जब राम ने किया था सीता का परित्याग, तब सीता से दोबारा मिली थी शूर्पनखा, पूछा था एक सवाल
रामायण का प्रसंग तो बच्चा बच्चा जानता है। हर हिंदू परिवार में बच्चों को बड़े बुजर्गों, फिल्म टीवी हर किसी से रामायण की कहानी के बारे में पता चलता है। राम जी का जन्म लेना, सीता मां से विवाह होना, कैकयी द्वारा वनवास मिलना, फिर रावण द्वारा सीता का अपहरण, प्रभु श्री राम की रावण से लड़ाई, रावण का वध, राजा राम का वापस अयोध्या लौटना, राम द्वारा सीता का परित्याग और फिर सीता द्वारा लव और कुश का जन्म देना। इसमें ना जानें कितनी ही चीजें हैं जिसका यहां उल्लेख नहीं हुआ है। हालांकि यहां जो कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं वह इनकी बीच की नही है। वह तबकी है राम ने एक धोबी के कहने पर सीता का परित्याग कर दिया था, उसके बाद वन में रह रहीं सीता की मुलाकात एक बार फिर शूर्पनखा से हुई थीं।
वन में समय काट रहीं थी सीता
रावण के वध के पीछे शूर्पनखा का बहुत बड़ा हाथ था। वह रावण का अस्तित्व मिटा देना चाहती थी इसलिए जानबुझकर वह राम से विवाह का प्रस्ताव रखने गई थी। इसके बाद की कहानी सब जानते हैं। अंत में जब राम अयोध्या लौट आए तो एक धोबी के कहने पर उन्होंने सीता मां को अपने घर से बाहर निकाला था। सीता मां इसके बाद वन में जकर रहने लगीं थीं। एक रानी होने के बाद भी सीता मां को राजमहल का कोई सुख नहीं मिला। पहले पति के साथ 14 साल वनवास, फिर रावण के वन में वनवास और रावण के वध के बाद पति द्वारा वन में रहने का आदेश। हालांकि हर वनवास में अंतर था।
सीता से मिली शूर्पनखा
जब जंगल में सीता मां रह रही थीं तो उनकी फिर से मुलाकात शूर्पनखा से हुई। शूर्पनखा ने देखा कि सीता मां जंगल में हैं तो वह खुश हो गई। वह यही चाहती थी। उसने सीता मां को ताने मारे। उसने कहा कि एक वक्त में श्रीराम ने मुझे अस्वीकार किया था और आज उसने तुम्हारा परित्याग कर दिया। वह तरीके से सीता मां को चोट पहुंचाना चाहती थी। उसने कहा कि श्रीराम ने वैसा ही असम्मान सीता को दिया जैसा उसे दिया था। आज सीता को ऐसी हालत में देखकर वह बहुत खुश है।
शूर्पनखा ने मारे ताने
मां उसकी बात सुनकर बिल्कुल भी दुखी नही हुईं। वह मंद मंद मुस्कराने लगीं। शूर्पनखा सीता को जलाना चाहती थी उन्हें मुस्कराता देख वह क्रोधित हो गई। सीता ने शूर्पनखा से कहा मै यह कैसे सोच सकती हूं कि मैं जिनसे और जितना प्रेम करती हूं, वह भी मुझसे उतना ही प्रेम करें। उन्होंने आगे कहा कि हमें अपने भीतर उस शक्ति को जागृत करना चाहिए जो हमें उन लोगों से प्रेम करना सिखाए जो हमसे प्रेम नहीं करते, दूसरों को भोजन देकर अपनी भूख मिटाना ही वास्तविक मनुष्यता है।
सीता से पूछा सवाल
सीता की यह बात सुनकर शूर्पनखा ग्लानि से भर गई। वह प्रतिशोध चाहती थी। वह चाहती थी की जिन लोगों ने उसका असम्मान किया है उनसे वह बदला लें। उसने सीता मां से पूछा की मुझे न्याय कैसे मिलेगा। उन्हें दंड कब मिलेगा।सीता मां ने कहा कि जिन्होंने तुम्हारा अपमान किया था उन्हें दंड मिल चुका है। वह दशरथ पुत्र जिन्होंने तुम्हारा अपमान किया था वह चैन की नींद नहीं सो पाए हैं। सीता मां ने कहा कि अपने मस्तिष्क के द्वार खोलो वरना तुम भी एक दिन रावण की तरह बन जाओगी।