आखिर क्यों गणेश भागवान की पूजा में नहीं चढ़ाते हैं तुलसी, ये है वजह
मनुष्य के लिए पेड़ पौधे बहुत उपयोगी होते हैं। इनमें से एक खास पौधा है तुलसी का। हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे की बहुत मान्यता है। इसके पत्ते ना सिर्फ पौराणिक रुप से बल्कि आयुर्वेदिक रुप से भी बहुत महत्व रखते हैं। तुलसी के इंस्तेमाल से शरीर की कई बीमारियां जिसमें सर्दी जुकाम से लेकर कैंसर तक ठीक हो जाता है। इसके इस्तेमाल से चेहरे पर रौनक भी आती है। हालांकि इसका पूजा में भी बहुत महत्व है। किसी भी शुभ काम में तुलसी का इस्तेमाल बहुत जरुरी माना जाता है। यहां तक की भगवान को चढ़ाने वाले चरणा अमृत और प्रसाद में तुलसी का इस्तेमाल अनिवार्य है। हालांकि इसमें से एक भगवान यानी गणपति एकलौते हैं जिन्हे तुलसी का भोग नहीं लगता है। आपको बताते हैं क्यों तुलसी का भोग गणेश भगवान को नहीं लगाते हैं।
क्यों नहीं चढ़ता तुलसी का भोग
इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। एक राजा थे जिनका नाम धर्मात्मज था। उनकी एक कन्या थी जिनका नाम तुलसी था। वह जब किशोरावस्था से बढ़ी तो उन्हें विवाह की इच्छा उत्पन्न हुई। उन्होंने बहुत ज्यादा सैर किया, लेकिन मनचाहा वर नहीं मिला। एक बार वह भ्रमण करते हुए गंगा किनारे पहुंची तो गणेश जी को तपस्या करते पाया। भगवान गणेश रत्न से जड़े सिंहासन पर विराजमान थे। उनके अंग पर चंदन लगा था और वह पूरे सुंदर वेशभूषा में विराजमान थे।
तुलसी उनके मुख मंडल क देखकर उनपर मोहित हो गईं। उन्होंने गणेश जी से विवाह का मन बना लिया। उन्होंने गणेश जी की तपस्या भंग की और उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। भगवान गणेश तपस्या भंग होने से क्रोधित हो गए और कहा कि वह ब्रह्मचारी हैं और कभी विवाह नहीं करेंगे। तुलसी स बात पर क्रोधित हो गईं और उन्हें श्राप दिया कि ब्रह्मचारी क्या, आपको दो विवाह करना होगा। आगे चलकर गणेश भगवान की दो पत्नियां बनीं रिद्धी सिद्धी।
गणेश भगवान ने दिया श्राप
गणेश जी ने उन्हें श्राप दे दिया कि तेरा विवाह एक असुर शंखचूर्ण जलंधर से होगा। राक्ष से विवाह का श्राप सुनकर तुलसी विलाप करने लगी और गणेश जी से माफी मागी। इसके बाद गणेश जी ने कहा कि वह भगवान विष्णु और कृष्ण प्रिय रहेगी और कलयुग में भी जीवन और मोक्ष देने का काम करेंगी लेकिन मेरी पूजा में तुम्हारा भोग कभी नहीं लगेगा। इसके बाद तुलसी जी का भोग कभी भी गणेश जी को नहीं लगाया जाता है।
आगे गणेश जी का दिया श्राप पूरा होने लगा। शंखचूड़ नाम के राक्षस की शादी व़ृंदा नाम की युवती से हुई जो असल में तुलसी थीं। वह पूरे संसार पर राज करना चाहता था। तुलसी या कहं व़ृंदा के पति का देवताओं ने कई बार वध करने का प्रयास किय़ा,. लेकिन तुलसी के स्तीत्व की वजह से ऐसा संभव नहीं हो पा रहा था।
तुलसी ने दिया श्राप
इस समस्या से परेशान होकर सभी देवतागण भगवान विष्णु के पास पहुंचे ।उन्होंने समस्या का हल मांगा। भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रुप धारण किया और वृंदा के पास पहुंचे। अपनी पति देख उसने विष्णु के पैर छू लिए। व़ृंदा का स्तीत्व भंग हो गया। देवताओं ने शंखचूड़ का वध कर दिया। अपने आपको छला मानकर उसने विष्णु जी को पत्थर बनजाने का श्राप दिया। लक्ष्मी मां को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने तुलसी को श्राप वापस लेने को कहा।
तुलसी ने अपना श्राप वापस ले लिया और अपने पति के साथ सति हो गई। भगवान विष्णु को पश्चाताप हुआ। उन्होंने खुद को एक पत्थर के रुप में बनाया और शालिग्राम नाम दिया।साथ ही कहा कि आज से उन्हें जब भी भोग लगेगा तो वह तुलसी के साथ ही लगेगा। इसके बाद से भगवान विष्णु की पूजा में हमेशा से तुलसी का उपयोग होने लगा। साथ ही रविवार भगवान विष्णु का प्रिय दिन होता है इसलिए इस दिन तुलसी का पत्ता नहीं तोड़ा जाता। (और पढ़ें – तुलसी पूजा के नियम)
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