देव उठनी एकादशी में इन तीन भगवान की पूजा है जरूरी, वरना अधूरा रहता है यह व्रत
हिंदू धर्म में तीज और त्योहार का कोई अंत नहीं है. हर दिन कोई ना कोई तिथि निकल आती है और व्रत या पूजा शुरु हो जाती है. इस महीने तो कई व्रत और त्योहार आए जैसे दीपावली, छठ पूजा और अब देव उठनी एकादशी, जिसमें लोग व्रत रखते हैं पूजा-पाठ करते हैं और दान-धर्म भी करते हैं. ऐसी मान्यता है कि जब किसी की पूजा पूरे रीति-रिवाज के साथ करो तो उस पूजा में तमाम देवी-देवता और भगवान उपस्थित हो जाते हैं और यही विधि का विधान भी माना जाता है. देव उठनी एकादशी में तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ होता है जो विष्णु जी का एक अंश हैं, इसके अलाव इसी दिन देवता भी निद्रा से जागते हैं. देव उठनी एकादशी में इन तीन भगवान की पूजा है जरूरी, अगर आपने इनमें से किसी एक की भी पूजा करने से चूक गए तो आपकी पूजा स्वीकार नही की जाएगी.
देव उठनी एकादशी में इन तीन भगवान की पूजा है जरूरी
हिंदू धर्म में लिखे शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और इसी दिन से हर मंगल कार्यक्रम जैसे शादी या कुछ भी शुभ काम शुरु किए जा सकते हैं. इस दिन को कई लोग प्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी और देवठान एकादशी के नाम से भी जानते हैं. इस दिन व्रत रखने से अनंत पुण्यफल की प्राप्ति होती है और इस दिन अगर आपने इन तीन देवताओं की पूजा नहीं की तो यह पूजा असफल मानी जाती है. देवों के सोने और जागने का अंतरंग संबंध नारायण सूर्य की वंदना करने पर ही होता है क्योंकि इस सृष्टि की सतत क्रियाशीलता सूर्य देव पर ही निर्भर होता है सभी मनुष्य का दैनिक काम सूर्योदय के बाद से ही शुरु होता है. क्योंकि प्रकाश पुंज होने के नाते सूर्य देव को भगवान विष्णप का ही स्वरूप माना गया है इसलिए प्रकाश को परमेश्वर की तरह पूजा जाता है. अब अगर देवउठनी एकादशी की बात करें तो इन तीन के बिना यह पूजा अधूरी है –
सूर्यदेव
हिंदू धर्म में सूर्य तो देवता का स्थान दिया गया है. इस दिन सूर्यदेव के सामने ही तुलसी का पौधा रखकर पूजा की जाती है वरना इस पूजा को अधूरा माना जाएगा. सूर्यदेव को पवित्रता की निशानी माना जाता है क्योंकि वो हर तरफ रोशनी फैलाते हैं और रोशनी अच्छाई का प्रतीक होती है.
भगवान श्री विष्णु जी
भगवानी विष्णु इस दिन निद्रा से जागे थे और शालीग्राम इन्ही का नाम है इसलिए इनकी पूजा भी बहुत ज्यादा अनिवार्य है. कहते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से आपकी हर मनोकामनाएं पूरी होंगी और इसका फल आपको एक अच्छे जीवन के रूप में मिलेगा.
तुलसी माता
वैसे तो तुलसी एक छोटा सा पौधा होती हैं लेकिन हिंधू धर्म में तुलसी को देवी का स्वरूप माना गया है. देवउठनी के दिन तुलसी का विवाह शालीग्राम से किया गया था. शालीग्राम को विष्णु जी का स्वरूप माना जाता है इसलिए विष्णु या उनके किसी भी स्वरूप की पूजा में अगर भोग में तुलसी का पत्ता नहीं रखा गया तो बड़े से बड़े राजभोग का कोई मोल नहीं रह जाता. इसलिए इस दिन माता तुलसी को चुनरी उठाकर उनकी पूजा करने की रीत है जो हमेशा से चली आ रही है.
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