पावागढ़ शक्तिपीठ, यहाँ आने वाले सभी भक्तों की हर मुराद होती है पूरी
पावागढ़ शक्तिपीठ: वैसे तो आजकल नवरात्रि का दिन चल रहा है इसलिए हर तरफ माँ दुर्गा की पूजा पाठ हो रहा है। वहीं आपको बता दें की हिन्दू धर्म में माता दुर्गा अथवा पार्वती के नौ रूपों को एक साथ कहा जाता है। वहीं आपको बता दें इन 9 दुर्गा को पापों के विनाशिनी भी कहा जाता है ये बात तो आप सभी जानते ही हैं कि इन देवी के अलग-अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परंतु यह सब एक हैं। इसके अलावा नवदुर्गा के शक्तिपीठों का भी बेहद ही महत्व है जिसमें एक है पावागढ़ शक्तिपीठ।
माना जाता है कि एक जमाने में दुर्गम पर्वत पर चढ़ाई तकरीबन नामुमकीन सी हुआ करती थी, चारों तरफ खाइयों से घिरे होने और तेज हवाएँ दिल की धड़कन तेज़ कर देती थी और सारे हौसले पस्त हो जाया करते थे और यही वजह थी की इसे पावागढ़ कहा जाता है, इसका मतलब है एक ऐसी जगह जहां पवन का वास हो।
दरअसल आपकी जानकारी के लिए सबसे पहले तो बता दें कि शक्तिपीठ उन पूजा स्थलों को कहा जाता है, जहां सती मां के अंग गिरे थे। जी हां यही कारण है को उन स्थानों को शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है।
जी हां आपको बता दें कि पुराणों के अनुसार पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित हुई सती ने योगबल द्वारा अपने प्राण त्याग दिए थे। सती की मृत्यु से व्यथित शिवशंकर उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए ब्रह्मांड में भटकते रहे। इस समय मां के अंग जहां-जहां गिरे वहीं शक्तिपीठ बन गए।
आपको बताते चलें कि ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं, देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। जिनमें से पावागढ़ शक्तिपीठ भी एक है ।
वहीं आपको बता दें कि आज हम आपको माता के एक विशेष शक्तिपीठ के बारे में बताने जा रहे हैं जी हां हम बात करने जा रहे है शक्ति के उपासकों के लिए गुजरात की ऊंची पहाड़ी पर बसा पावागढ़ शक्तिपीठ का मंदिर जो कि काली माता का मंदिर है। ये मंदिर पूरे देशभर में प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। हम आपको बताने जा रहे है पावागढ़ शक्तिपीठ मंदिर के बारे में जो गुजरात में एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है।
यह शक्तिपीठ वड़ोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर गुजरात की प्राचीन राजधानी चम्पारण्य में एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। पावागढ़ शक्तिपीठ के बारे में बताया जाता है यहाँ पर सती का वक्षस्थल गिरा था। और पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार जहाँ-जहाँ माता सती के अंग के टुकड़े, धारण किए हुए वस्त्र तथा आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये और तो और ये अत्यंत पावन तीर्थ स्थान कहलाये।
पावागढ़ शक्तिपीठ से जुड़ी कहानी
सबसे पहले तो आपको बता दे कि पावागढ़ के नाम के पीछे भी एक कहानी है। कहा जाता है कि इस दुर्गम पर्वत पर चढ़ाई लगभग असंभव काम था। चारों तरफ खाइयों से घिरे होने के कारण यहाँ हवा का वेग भी बहुत तेज़ था, इसलिए इसे पावागढ़ अर्थात ऐसी जगह कहा गया जहाँ पवन का वास हो।
पावागढ़ शक्तिपीठ जाने का रास्ता
अब बात करते हैं पावागढ़ शक्तिपीठ जाने के रास्ते के बारे में क्योंकि जाहिर सी बात है इतना कुछ सुनने के बाद आप भी जाने की इच्छा जरूर करेंगे। वही एक बात ये भी बताया जाता है कि पावागढ़ पहाड़ी की शुरुआत चंपानेर से होती है। इसकी तलहटी में चंपानेरी नगरी है, जिसे महाराज वनराज चावड़ा ने अपने बुद्धिमान मंत्री के नाम पर बसाया था।
यहाँ लगभग 1471 फुट की ऊंचाई पर माची हवेली स्थित है। और तो और यहां स्थित मंदिर तक जाने के लिए माची हवेली से रोप वे की सुविधा उपलब्ध है। अगर आप चाहे तो यह से पैदल भी पावागढ़ शक्तिपीठ तक पहुंच सकते हैं इसके लिए आपको मंदिर तक पहुंचने लिए लगभग 250 सीढ़ियां चढ़नी होती है।