इस मगरमच्छ से बहुत प्यार करते थे गांव वाले, आखिर क्यों उसके मरते ही फूट-फूट कर रोने लगे लोग
आमतौर पर जब आपको कोई जानलेवा जानवर दिखता है तो आप डर जाते हैं और अपनी जान बचाकर इधर-उधर भागने लगते हैं. ऐसा ही एक जानलेवा जानवर है मगरमच्छ. मगरमच्छ यूं तो शांत रहते हैं और पानी में पाए जाते हैं लेकिन अगर आप गलती से भी उसके हाथ लग गए तो वह आपके चीथड़े उड़ा देगा. इसलिए ऐसे जानवरों से अक्सर लोग दूरी बनाये रखते हैं. लेकिन क्या आपने किसी ऐसे मगरमच्छ को देखा है जो इंसान को कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचाता और जिससे एक गांव वाले इतना प्यार करते हैं कि उसके मर जाने पर फूट-फूटकर रोने लगते हैं. शायद आपको हमारी इस बात पर यकीन नहीं हो रहा होगा. लेकिन छत्तीसगढ़ के बेमतरा जिले के मोहतरा गांव में ऐसा ही हुआ है. यहां पर एक मगरमच्छ के मर जाने पर बच्चों से लेकर बूढ़े तक की आंखें नम हो गईं. क्या है पूरा माजरा चलिए आपको बताते हैं.
भगवान की तरह पूजते थे लोग
दरअसल, गांव के तालाब में काफी सालों से एक मगरमच्छ रह रहा था जिसका गांव वालों ने ‘गंगाराम’ नाम रख दिया था. वह मगरमच्छ कभी किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता था. गांव के छोटे-छोटे बच्चे बिना किसी डर या भय के तालाब में जाते और नहा-धोकर और खेल-कूदकर वापस आ जाते. आज तक उसने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया. इंसान तो छोड़िये गंगाराम ने आज तक किसी जानवर को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाया. इस वजह से वह गांव वालों को बहुत प्यारा था और उन्होंने प्यार से उसका नाम गंगाराम रख दिया था. गांव के लोग गंगाराम की पूजा किसी भगवान की तरह करते थे. लेकिन मंगलवार का दिन गांव वालों के लिए अच्छा नहीं रहा. मंगलवार को गंगाराम के मरते ही गांव में मातम छा गया. गंगाराम के मौत से दुखी लोगों ने पोस्टमार्टम करने वाली टीम को गांव में बुलाया जिसके बाद गंगाराम का पोस्टमार्टम किया गया.
130 साल से ज्यादा थी उम्र
हालांकि, गांव वालों को गंगाराम के सही उम्र के बारे में तो नहीं पता लेकिन उनका कहना है कि उसकी उम्र 130 साल से ज्यादा थी. बता दें, मोहतरा गांव एक धार्मिक-पौराणिक नगरी के रूप में जिले के भीतर अपनी पहचान रखता है. कहा जाता है कि कई साल पहले इस गांव में पहुंचे हुए सिद्ध पुरुष महंत ईश्वरीशरण देव यूपी से आए थे और वही अपने साथ पालतू मगरमच्छ लेकर आए थे. उन्होंने गांव के तालाब में उसे छोड़ दिया था. कहते हैं कि गंगाराम के साथ और भी मगरमच्छ थे लेकिन समय-काल में सिर्फ गंगाराम बचा रहा. गांव वालों ने बताया कि गंगाराम कभी-कभी तलाब के पार आकर बैठ जाता था. इतना ही नहीं, बारिश के दिनों में वह गांव की गलियों और खेतों तक पहुंच जाता था. लोग बिना डरे अपना काम करते रहते थे और उसे अपने बच्चे की तरह पालते थे. कई बार खुद गांव वाले गंगाराम को पकड़कर तालाब में छोड़ आते थे.
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