अंडामान पर बसी इन 5 जनजातियों से दूर रहते हैं आम लोग, जानिए इसकी खास वजहें
भारत एक ऐसा देश है जहां पर दोस्ती और अतिथि को महानता के रूप में देखा जाता है और घर आए मेहमान को तो ‘अतिथि देवो भव:’ तक कह दिया जाता है. मगर ऐसा भारत के हर कोने में और हर लोगों के अंदर हो यह जरूरी नहीं होता क्योंकि हमारे भारत में ही कुछ ऐसे लोग भी रहते हैं जो बहुत ही खतरनाक भी साबित हो सकते हैं. इसका उदाहरण ये है कि कुछ समय पहले ही अंडमान में रहने वाली एक जनजाति ने अमेरिकी मिशनरी को मार डाला. दुनिया की सबसे खतरनाक जगहों में शामिल ये जगह भारत में ही है जिसे सेंटिनल द्वीप कहा जाता है. यहां पर अभी भी आदिवासी आदिमानव रहते हैं और उनसे किसी भी तरीके से कॉन्टैक्ट नहीं किया जा सकता है. अंडामान पर बसी इन 5 जनजातियों से दूर रहते हैं आम लोग, और इनके टच में अगर कोई आम लोग आ गए तो ये खतरनाक भी साबित हो सकते हैं और नहीं भी, जानिए इनके बारे में.
अंडामान पर बसी इन 5 जनजातियों से दूर रहते हैं आम लोग
सेंटिनलीज जनजाति
जरावा जनजाति
ये जनजाति अंडमान के दक्षिणी इलाके में रहती है और इनकी आबादी 250 से 400 के लगभग है. टूरिस्ट इनके पास आते हैं और इन्हें खाने और पहनने के लिए कुछ चीजें देते हैं इसके बदले यहां की महिलाओं को डांस करने को कहते हैं. पहले इस जनजाति को भी खतरनाक माना जाता था क्योंकि ये लोग खाने के लिए दूसरे लोगों पर हमला कर देते थे लेकिन अब ये नये लोगों को देखने और उनके साथ समय बिताने की आदत बना चुके हैं.
ओंगी जनजाति
इस जनजाति को भारत सरकार द्वारा संरक्षण प्राप्त है और ये जनजाति छोटे अंडमान में रहती है. इस जनजाति में बहुत समय से संरक्षण प्राप्त है और इसलिए राशन से लेकर हर जरूरी सेवाएं इन्हें मिलती है. ये जनजाति आम लोगों से या बाहरी दुनिया से बातचीत कर सकती है. पोर्ट ब्लेयर से लगभग 145 किलोमीटर दूरी पर लिटिल अंडमान का साउथ बे और डिगॉन्ग क्री इलाका ओंगिया के लिए सुरक्षित है और यहां आम लोगों का आना मना है. यहां जाने के लिए लोगों को सरकार से परमिशन लेनी होती है जो आसानी से नहीं मिलती.
जंगिल जनजाति
जंगिल जनजाति को रचलैंड जरावा भी कहते हैं और ये अंडमान के कुछ बेहद घने जंगल वाले इलाके में रहते हैं. ये अपने पड़ोसी जरावा जनजाति के लोगों से खासतौर पर जुड़े रहते हैं और इनसे इन्होंने सिर्फ कुछ ही मिनटों कॉन्टैक्ट किया था और आखिरी बार इन्हें साल 1907 में देखा गया था. कई बार इन्हें ढूंढने की कोशिश की गई और इनके इलाकों को छाना गया लेकिन उनका कोई पता नहीं चला.
निकोबारी जनजाति
इन जनजातियों में सबसे ज्यादा बदलाव हुआ है और वो आधुनिक समाज का हिस्सा बनते जा रहे हैं. फिर भी इस समाज ने अपनी कई खासियत बचा कर रखी है. निकोबारी लोगों की भाषा, उनका पहनावा और डांस करने की कला जैसा कोई बदलाव अपने अंदर नहीं लाए हैं. साल 1840 में पहली बार इस जनजाति से संपर्क किया गया था और साल 2014 में पहली बार इस जनजाति को वोटिंग के लिए साथ में लाया गया था. साल 2001 में इनकी जनगणना हुई थी जिसमें ये 300 लोग थे.