99% लोग नहीं जानते हैं दिवाली पर कैसे हुई पटाखें जलाने की शुरूआत, क्या आप जानते हैं?
दिवाली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन हर घर में दीपक जलाने के साथ ही नाना प्रकार के पकवान भी बनते हैं। जहां एक तरफ मिठाई की मिठास होती है, तो वहीं दूसरी तरफ पटाखों की मनमोहने वाली आवाज़ें होती है। इतना ही नहीं, इस दिन पटाखों से पूरा आसमान रौशनीमय हो जाता है। इस दिन अगर रात में आसमान की तरफ देखा जाए तो मानों ऐसा लगता है कि साक्षात देवी देवता इस त्यौहार को मनाने के लिए आसमान से हमें देख रहे हैं। दिवाली के दिन हर कोई पटाखें ज़रूर फोड़ता है, तो चलिए जानते हैं इससे जुड़े कुछ राज?
दिवाली के दिन पटाखें तो फोड़ने में हर किसी को आनंद मिलता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर दिवाली के दिन पटाखें फोड़ने की शुरूआत कहां से हुई हैं? इसके पीछे की असली वजह क्या है? शायद आपका जवाब यही हो कि हम अपनी खुशी के लिए यह सब करते हैं, लेकिन आज हम आपको इसके पीछे की असली वजह के बारे में बताने जा रहे हैं। तो चलिए जानते हैं कि आखिर पहली बार पटाखे फोड़ने की शुरूआत कहां से और कैसे हुई?
कहां से हुई पटाखे जलाने की शुरूआत?
मुगलों के राज में दिवाली सिर्फ दीपक जलाकर ही मनाया जाता है, लेकिन उस समय भी गुजरात के कुछ इलाकों में पटाखें जलाने की परंपरा बनी रही थी। मुगलों के राज के बाद औरंगजेब ने दीवाली पर दीयों और पटाखों के प्रयोग पर सार्वजनिक रूप से पाबंदी लगा दी थी, जिसके बाद कोई भी दीपक और पटाखे नहीं जलाता था। इसके बाद अंग्रेजों ने एक्स्प्लोसिव एक्ट पारित किया, जिसके तहत पटाखों जलाने, बेचने और पटाखे बनाने पर पाबंदी लगा दी गई और फिर दिवाली ऐसी ही सुनी सुनी मनाई जाती थी।
- यह भी पढ़े – घर में चाहते हैं सुख शांति और समृद्धि तो दिवाली के दिन खरीदें लक्ष्मी माता की यह तस्वीर
अय्या नादर और शनमुगा नादर ने पटाखे जलाने की की शुरूआत
इस समय जब भारत अपनी आजादी के लिए जूझ रहा था, उस समय साल 1923 में अय्या नादर और शनमुगा नादर ने इस दिशा में पहला कदम बढ़ाया। जी हां, काम की तलाश में दोनों कलकत्ता गए और वहां दोनों ने माचिस की एक फैक्ट्री में काम शुरु की। वहां से काम सीखने के बाद दोनों अपने अपने घर लौट गएं और फिर वहां उन्होंने माचिश की फैक्टी खोली। अब आप सोच रहे होंगे कि पटाखे की बात करते करते हम माचिश की बात क्यों करने लगे तो बता दें कि माचिश के बिना तो पटाखों का कोई मोल ही नहीं है।
इस साल लगाई गई पटाखों की पहली फैक्ट्री
बताते चलें कि सन् 1940 में सरकार द्वारा एस्क्प्लोसिव एक्ट में संशोधन किया गया, जिसमें एक खास स्तर के पटाखों पर से प्रतिबंध हटा दिया गया और इसका फायदा उठाते हुए नादर ब्रदर्स ने 1940 में पटाखों की पहली फैक्ट्री लगाई। यह पटाखों की पहली फैक्ट्री थी, जिसको लेकर सभी काफी उत्साहित हुए थे। शिवकाशी से शुरू हुई इस फैक्ट्री को इसके मालिको ने दिवाली से जोड़ दिया, जिसके बाद से लेकर अब तक हर कोई दिवाली पर पटाखें फोड़ता है। बता दें कि आज के समय शिवकाशी में पटाखों की 189 फैक्ट्रियां है। इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि शिवकाशी तमिलनाडु में स्थित है।