घरों से ही भिक्षा मांग सकते हैं। ऐसे में अगर उन्हें भिक्षा नहीं मिलता है, तो उन्हें उस दिन भूखा रहना पड़ता है, लेकिन आठवे घर जाकर भिक्षा नहीं मांग सकते हैं।

5. जमीन पर हैं सोते

बता दें कि नागा साधु सिर्फ जमीन पर ही सोते हैं। उन्हें खटिया या बेड पर सोने की अनुमति नहीं होती है और इस नियम का उल्लंघन करने पर उन्हें अखाड़े के गुरू द्वारा सजा दी जाती है और उनकी सारी दीक्षा रद्द की जाती हैं। ऐसे में नागा साधु सिर्फ धरती पर सोते हैं।

6. भस्म और रूद्राक्ष ही करते हैं धारण

नागा साधुओं को भस्म और रूद्राक्ष धारण करने की अनुमति है। यदि कोई कपड़ा पहनना चाहता है, तो वह सिर्फ एक ही कपड़ा पहन सकता है और वो भी सिर्फ गेरूए रंग का। इसके अलावा वे भस्म को शरीर पर लगाते हैं और रूद्राक्ष धारण करते हैं और कोई कपड़े नहीं पहनते हैं।

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