इस ख़तरनाक बिमारी ने ली कादर खान की जान, जानिए क्यों इससे बचना होता है नामुमकिन
1 जनवरी की सुबह बॉलीवुड जगत को झटका देने वाली खबर मिली और वो ये थी कि इंडस्ट्री के दिग्गज अभिनेता और संवाद लेखक कादर खान ने दुनिया को अलविदा कह दिया है. फिल्मों में हमेशा सबको हंसाने वाले कादर खान नये साल में ही सबको रुलाकर चले गए, मगर उन्हें बीमारी ऐसी हो गई थी जिससे बचना बहुत ज्यादा मुश्किल हो चुका था. कादर खान कुछ साल पहले ही बात करना बंद कर दिये थे और इशारे में या आहिस्ता ही वो बात कर पाते थे ऐसे में कुछ हफ्ते पहले उनकी बीमारी बहुत ज्यादा बढ़ी और फिर वो अस्पताल जाकर वेंटिवेटर पर आ गए. इस ख़तरनाक बिमारी ने ली कादर खान की जान, ये कौन सी बीमारी है और इसके क्या लक्षण होते हैं हम आपको इसके बारे में बताएंगे.
प्रोग्रेसिव सुप्रान्यूक्लियर पाल्सी बिमारी ने ली कादर खान की जान
दिवंगत अभिनेता कादर खान का निधन प्रोग्रेसिव सुप्रान्यूक्लियर पाल्सी यानी PSP के कारण हुआ ये एक तरह की न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जिसमें मरीज की आंख की पलक नीचे नहीं आती और वो नीचे देखने के लिए सिर झुकाना पड़ता है. इस बीमारी के दौरान मरीज स्थिर हो जाता है, मूवमेंट खत्म हो जाती है और उनके शरीर का बैलेंस भी खत्म हो जाता है. पीड़ित में बोलना, खाना निगलना, देखने से लेकर कई तरह के मानसिक बदलाव आते हैं और उनके बिहेवियर में भी कई चेंज होते हैं. दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ देवाशीष कहते हैं कि यह ब्रेन से जुड़ी बीमारी होती है और इसमें ब्रेन के मसल्स से सारा कंट्रोल खत्म हो जाता है, इसलिए मरीज अपनी आंखों का कंट्रोल खो देता है फिर चाहकर भी आंखों की पुतलियां ऊपर नीचे नहीं कर पाता. डॉक्टर ने आगे बताया कि बीमारी की शुरुआत में आंख की पुतली नीचे आना बंद करती है फिर मरीज को नीचे देखना होता है तो उसे सिर नीचे करना पड़ता है. इस बीमारी के बढ़ने के साथ-साथ पुतली बिल्कुल स्थिर हो जाती है और यह बीमारी पार्किसन या अल्जाइमर बीमारी की तरह हो जाती है लेकिन उससे थोड़ी PSP बीमारी होती है जो कादर खान साहब को हो गई थी.
बहुत समय से बीमारी झेल रहे थे कादर खान
साल 2009 में कादर खान को ये बीमारी हो गई थी लेकिन धीरे-धीरे उनके अंदर इसी बीमारी PSP के लक्षण दिखाई देने लगे. इस बीमारी के बारे में कुछ एक्सपर्ट डॉक्टर के. के. अग्रवाल का कहना है कि ये एक ऐसी बीमारी है जो समय के साथ-साथ बढ़ती है. यह पीड़ित के सोचने, बोलने की क्षमता को खत्म कर देती है, बैलेंस खराब होने की वजह से मरीज चल भी नहीं पाते और हमेशा गिरने का खतरा होता है जिसके लिए वे व्हील चेयर का सहारा लेते हैं. मरीज धीरे-धीरे डिमेंशिया की तरफ बढ़ता है और भूलने लगता है, अपने काम खुद नहीं कर पाता. एक बार जिसे यह बीमारी होती है तो उसके ठीक होने की संभावना लगभग खत्म हो जाती है और इस बीमारी होने के बाद मरीज ज्यादा से ज्यादा 7 से 8 साल ही जिंदा रह पाता है.