इस कुंड में स्नान करने से गर्भवती हो जाती हैं महिलाएं, श्री कृष्ण ने दिया था वरदान
राधा औऱ कृष्ण कभी दो नाम नहीं रहे, बल्कि यह एक ही नाम थे। दोनों का प्यार हमेशा अमर रहा है यहां तक की आज भी नवयुवकों में जब प्यार की कमी महसूस होती है तो उन्हें राधा कृष्ण की पूजा करने की सलाह दी जाती है। राधा कृष्ण का प्रेम अमर और पवित्र था। राधा कृष्ण के विवाह पर भी सवाल उठते हैं कि उन्होंने विवाह नहीं किया था, लेकिन साथ थे। वहीं कुछ ऐसे भी तथ्य हैं जो कहते हैं कि दोनों ने विवाह किया था। इस बात में कितनी सच्चाई है वह तो पता नहीं, लेकिन पति पत्नी के रुप में ना होते हुए भी कृष्ण ने संसार की महिलाओं को राधा के साथ मिलकर सबसे बड़ा वरदान दिया है।
एक महिला के लिए सबसे बड़ा वरदान होता है मां बनने का। कहते हैं कि जब एक महिला पत्नी बनती है तब भी अधूरी होती है, लेकिन जब वह मां बनती है तो पूरी हो जाती है। महिलाएं एक बच्चे के साथ साथ खुद दूसरा जन्म पाती हैं। इसके बाद भी कई बार अलग अलग कारणों की वजह से कई औरतें मां बनने का सुख नहीं भोग पाती। अगर समाज और परिवार की बात छोड़ भी दें तो खुद महिलाएं भी पूरी तरह से टूट जाती है और उनकी विवाहित जिंदगी में भूचाल आ जाता है।
कुंड में स्नान से गर्भवती हो जाती हैं महिलाएं
ऐसे में डॉक्टरी उपाय के साथ साथ लोग भगवान को भी याद करते हैं। महिलाओं की कोख भरने के लिए कृष्ण औऱ राध को ही ध्यान किया जाता है। मथुरा में एक स्नान कुंड भी है जो इसी दुख से उबरने के लिए प्रसिद्ध है। दरअसल मथुरा के एक मंदिर में मौजूद एक कुंड में अगर निःसंतान दंपत्ति एकसाथ अहोई अष्टमी यानी कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्य रात्री यानी आधी रात को राधा कुंड में स्नान करता है तो जल्द ही उनकी गोद भर जाती हैं।
यहां जो भी महिलाएं संतान की चाह में स्नान करती हैं वह नहाते समय अपने बाल खोले रहती हैं और राधा जी को श्रद्धा पूर्वक याद करती हैं। इसके साथ वह प्रार्थना करती हैं कि हे राधारानी मेरी यह सूनी कोख भर दो। ऐसा माना जाता है कि राधा कुडं में स्नान करने वाली महिलाएं मां बन जाती हैं। दरअसल इस कुंड के पीछे एक पौराणिक कथा हैं।
पौराणिक कथा
एक बार अरिष्टासुर नाम का एक राक्षस था। वह कृष्ण को मार देना चाहता था। कृष्ण भगवान गोवर्धन के पास गाय चरा रहे थे। राक्षस ने उन्हें गाय चराते देखा तो बछड़े का रुप धरकर उनपर हमला कर दिया। कृष्ण भगवान उससे लड़ते रहे और अंत में राक्षस का वध कर दिया। चूंकि जब राक्षस का वध हुआ तो वह बछड़े स्वरुप में था और इसलिए उन पर गौहत्या का पाप लग गया।
श्रीकृष्ण ने अपने पाप के प्रायश्चित करने के लिए अपने बांसुरी से कुंड बनवाया और तीर्थ स्थानों के जल को वहां एकत्रित किया। राधा वही मौजूद थीं। उन्होंने अपने कंगल की सहायता से कुंड खोदा और सभी तीर्थ जल को वहीं एकत्रित कर लिया। कहा जाता है कि कुंड में जल भर जाने के बाद राधा कृष्ण ने महारास किया था। राधा के साथ प्रस्नन होकर कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि जो भी निःसंतान दंपत्ति अहोई अष्टमी की मध्य रात्री में स्नान करेगा उसे साल भरे के भीतर संतान सुख प्राप्त होगा।
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