अध्यात्म

लोपाक्षी मंदिर का हवा में झूलता खंभा आज भी दे रहा विज्ञान को चुनौती

न्यूज़ट्रेंड वेब डेस्क: भारत के दक्षिणी छोर में स्थित राज्य जिसको कुछ ही समय पहले दो राज्यों में विभक्त कर दिया गया, जिसमें एक का नाम पड़ा तेलांगना तो दूसरे को आंध्र प्रदेश नाम दिया गया।और इसी आंध्र प्रदेश राज्य के अनंतपुर जिले में एक विशाल मंदिर लोपाक्षी है जिसके बारे में कुछ ऐसे रहस्य हैं जिसको आज तक कोई जान नहीं पाया है।जिसके बारे में बड़ा से बड़ा इंजीनियर भी कुछ पता नहीं कर पाया।

बता दें कि ये मंदिर 72 पिलरों पर बना हुआ है, जिनमें से एक पिलर हवा में झूल रहा है लेकिन इसके बावजूद भी वो इस मंदिर के भार को उठाए हुए है।ये मंदिर कला और कलाकारों की कल्पना का एक अद्भुत मेल है, जो आज भी विज्ञान को चुनौती दे रहा है।वैसे तो इस मंदिर को कई नामों से बुलाया जाता है जैसे वीरभद्र और लोपाक्षी लेकिन पूरे विश्व में ये लोपाक्षी नाम से प्रसिद्ध है।इस मंदिर को लेकर के कई कहानियां सुनने में आती हैं जिनके बारे में आज हम आपको इस लेख में बताएंगे।

कैसे पड़ा मंदिर का नाम लोपाक्षी

इस मंदिर का नाम लोपाक्षी है जिसको लेकर भी एक कहानी प्रचलित है।कहा जाता है कि त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम लक्ष्मण और सीता माता के साथ वनवास काट रहे थे, उसी समय लंका का राजा रावण सीता माता का हरण कर के वायु मार्ग से जा रहा था जहां पर उनको जटायु ने रोकने की कोशिश की और दोनों में युद्ध हुआ था और जटायु घायल होकर गिर गए थे।जब भगवान राम और लक्ष्मण सीता माता की खोज करते हुए उस स्थान पर पहुंचे थे, जहां पर जटायु ने उनको पूरी कहानी बतायी, तब श्रीराम ने कहा था,  “हे पक्षीराज जटायु उठो, मैं आपको पहले की ही तरह स्वस्थ कर देता हूं”, हे पक्षी उठो का तेलगू में अर्थ होता है “लोपाक्षी” इसी वजह से इस मंदिर का नाम लोपाक्षी पड़ गया।

किसने करवाया मंदिर का निर्माण

इस मंदिर के निर्माण को लेकर भी कई तरह की कहानियां हैं, जिनमें से एक है कि इस मंदिर का निर्माण पुरातन काल में महर्षि अगस्त ने करवाया था।वहीं कुछ लोगों की मानें तो इस मंदिर का निर्माण साल 1583 में विजयनगर के राजा के राज में काम करने वाले दो भाईयों वीरन्ना और वीरूपन्ना ने करा था।लेकिन कुछ समय बाद विजयनगर की सत्ता में परिवर्तन हुआ और नए राजाओं ने इस लेपाक्षी मंदिर का निर्माण करने वाले वीरुपन्ना शिल्पकार की आंख निकालने का फरमान जारी किया. और वीरुपन्ना ने राजा का आदेश मानते हुए खुद ही अपनी आंखें कुर्बान कर दीं.

कहा जाता है कि मंदिर की चट्टानों पर वीरुपन्ना की आंखों और खून के निशान आज भी मौजूद हैं. साल 1914 में कुछ अंग्रेज अधिकारियों को इन कहानियों पर यकीन नहीं हुआ तो उन्होंने खून के इन धब्बों की जांच करवाई. सदियों बाद बाद भी आज भी इंसानी खून के ये धब्बे इन चट्टानों पर कायम हैं.

बता दें कि इस मंदिर में भगवान शिव विष्णु और वीरभद्र की मूर्तियां भी देखने को मिलती हैं।यहां पर इन तीनों भगवान के अलग-अलग मंदिर भी मौजूद हैं।

नंदी मूर्ती

इस मंदिर परिसर में ही एक विशाल नंदी की मूर्ती भी बनी हुई है, ऐसा कहा जाता है कि पूरे विश्व में नंदी की इतनी बड़ी मूर्ती कही भी नहीं हैं। साथ ही इस मूर्ती की खासियत ये भी है कि ये पूरी मूर्ती केवल एक पत्थर पर ही बनी हुई है।

शिवलिंग

इसी मंदिर परिसर के दूसरे छोर में एक विशाल शिवलिंग बना हुआ है जिसके ऊपर सात फन वाला नाग बैठा हुआ है।इस मूर्ती की भी एक खास बात ये है कि ये विशाल मूर्ती भी एक पत्थर पर बनी हुई है।

रामपद्म

मंदिर परिसर में ही एक ओर एक विशाल सा पाव का निशान मौजूद है,जिसे रामपद्म कहा जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि श्रीराम के पैर हैं तो वहीं कुछ लोग इसे सीता माता के पैरों का निशान मानते हैं।

लोपाक्षी मंदिर सदियों से कला और विज्ञान के मेल  की गवाही दे रहा है। मंदिर की बनावट से लेकर के मंदिर के अंगर बनी नृत्य करती मूर्तियां देखकर उन कलाकारों की तारीफ करते नहीं थकता है कि किस तरह से उनकी छैनी और हथौड़ी ने इन मूर्तियों को जीवंत दे डाला।

लोपाक्षी मंदिर सदियों से कला और विज्ञान के अनोखे मेल की गवाही दे रहा है. वो बेमिसाल चित्रकार होंगे, जिन्होंने विजयनगरम कला को मंदिर की दीवार पर उतारा. वो कलाकार मूर्तिकार भी रहे होंगे, जिनके छैनी और हथौड़ी ने इन मूर्तियों को जीवंत बना डाला है.मंदिर. कला और कलाकार की कल्पना का अद्भुत मेल है. लटकता हुआ ये खंभे केवल कला को ही नहीं प्रदर्शित कर रहा है, बल्कि ज्ञान और विज्ञान को भी चुनौती दे रहा।

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