यकीन मानिये आपने इतना खुबसूरत साँप कभी नहीं देखा होगा, यहाँ देखिये!
साँप ऐसा जिव है जिसे देखने के बाद लोगों को भय हो ही जाता है, भले ही साँप जहरीला हो या ना हो। कुछ लोग होते हैं जिन्हें साँपों से बड़ा प्रेम होता है और इसी प्रेम के वशीभूत होकर वह साँपों के ऊपर शोध करते हैं और साँप को पालते हैं। आपने अपने जीवन में बहुत तरह के साँप देखें होंगे, लेकिन हम जिस साँप की बात कर रहे हैं, वह अत्यंत ही दुर्लभ साँप है, जिसे बहुत कम लोगों ने ही देखा होगा।
इसकी खूबसूरती देखने के बाद भूल जायेंगे सबकुछ:
यकीन मानिये इतना खुबसूरत साँप आपने आज से पहले नहीं देखा होगा। यह साँप इतना सुन्दर है कि आप यह भूल जायेंगे कि साँप में जहर भी होता है। बस आप चाहेंगे कि हर समय इसी को देखते रहा जाये। इसकी खूबसूरती देखने के बाद आप दुनियाँ की अन्य खुबसूरती को भूल जायेंगे और प्रकृति की रचनाओं के ऊपर आपको आश्चर्य होने लगेगा। यह साँप बहुत ही दुर्लभ प्रजाति का है, बहुत ही कम जगहों पर देखा जाता है।
पहली बार उत्तर प्रदेश में देखा गया था:
इस साँप को पहली बार उत्तर प्रदेश में देखा गया था। अभी हाल ही में इस साँप को दूसरी बार उत्तराखंड में देखा गया है। आपको बता दें इस साँप को लाल मूंगा खुखरी साँप कहा जाता है। इस साँप को लाल मूंगा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका रंग बिलकुल लाल मुंगे की तरह ही चमकदार है। अगर वन विभाग के दावे की बात करें तो उनके अनुसार अभी इस लाल मूंगा खुखरी साँप से दुनियाँ पूरी तरह से अंजान है।
साँप का वैज्ञानिक नाम ओलिगोडॉन खीरीएसिस है:
इस साँप को आज से बहुत पहले 1936 में पहली बार लखीमपुर खीरी में देखा गया था, उसके बाद यह गायब हो गया था। इस अद्भुत साँप का वैज्ञानिक नाम ओलिगोडॉन खीरीएसिस रखा गया है। यह साँप उत्तराखंड में 2014 में एक सड़क किनारे किसी गाड़ी से खुचला हुआ मिला था, इसलिए इस साँप के ऊपर किसी भी प्रकार की शोध नहीं की जा सकी थी।
जिव विशेषज्ञ विपुल मौर्य और जयप्रताप सिंह कर रहे हैं शोध:
जिव विशेषज्ञ विपुल मौर्य जो पूर्वी तराई वन प्रभाग में सरीसृपों के ऊपर अध्ययन करते हैं और सरीसृप विशेषज्ञ जयप्रताप सिंह ने इस दुर्लभ साँप को आख़िरकार पकड़ ही लिया है। संयोग से दुबारा यह साँप जिन्दा सुरई रेंज में मिला था। अभी विशेषज्ञों की एक टीम इस साँप के ऊपर शोध कार्य कर रही है। जयप्रताप सिंह ने बताया है कि फिलहाल हम इसके रहन-सहन, वासस्थल और हावभाव के ऊपर नजर रख रहे हैं, जिससे यह पता चल सके कि इस दुर्लभ साँप की प्रजाति को विकसित किया जा सकता है की नहीं।