कंस के अलावा ये भी थे श्रीकृष्ण के श-त्रु, चालाकी से किया था सबका वध
कृष्ण का नम लेते ही मन में मीठी बासुंरी और दिल में प्रेम उमड़ जाता है। उनके नाम के साथ राधा का नाम जुड़ता है तो वह प्रेम और अधिक शक्तिशाली हो जाता है। हालांकि कृष्ण के हृदय में दया का सागर था तो साथ ही श-त्रुओं को हराने की चाल भी उनके दिमाग में चलती रहती थी। उनके तो जन्म के समय ही से ही उनके मामा कंस उनके श-त्रु बने हुए थे। इसके बाद भी उन्हें कई बार मारने का प्रयास किया गया था। कृष्ण भगवान विष्णु के ही अवतार थे, लेकिन वह जानते थे कि संसार से श-त्रुओं का नाश करना कितना जरुरी है। वह चाहते तो एक पल में ही सबको मार गिराते, लेकिन उन्हें अपने श-त्रुओं को हराने के पीछे वजह देनी थी। आपको बताते हैं कि कृष्ण के उनके मामा के अलावा और कितने श-त्रु थे और उन्हें कान्हा ने कैसे मारा।
जरासंध
कृष्ण के खुद के मामा तो उन्हें खत्म करना ही चाहता था साथ ही उसका ससुर भी कृष्ण को मिटा देना चाहता था। उसके पिता का नाम ब़हदृथ था। जरासंध को एक वारदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु होने पर एक उसके शरीर के टूकड़े एक ही जगह पर गिरें तो वह पुन: जीवित हो जाएगा। ऐसे में जरासंध को कोई भी हरा नहीं पाता था क्योंकि अगर कोई उसका वध कर भी देता तो वह फिर से जी उठता था। उसने श्रीकृष्ण को भी कई तरीके से परेशान किया था। अब श्रीकृष्ण को उसा मारना ही था। वह भीम और अर्जुन के साथ ब्राह्मण वेश मे पहुंचे औऱ कुश्ती का न्यौता दिया।
जरासंध को पता चल गया था कि वह ब्राह्मण नहीं बल्कि श्री कृष्ण है। श्रीकृष्ण ने अपना सही परिचय देकर भीम से कुश्ती लड़ने की बात कही। भीम और जरासंध की कुश्ति 13 दिन तक चलती रही। भीम को समझ नहीं आ रहा था कि वह जरासंध को कैसे खतम करें। उन्होंने कृष्ण की तरफ देखा तो कृष्ण ने अपने हाथ में एक तिनका लिया, उसे बीच से फाड़ा और अलग अलग दिशा में फेंक दिया। भीम समझ गए। उन्होंने जरासंध को बीच से फाड़कर दो अलग दिशा में फेंक दिया जिससे वह एक नहीं हो पाया और उसका वध हो गया।
कालयवन को हराया
कालयवन को श्रीकृष्ण से बहुत बैर था। एक बार उसने मथुरा पर अपनी सेना का घेराव कर दिया और श्रीकृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा। उन्होंने जवाब दिया कि वह चाहते हैं कि युद्ध केवल उन दोनो के बीच हो। कालयवन मान गया। बड़े भाई बलराम को चिंता हुई और उन्होंने कृष्ण को युद्ध पर जाने से मना किया। कृष्ण ने उन्हें समझाते हुए कहा कि कालयवन को भगवान शिव का वरदान प्राप्त है। उसे राजा मुचुकंद के आलावा और कोई पराजित नहीं कर सकता।
कृष्ण ने बड़े ही चालाकी के साथ कालयवन के साथ युदध शुरु किया। उन्होंने गुफा की ओर भागना शुरु किया और कालयवन उनका पीछा करने लगा। श्रीकृष्ण कोने में छिप गए। कालयवन ने किसी को सोते देखा तो कृष्ण समझकर उसे लात मारी। वह मुचुकंद थे उन्होंने जैसे ही कालयवन को देखा उसका शरीर जल कर भस्म हो गया।
पौड्रक
एक पौड्रक नाम का राजा था जो पूरी तरह से कृष्ण वेशभूषा पहने रहता था और खुद को कृष्ण बताता था। वह नकली चक्र, मोर पंख, शंख, पीले कपड़े पहनता था और जगह जगह गाता था कि मैं असली कृष्ण हूं। श्री कृष्ण क उसके बारे में सब मालूम था, लेकिन वह उसे नजरअंदाज कर दिया करते थे। वह काफी समय तक सब बर्दाश्त करते रहे, लेकिन जब उसका बहरुपिया भेष बढ़ता चला गया तो उन्होंने कहा कि तेरा संपूर्ण नाश करके मैं तेरे सारे गर्व का परिहार करुंगा। जब युद्ध शुरु हुआ तो पौड्रंक शंख, चक्र, गदा, रेशमी पींतांबर सब पहने पहुंचा। उसका रुप देखकर श्रीकृष्ण हंस पड़े। इसके बाद उन्होंने पौंड्रक का वध कर दिया।
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