अध्यात्म

इस मंदिर में रात में रूकने वाले की हो जाती है मौत

सतना जिले की मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर मैहर शारदा के नाम से प्रसिद्ध एक देवी मंदिर हैं।जो कि मैहर नगरी से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर बना हुआ है।इस मंदिर की मान्यता इतनी है कि लोग दूर-दूर से यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं।देवी मां के दर्शन के लिए भक्तों को 1063 सीढियों का सफर पूरा करना होता है।इस मंदिर में दर्शन के लिए हर वर्ष लाखों की संख्या में भक्तगढ़ माता के दर्शन के लिए आते हैं।पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर ही माता शारदा का एक मात्र मंदिर है। और यही एक ऐसा मंदिर है जिसमें मां शारदा के साथ इसी पर्वत की चोटी पर श्री काल भैरवी,हनुमान जी, देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर,शेष नाग,फूलमति माता,ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है।

इस मंदिर को लेकर कई पौराणिक कथाएं और मान्याताएं मशहूर हैं जिनमें से एक ये है कि यदि आप इस मंदिर में रात में रूकने का प्रयास करते हैं तो आपकी मौत हो जाती है।स्थानीय निवासियों के अनुसार आल्हा और ऊदल जिन्होंने पृथ्वी राज चौहान के साथ भी युद्ध किया था उन दोनों ने ही जंगल के बीचों बीच शारदा माता के इस  मंदिर की खोज की थी।जिसके बाद आल्हा ने 12 वर्षों की कड़ी तपस्या कर देवी मां को प्रसन्न किया था और आल्हा की तपस्या से प्रसन्न होकर माता ने उसे दर्शन दिए  और अमरत्व का वरदान दिया था।। आल्हा माता को शारदा माई कह कर पुकारा करता था। तभी से ये मंदिर भी माता शारदा माई के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

आज भी लोगों का मानना है कि आल्हा और ऊदल दोनों ही माता के दर्शन के लिए आते है ,और हर दिन सबसे पहले आल्हा और ऊदल माता के दर्शन करने आते हैं और माता रानी का पूरा श्रृंगार करते हैं। जिस वजह से मंदिर के द्वार को रात 2 से 5 बजे तक बंद किया जाता है । मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है, जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। यही नहीं,तालाब से 2 किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे।

कैसे बना था माता रानी का मंदिर

मां शारदा के इस मंदिर की उत्पत्ति के पीछे एक बहुत ही प्राचीन पौराणिक कहानी है। सम्राट दक्ष की पुत्री सती भगवान शिव की परम भक्त थी और वो उनसे शादी करना चाहती थीं, लेकिन दक्ष को सती का भगवान शिव के प्रति रूझान जरा भी पसंद ना था,वो भगवान शिव को भगवान नहीं बल्कि  भूतों और अघोरियों का साथी मानते थे और इस विवाह के विरोधी थे, फिर भी सती ने अपने भगवान शिव से शादी कर ली। कहानी के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने ‘बृहस्पति सर्व’ नामक यज्ञ रचाया, इस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र  और अन्य देवी-देवताओं को भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन जान-बूझकर उन्होंने भगवान महादेव को नहीं बुलाया। जिस वजह से सती काफी दुखी हुई और उन्होंने अपने पिता से शिव जी को आमंत्रित न करने की वजह पूछी जिस पर दक्ष ने भगवान शिव के बारे में अपशब्द कहा, तब इस अपमान से पीड़ित होकर सती ने अपने शरीर को तेज से भस्म कर दिया, जब शिवजी को इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया।तब भगवान शंकर ने माता सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करने लगे।

भगवान शिव के इस विकराल रूप को देखते हुए और ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने ही सती के अंग को इक्यावन हिस्सों में विभाजित कर दिया। जहाँ-जहाँ सती के शव के विभिन्न अंग और आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्ति पीठों का निर्माण हुआ। उन्हीं में से एक शक्ति पीठ है मैहर देवी का मंदिर, जहां मां सती का हार गिरा था। मैहर का मतलब है, मां का हार, इसीलिये इस जगह का नाम मैहर पड़ा।

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