अध्यात्म

विष्णु पुराण: अगर आप भी भगवान की शक्तियों के बारे में जानना चाहते हैं तो यह पढ़ें!

सभी लोग “अहं ब्रह्मास्मि” का मतलब यही समझते हैं कि ‘मैं ब्रह्म हूँ’। लेकिन यह इसका असली अर्थ नहीं होता है, क्योंकि इस पृथ्वी पर कोई भी जिव ब्रह्म नहीं होता है और ना ही हो सकता है। ब्रह्म होने की वजह से इस पृथ्वी के सभी प्राणी को सर्व-संपन्न, अन्तर्यामी, सर्व-शक्तिमान होना चाहिए था। लेकिन आप भी जानते हैं कि इस पृथ्वी पर ऐसा कोई भी नहीं है, जो सर्व-शक्तिमान, सर्वगुण संपन्न और अन्तर्यामी हो।

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शिव की तरह आदि और अनंत नहीं:

“शिवोऽहम्” का भी अर्थ होता है कि ‘मैं शिव हूँ’, लेकिन आप भी जानते हैं कि हर कोई शिव की तरह सर्व-शक्तिमान, अन्तर्यामी और क्रोधी नहीं हो सकता है और ना ही वो माता पार्वती के पति होने का दर्जा पा सकता है। शिव की तरह आदि और अनंत नहीं हो सकता है। इसलिए इसका यह मतलब समझना इंसानी भूल मात्र है।

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प्रत्येक इंसान ब्रह्म का हिस्सा होता:

हमारे प्राचीन वैष्णवाचार्यों ने ‘अहं ब्रह्मास्मि’ का मतलब कुछ इस तरह से बताया है – ‘मैं ब्रह्म का हूँ’। अर्थात मैं ब्रह्म का ही हिस्सा हूँ और मैं उनका सेवक मात्र हूँ, जो उनके आशीर्वाद से ही अपना जीवन बिता रहा हूँ। इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाला प्रत्येक इंसान ब्रह्म का हिस्सा होता है और उसकी मर्जी के बगैर वह कुछ भी नहीं कर सकता है।

ब्रह्म व परमात्मा दोनों शब्द ‘भगवान’ शब्द के पर्यायवाची:

‘शिव’ का मतलब ‘मंगलमय’ होता है। अतः ‘शिवोऽहम’ का पूरा मतलब होता है: ‘मैं मंगलमय भगवान का हूँ’। अर्थात मैं मंगलमय भगवान का सेवक हूँ और उन्ही का एक हिस्सा हूँ। मैं उनकी ही मर्जी से इस पृथ्वी पर आया हुआ हूँ। अगर हम श्रीमद् भागवत् महापुराण की बात करे तो ब्रह्म व परमात्मा दोनों शब्द ‘भगवान’ शब्द के पर्यायवाची शब्द हैं। इन दोनों का एक ही मतलब होता है। (भा…1/2/11)

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सभी जिव श्री कृष्ण के एक अंश मात्र हैं:

श्री कृष्ण ने गीता के 15वें अध्याय में पृथ्वी के सभी जीवों को अपना अंश कहा है, मतलब जिव या प्राणी भगवान ना होकर कृष्ण के एक अंश मात्र हैं। गीता के सातवें अध्याय में ही श्री कृष्ण ने यह भी बताया है कि संसार के सभी जिव व प्राणी मेरी परा प्रकृति के अंश हैं। गीता के 18वें अध्याय में कृष्ण ने बहुत प्यार से अर्जुन को समझाते हुए कहा है कि संसार के सारे जिव व प्राणी हमेशा उनके दास रहेंगे। मेरी सेवा करना, मेरे लिए समर्पित हो जाना और मेरा भजन करना ही इस संसार के सभी जिव व प्राणी का सबसे बड़ा कर्तव्य है। इसी से उन्हें सर्व सुख की प्राप्ति होगी और उन्हें जीवन में किसी चीज की कमी नहीं होगी।
विष्णु पुराण भगवान की अनंत शक्तियों के बारे में बताता है, इसके अनुसार भगवान की तीन मुख्य शक्तियाँ हैं-

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*- अंतरंगा शक्ति:

इस शक्ति से भगवान के धाम और उनकी विभिन्न लीलाओं का संचालन होता है।

*- क्षेत्रज्ञा शक्ति:

इस शक्ति को तटस्थ शक्ति भी कहा जाता है, संसार के सभी जिव इसी शक्ति के विभिन्न अंश मात्र हैं।

*- बहिरंगा शक्ति:

इसी शक्ति के द्वारा भगवान के इस संसार की रचना की है और इसी से संसार का संचालन भी किया जाता है।

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