जानिये नोटबंदी फैसले को टॉप सीक्रेट रखने के लिए पीएम मोदी के घर में किस तरह हुई थी प्लानिंग?
नई दिल्ली – नोटबंदी के फैसले को लागू करने के बाद एक महीने बीत चुके हैं और इस ऐतिहासिक फैसले की चर्चा देश के कोने कोने में हो रही है। इस फैसले ने रातोंरात हर भारतीय की जेब पर असर डाला। फैसले को सीक्रेट रखने के लिए नरेंद्र मोदी ने बड़ी प्लानिंग की थी। इस निर्णय को अमल में लाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने ऐसे भरोसेमंद अफसरशाह को चुना था और इस टीम में शामिल अफसरों को गोपनीयता बरतने की शपथ दिलाई गई थी। Notbandi decision secret planning.
भरोसेमंद अधिकारी थे शामिल, मोदी के घर हुई थी पूरी रिसर्च –
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, हंसमुख अधिया और उनके पांच साथी जो इस योजना का हिस्सा थे, उनसे इस मामले को गोपनीय रखने के लिए शपथ दिलाया गया था। अढिया और 5 अन्य ब्यूक्रैट्स का चयन काफी सोच-समझ कर किया गया था। इस फैसले की घोषणा से पहले पीएम मोदी के घर के दो कमरों में दिन रात काम कर रही थी। यह गोपनीयता इसलिए रखी गई थी ताकि कालेधन के मालिकों को सोना, प्रॉपर्टी या कुछ और संपत्ति खरीदने का मौका न मिल सके।
मोदी के पीएम बनते ही शुरु हो गई थी तैयारी –
नोदबंदी को लागू करने कि पूरी रिसर्च मोदी के घर पर दो कमरों में हुई थी। पीएम मोदी ने इकोनॉमी रिफॉर्म की ये प्लानिंग 2014 में सत्ता में आने के बाद ही की थी। पीएम मोदी ने विमुद्रीकरण के फैसले को अंजाम में लाने के लिए काफी खतरे मोल लिए। वे जानते थे कि उनका नाम और लोकप्रियता दोनों ही दाव पर हैं इसके बावजूद उन्होंने यह फैसला लिया। इस पूरे अभियान का संचालन वित्त मंत्रालय के उच्च अधिकारी हंसमुख अधिया कर रहे थे। 58 साल के हंसमुख, 2003-06 में नरेंद्र मोदी के गुजरात मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान प्रधान सचिव थे।
एक साल के रिसर्च के बाद लागू हुई नोटबंदी –
8 नवंबर को मोदी के नोटबंदी के फैसले के तुरंत बाद हंसमुख ने ट्वीट कर कहा था कि, ”कालेधन पर लगाम कसने के लिए यह सरकार का लिया सबसे बड़ा और बोल्ड कदम है।” नोदबंदी के फैसले से पहले आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान मोदी ने अपने अभियान में काले धन को देश में वापस लाने का वादा किया था। इस फैसले को लागू करने में एक साल से ज्यादा समय तक रिसर्च किया गया जिसमें वित्त मंत्रालय के अफसर, आरबीआई की टीम करप्शन और काला धन के मुद्दे पर काम कर रही थी।
इतनी तैयारियों के बावजूद जनता को असुविधा तो हो रही है और एटीएम के बाहर लाइनें एक महीने बाद भी खत्म नहीं हुई हैं। लेकिन भारत जैसे देश में नोट छापने वाली चार प्रेस को 500 और 2000 के नए नोट छापकर उन्हें वितरण प्रणाली में लाने में समय तो लगना ही था।