3 बेटियों संग कलेक्टर को अपना दर्द बताकर रोने लगी महिला, कहा-मदद कीजिए साहब, नहीं तो…
इंसान की जिंदगी में मजबूरी बहुत बड़ी चीज होती है उसके आगे झुककर आदमी कुछ भी कर जाता है. मजबूरी शब्द उनके हिस्से में आता है जिनकी नौकरी द्वारा कम सैलरी पर ही उनका और उनके परिवार का गुजर-बसर हो रहा हो. भारत में ज्यादातर महिलाओं का काम घरेलू ही माना जाता है उन्हें इस लायक नहीं बनाया जाता कि वो दुनिया से अकेले लड़ सकें. उनकी शादी करवाकर उन्हें पति पर डिपेंडेड बना देते हैं और अगर पति की मौत हो जाए तो वो पूरी तरह असहाय हो जाती हैं. कुछ ऐसा ही हुआ मध्यप्रदेश में जब 3 बेटियों संग कलेक्टर को अपना दर्द बताकर रोने लगी महिला, इसकी दर्दभरी दास्तां सुनकर कलेक्टर साहब भी हैरान रह गए लेकिन ऐसा करना उस महिला की मजबूरी थी जिसे वो रो-रोकर बयां कर रही थी.
3 बेटियों संग कलेक्टर को अपना दर्द बताकर रोने लगी महिला
मध्यप्रदेश के खंडवा की रहने वाली 40 साल की अन्नू करोले के पति की मौत 3 महीने पहले कैंसर की बीमारी की वजह से हो गई थी. उसका पति अनुसूचित जाति जनजाति के हॉस्टल में दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी थे और उनके ही कमाई से उसका घर चलता था. उस महिला की तीन बेटियां हैं जिसमें से 12 साल की भूमि, 10 साल की मोनिका और 4 साल की काव्या है और इनकी पढ़ाई के लिए फीस ना भर पाने की वजह से उन्हें स्कूल से भी निकाल दिया गया. उस महिला का कहना है कि अगर पति की जगह नौकरी नहीं मिली तो वो अपनी बेटियों के साथ आत्महत्या कर लेगी. अन्नू करोले ने बताया, ”उसके पति की कमाई से घर का खर्चा चल जाता था, बच्चियों की पढ़ाई हो जाती थी और कुछ पैसा जमा भी हो जाता था. मगर जमा हुआ पैसा पति की बीमारी में खर्च हो गया और अब हम लोग सड़क पर आ गए हैं.” अन्नू की सारी दर्दभरी बातें सुनकर कलेक्टर विशेष गढ़पाले ने संबंधित विभाग के अफसर को मामले में जरूरी कार्यवाही करने का आदेश दिया है. इसके साथ ही महिला को आश्वासन भी दिया है कि उसके और उसकी बच्चियों के लिए जो हो सकेगा सरकार करेगी.
कलेक्टर ने आश्वासन देकर महिला और उसकी बच्चियों को घर भेज दिया और वो कुछ देर बाद घर भी चली गई. अब देखते हैं सरकार उस महिला की मदद कितनी जल्दी करती है. वैसे उस महिला को नौकरी और बच्चियों का खर्चा सरकार को उठा लेना चाहिए क्योंकि अगर उनका जीवनयापन अच्छा होगा तो देश के लिए ही अच्छा है वरना समाज के लोग उन्हें ताना और उनका भक्षण करने के लिए बैठे ही हैं. आज का समाज ऐसा ही हो गया है कि लड़कियों की पढ़ाई से ज्यादा आज भी लड़कों की पढ़ाई पर जोर दिया जाता है.