जब दुकान में काम करने वाले युवक को सेठ ने लगा लिया गले, जानें क्या कहा था उसने
जीवन में सुख दुख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सुख बीतते ही दुख आता है औऱ दुख बीतते ही सुख आ जाता है। जिंदगी इन्हीं दो पहलुओं पर टिकी हुई है। हम सुख के समय ज्यादा खुश हो जाते हैं और दुख के समय ज्यादा उदास। मन को हमेशा एक जैसा रखना चाहिए ताकी किसी भी स्थिति में हमारे मन की दशा ना बदलें। ऐसा करना कठिन तो है, लेकिन अंसभव नहीं। सुखी और दुखी रहने से कहीं बेहतर हैं संतुष्ट रहना। आपको एक कहानी के माध्यम से बताते हैं इसका सार।
एक सेठ की दुकान थी। उसे सही ढंग से चलाने के लिए सेठ ने एक युवक को काम पर रखा हुआ। वह युवक बहुत ही मेहनत से काम करता था और साथ ही बहुत ईमानदार था। वह इतना ज्यादा मेहनत करता था कि एक भी दिन आराम नहीं करता था औऱ ना ही छुट्टी लेता था। एक दिन वह काम पर नहीं आया और ना ही उसने सेठ को ना आने की वजह बताई।
जब बढ़ गए पैसे
सेठ को लगा कि वह काम इतना अच्छा करता है औऱ कभी छुट्टी भी नही करता। आज लगता है उसने पैसे कम मिलने की वजह से छुट्टी कर ली है। अगले दिन युवक अपने समय पर काम करने आ गया। ना उसने सेठ को कल ना आने की वजह बताई ना सेठ ने उससे ना आने की वजह पूछी और सिर्फ कहा कि मैंने तुम्हारी तनख्वाह बढ़ा दी है। युवक ने बात सुनी लेकिन कोई खुश नहीं दिखाई।
इसके बाद वह फिर अपने काम में वयस्त हो गया। एक दिन ऐसा आया जब युवक फिर से काम पर नहीं आया। इस बार सेठजी को गुस्सा आ गया। उन्हें लगा की इसकी तनख्वाह बढ़ गई है तो अपने मन का हो गया है। अगले दिन युवक जैसे ही अपने समय पर दुकान पर पहुंचा तो सेठ जी ने कहा कि अब तुम्हें उतने ही पैसे मिलेंगे जितने पहले मिलते थे। बढ़े हुए पैसे मैंने हटा लिए हैं। युवक ने इस बार भी कुछ नहीं कहा और वैसे ही ईमानदारी और लगन से काम करता रहा।
जब घट गए पैसे
महीना खत्म हुआ तो सेठ ने उसे उसकी पुरानी तनख्वाह ही दी। युवक के चेहरे पर कोई भाव ही नजर नहीं आया। ना पैसे कम हो जाने का ना कम मिलने का। सेठ को बहुत ही अजीब लगा। मन में सोचा कैसा आदमी है यह। जब मैंने पैसे बढ़ा दिए तो खुश नहीं हुआ और जब पैसे ,कम कर दिए तो दुखी नहीं हुआ। ऐसा क्यों कर रहा है यह।
सेठ को बताई वजह
सेठ से रहा नहीं गया तो उन्होंने युवक से यह जानना चाहा। युवक ने कहा कि सेठ जी, जिस दिन मैं पहली बार आपकी दुकान पर नहीं आया और छुट्टी ली, उस दिन मेंरे घर में बेटा पैदा हुआ था। अगले दिन आपने आते ही पैसे बढ़ा दिए तो मैं समझ गया की गवान जी ने मेरे बेटे के हिस्से के पैसे मुझे दे दिए हैं। यह वजह थी की मैं खुश नहीं हुआ।
दूसरी बार जब में दुकान में नहीं आया तो उस दिन मेरी मां गुजर गई थी। अगले ही दिन आपने मेंरे पैसे कम कर दिए। मुझे तब समझ आया कि अपने हिस्से के पैसे मेरी मां लेकर चली गई है। मुझे यह सोचकर दुख नहीं हुआ। सेठ जी युवक की बात सुनते रहे। जैसे उसने अपनी बात खत्म की सेठ जी ने उसे खुशी के साथ गले लगा लिया।
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