अध्यात्म

जानें क्यों मनाते हैं पुत्रदा एकादशी, क्या है पूजा विधि औऱ कहानी

हिंदु धर्म में एकादशी का बहुत महत्व माना गया है। इस बार 17 जनवरी को पुत्रदा एकादशी पड़ रहा है। यह पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस एकादशी का व्रत करने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है। आपको बताते हैं इस व्रत को करने की क्या विधि है और क्या महत्व है। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।

क्या है पूजा विधि

पुत्रदा एकादशी की सुबह सबसे पहले स्ना कर किसी साफ जगह पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद शंख में जल लेकर प्रतिमा का अभिषेक करें। इसके बाद भगवान विष्णु को चंदन का तिलक लगाएं। इसके बाद चावल, फूल, अबीर, गुलाल से पूजा करें। इसके बाद दीपक जलाएं।

भगवान विष्णु को पीला रंग पसंद है अत: उन्हें पीला वस्त्र अर्पित करें। साथ ही नींबू सुपारी भी चढ़ाए। इसके बाद साफ दूध से बनी खीर का भोग लगाएं। कोशिश करें की गाय के दूध से बनी खीर भगवान विष्णु को चढ़ाएं।

व्रत रख रहे हैं तो श्रद्धा भाव से व्रत रखें। अगर तबीयत भारी लग रही है या सामार्थ्य से बाहर हो रहा है तो एक समय भोजन कर सकते है। रात को भी भगवान विष्णु की मूर्ति के पास जागरण करें और भजन गाएं।

अगले दिन ब्राह्मणों तो भोजन कराएं और इसके बाद उपवास खोले। इस तरह श्रद्धा से पूजा करते हुए भगवान से प्रार्थना करें कि वह आपको संतान दें और आपका जीवन सुख से बीतें।

क्या है पुत्रदा एकादशी की कहानी

भद्रावतीपुरी नगर में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे। उनकी एक रानी थी जिनका नाम चम्पा थ। उनके पास सारा सुख था, लेकिन संतान नहीं थी। संतान ना होने के कारण पति पत्नी हमेशा दुखी रहते थे औऱ हमेशा मन उदास रखते थे।राजा ऐसे ही शोक में एक वन मे चले गए। चलते चलते राजा को प्यास लगी तो वह एक सरोवर के पास पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे हैं। राजा ने सभी मुनियों को वंदना की।

राजा को सामने झुकता देख मुनी प्रसन्न हो गए राजा को वरदान मांगने को कहा। राजा के मन में सिर्फ एक ही इच्छा थी और वह थी संतान प्राप्ति की । उन्होंने अपनी यह इच्छा मुनी के सामने रखीं। मुनि ने कहा कि पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। उस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत रखने से तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी।

ऋषियों के कहने पर राजा ने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान ने प्रसन्न होकर राजा और रानी को आशीर्वाद दिया। रानी चम्पा गर्भवती हुएं और उन्होंने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। आगे चलकर वही पुत्र राजा की तरह ही वीर और पराक्रम निकला और न्याय के साथ राज्य पर शासन किया।

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