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शरद पूर्णिमा की रात का होता है खास महत्व, जानिए किस भगवान की होती है पूजा

भारतीय संस्कृतियों में कई तरह के त्यौहार मौजूद हैं. इसमें एक त्योहार खत्म नहीं होता कि दूसरे की तैयारी में लोग लग जाते हैं, खासतौर पर हिंदू धर्म में तो इसके अलग ही मायने होते हैं. अभी नवरात्रि और दशहरा ने अपना रंग छोड़ा भी नहीं तब तक शरद ऋतु ने आगमन कर दिया है. शरद पूर्णिमा की आधी रात में 16 कलाओं से युक्त चंद्रमा अमृत की वर्षा पृथ्वी पर करता है. आज समय के साथ बहुत कुछ बदल गया है लेकिन शरद पूर्णिमा का त्यौहार मनाने वाले वैसे ही मनाते हैं जैसा कई सालों से मनाते आ रहे है. इस दिन के लिए की लोगों में धार्मिक अवधारणा है कि रात में खीर आसमान के नीचे रखो दो तो उसमें जो अमृत ऊपर से बरसाया जाता है वो आकर गिरता है और उसे प्रसाद के तौर पर लोग ग्रहण करते हैं. शरद पूर्णिमा की रात का होता है खास महत्व, इस दिन को आज के आर्टिकल में समझिए और इस पर्व का आनंद उठाइए.

शरद पूर्णिमा की रात का होता है खास महत्व

हिंदू धर्म के अनुसार लोग अपने घर के आंगन या छत पर किसी बर्तन में खीर बनाकर उसे किसी ऊंची जगह टांग देते हैं जिससे देवताओं द्वारा रात में जो अमृत बरसाया जाए उसकी कुछ बूंदे उसमें भी आ सके. वैसे इससे जुड़ी बहुत सी पौराणिक मान्यताएं और कथाएं भी हैं जिनके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं. शास्त्रों में शरद पूर्णिमा के बारे में लिखा है कि इस रात्रि चंद्रमा अपनी सभी कलाओं के साथ धरती पर अमृत की वर्षा करते हैं और रात 12 बजे होने वाली इस अमृत वर्णा का लाभ मनुष्य को मिले इसी उद्देश्य से चंद्रोदय के समय गगन तले खीर या दूध रखा जाता है जिसका सेवन रात 12 बजे के बाद किया जाता है. इस खीर को खाने वाला रोगी निरोगी बन जाता है और इसके अलावा भी जिन लोगों की बुद्धि भ्रमित होती है वह लोग सही रास्ते पर आ जाते हैं, इन सबको लेकर ऐसी ही मान्यताएं शास्त्रों में लिखी हैं. ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी, भगवान शिव, कुबेर जी और श्रीकृष्ण की पूजा करने का शुभ मुहुर्त माना जाता है. ऐसा भी कहा गया है कि जब चंद्र की शुभ किरणें आंगन में गिरती हैं तो उस घर-आंगन में खुशियां ही खुशियां आती हैं.

इस दिन मनाई जाएगी शरद पूर्णिमा

प्राचीन काल से ही शरद पूर्णिमा को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. शरद पूर्णिमा से हेमंत ऋतु की शुरुआत होती है और इस बार ये पर्व 23 अक्टूबर के दिन पड़ रहा है यानी इसी रात 12 बजे खीर रखनी होगी. इस पर्व को कोजागिरी पूर्णिमा भी कहा जाता है और उस खीर को खाने से मनुष्य की उम्र बढ़ती है और इसी के बाद हेमंत ऋतु शुरु हो जाती है. इस दिन महालक्ष्मी की भी पूजा की जाती है. वैसे तो उनकी पूजा में रंगोली और उल्लू स्वर को शुभ माना जाता है लेकिन कई जगहों पर इस रात उनके बिना भी मांलक्ष्मी का स्मरण किया जाता है. कुछ जगहों पर इस रात को डांडिया का आयोजन किया जाता है और ऐसा माना जाता है कि मध्य रात्रि लोग बरसने वाले अमृत को महसूस भी करते हैं.
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