अध्यात्म

छठ पर्व की 4 महत्वपूर्ण परम्पराएं, जिसके बिना सूर्य देव की आराधना नहीं होती पूरी

जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं कि 11 नवंबर 2018 से छठ त्यौहार का आरंभ हो चुका है यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है नहाय-खाय के साथ ही 4 दिनों के छठ महापर्व की शुरुआत हो चुकी है यह पर्व उत्तर पूर्वी भारत में मुख्यतः बिहार यूपी झारखंड आदि क्षेत्रों में बड़ी ही आस्था के साथ मनाया जाता है यहां के लोग छठ को बड़ी श्रद्धा और विधि विधान पूर्वक मनाते हैं इन 4 दिनों तक छठ और छठी मैया के लोकगीतों के गाने सुनना लोग पसंद करते हैं जिसकी वजह से घर और बाहर का माहौल काफी भक्ति मय हो जाता है छठ पर्व में विशेष रूप से सूर्य देव की पूजा होती है छठ पर्व सूर्य आराधना का अति विशेष पर्व है जो विभिन्न परंपराओं को निभाते हुए 4 दिनों तक मनाया जाता है परंतु क्या आप जानते हैं कि छठ पर्व की ऐसी 4 विशेष परंपराएं हैं जिसके बिना छठ पर्व अधूरा माना जाता है? जी हां, आज हम आपको इस लेख के माध्यम से छठ पर्व की ऐसी चार महत्वपूर्ण परंपराएं बताने वाले हैं जिसके बिना छठ पर्व अधूरा है यानी सूर्य आराधना इनके बगैर पूरी नहीं हो सकती।

आइए जानते हैं छठ पर्व की यह 4 महत्वपूर्ण परंपराएं

नहाय-खाय

छठ के त्यौहार का पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है इस पर्व के पहले दिन घर की अच्छी तरह सफाई की जाती है और घर को पवित्र बनाया जाता है इसके पश्चात जो छठ का व्रत करता है वह स्नान करके पवित्र रूप से शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करके अपने व्रत की शुरुआत करता है घर परिवार में मौजूद सभी सदस्य वर्ती के भोजन करने के पश्चात ही भोजन खाते हैं भोजन में कद्दू, चना दाल और चावल खाया जाता है।

खरना

छठ पर्व के दूसरा दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है इस दिन जो व्रत रहता है वह पूरा दिन उपवास रखने के बाद शाम के समय भोजन करता है इसी को खरना कहा जाता है खरना का प्रसाद लेने के लिए आसपास के सभी व्यक्तियों को निमंत्रित किया जाता है प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध चावल का पीठा और भी घी से चुपड़ी हुई रोटी बनाई जाती है इसमें नमक या चीनी का प्रयोग नहीं होता है।

संध्या अर्घ्य

छठ पर्व के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को छठ का प्रसाद तैयार किया जाता है प्रसाद में ठेकुआ चावल के लड्डू बनाया जाता है इसके पश्चात शाम के समय पूरी तैयारी करने के बाद बांस की टोकरी के अंदर अर्घ्य का सुप सजाया जाता है और वर्ती के साथ परिवार तथा पड़ोसी के सारे लोग सूर्य देवता को शाम के समय अर्घ्य देने घाट की ओर चले जाते हैं जो छठ व्रत रहता है वह सभी तालाब या नदी के किनारे इकट्ठे होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं यह दृश्य बहुत ही सुंदर और देखने लायक रहता है।

सूर्य उदय अर्घ्य

छठ पर्व का चौथा दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदय होते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है दोबारा से सभी वर्ती वहां पर इकट्ठे हो जाते हैं जहां पर उन्होंने शाम के समय अर्घ्य दिया था फिर पिछली शाम की प्रक्रिया दोबारा दोहराई जाती है आखिरी में वर्ती कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोड़ा सा प्रसाद ग्रहण करके अपना व्रत पूरा करता है।

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