तिल चौथ की कहानी, जानिये कैसे मनाते हैं तिल चौथ, क्या है पूजा और उद्यापन विधि
न्यूजट्रेंड वेब डेस्कः कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को तिल चौथ मनाते हैं। तिल चौथ को ही सकट चौथ के नाम से जानते हैं। सकट का अर्थ होता है संकट। इस तिथि को ही भगवान गणेश ने देवी-देवताओं की मदद करके उनके संकट दूर किए थे तबसे इस दिन को संकट चौथ के नाम से जानते हैं।इस दिन भगवान गणेश और चौथ माता की पूजा होती है। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर गणेश जी को आशीर्वाद देते हुए कहा था जो भी इस दिन व्रत करेगा उसके सभी संकट दूर हो जाएंगे। भगवान गणेश को तिलकुट्टा बनाकर भोग लगाते हैं, तिल चौथ की कहानी ( til chauth ki kahani ) सुनते हैं और व्रत करने वाला चांद को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोलता है। प्रसाद के रुप में पहले तिलकुट्टा खाते हैं फिर भोजन करते हैं।
जानिये कैसे बनता है तिलकुट्टा ( tilkutta banaane ki vidhi , tilkutta recipe )-
सामाग्री- सफेद या काला तिल, गुड़ या बूरा- 125 ग्राम
विधि- सबसे पहले तिल को साफ करके भून लें। सफेद और काले तिल को अलग भूनें। अब मिक्सी में अलग अलग पीस लें। ध्यान रखें बहुत पतला नहीं करना है थोड़े मोटे दानें रहें तो बेहतर है। अब गुड़ को कद्दू कर करके तिल से साथ मिक्सी में पीस लें। अब मिक्सचर को बाहर निकालंगे तो इसे हाथ से गोल गोल घुमाकर लड्डू का रुप दे सकते हैं। चाहें तो गुड़ की जगह चीनी के बूरा का इस्तेमाल करें। अब आपका प्रसाद तैयार है। अब बताते हैं पूजा की विधिः
तिल चौथ पूजा की विधिः ( til Chauth Puja Vidhi )
सबसे पहले पूजा की मेज को अच्छे से धों लें। पीजा स्थल हमेशा साफ रखें औऱ पूजा के समय अच्छे से सफाई करें। मेज को धोने के बाद साफ करें और उस पर साफ कपड़ा बिछा दें। मेज पर थोड़े गेंहू के साथ गणेश भगवान की मूर्ति रखें। एक साफ लोटे में जल भरकर रख लें। अब पूजा की थाली तैयार करें। उसमें रोली, अक्षत, लच्छा, मेहंदी, गेंहू, गुड़ बनाया हुआ तिल कुट्टा व दक्षइमा के पैसे रखें। अगर चौथ बनी हो तो गेंहूं पर चौथ रखें। अगर चौथ नहीं बनी हो तो चांद का कोई सामान रख सकते हैं।
अब लोटे पर स्वास्तिक का निशान बनाएं और मेज के चारों तरफ रोली लगा लें। अब पूजा शुरु करें। गणेश जी की मूर्ति के सामने जल के छींटे से स्नान कराएं। फिर रोली का टीका लगाकर अक्षत अर्पित करें, लच्छा चढ़ाएं। इसके बाद फूल अर्पित करें। दक्षिणा के रुप में कुछ रुपए चढ़ाएं।तिलकट्टु का लड्डू चढ़ाएं। इसके बाद दिया दिखाकर भगवान गणेश का ध्यान करें। ठीक इसी प्रकार से चौथ माता की पूजा करें। फिर हाथ में तिल, गुड़ व गेंहू लेकर तिल चौथ की कहानी सुनें।
तिल चौथ की कहानी ( Til chauth ki kahani )
बोलो गणेश जी महाराज की – जय !!
!!! चौथ माता की – जय !!!
तिल चौथ की कहानी ( til chauth ki kahani ) सुनते हैं :-
एक शहर में देवरानी जेठानी रहती थी । जेठानी अमीर थी और देवरानी गरीब थी।
देवरानी गणेश जी की भक्त थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काट कर बेचता था और अक्सर बीमार रहता था। देवरानी जेठानी के घर का सारा काम करती और बदले में जेठानी बचा हुआ खाना, पुराने कपड़े आदि उसको दे देती थी। इसी से देवरानी का परिवार चल रहा था।
माघ महीने में देवरानी ने तिल चौथ का व्रत किया। पाँच रूपये का तिल व गुड़ लाकर तिलकुट्टा बनाया। पूजा करके तिल चौथ की कथा ( तिल चौथ की कहानी ) सुनी और तिलकुट्टा छींके में रख दिया और सोचा की चाँद उगने पर पहले तिलकुट्टा और उसके बाद ही कुछ खायेगी।
कथा सुनकर वह जेठानी के यहाँ चली गई। खाना बनाकर जेठानी के बच्चों से खाना खाने को कहा तो बच्चे बोले माँ ने व्रत किया हैं और माँ भूखी हैं। जब माँ खाना खायेगी हम भी तभी खाएंगे।
जेठजी को खाना खाने को कहा तो जेठजी बोले ” मैं अकेला नही खाऊँगा , जब चाँद निकलेगा तब सब खाएंगे तभी मैं भी खाऊँगा ” जेठानी ने उसे कहा कि आज तो किसी ने भी अभी तक खाना नहीं खाया तुम्हें कैसे दे दूँ ?
तुम सुबह सवेरे ही बचा हुआ खाना ले जाना। देवरानी के घर पर पति , बच्चे सब आस लगाए बैठे थे की आज तो त्यौहार हैं इसलिए कुछ पकवान आदि खाने को मिलेगा। परन्तु जब बच्चो को पता चला कि आज तो रोटी भी नहीं मिलेगी तो बच्चे रोने लगे।
उसके पति को भी बहुत गुस्सा आया कहने लगा सारा दिन काम करके भी दो रोटी नहीं ला सकती तो काम क्यों करती हो ? पति ने गुस्से में आकर पत्नी को कपड़े धोने के धोवने से मारा। धोवना हाथ से छूट गया तो पाटे से मारा।
वह बेचारी गणेश जी को याद करती हुई रोते रोते पानी पीकर सो गयी।
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उस दिन गणेश जी देवरानी के सपने में आये और कहने लगे ” धोवने मारी पाटे मारी सो रही है या जाग रही है ”
वह बोली ” कुछ सो रही हूँ , कुछ जाग रही हूँ ”
गणेश जी बोले ,” भूख लगी हैं , कुछ खाने को दे ”
देवरानी बोली ” क्या दूँ , मेरे घर में तो अन्न का एक दाना भी नहीं हैं ” जेठानी बचा खुचा खाना देती थी आज वो भी नहीं मिला। पूजा का बचा हुआ तिल कुट्टा छींके में पड़ा हैं वही खा लो।
तिलकुट्टा खाने के बाद गणेश जी बोले – ” धोवने मारी पाटे मारी निमटाई लगी है , कहाँ निमटे ”
वो बोली ” ये पड़ा घर , जहाँ इच्छा हो वहाँ निमट लो ”
फिर गणेश जी बोले ” अब कहाँ पोंछू :
अब देवरानी को बहुत गुस्सा आया कि कब के तंग करे जा रहे हैं , सो बोली ” मेरे सर पर पोछो और कहाँ पोछोगे ”
सुबह जब देवरानी उठी तो यह देखकर हैरान रह गई कि पूरा घर हीरे-मोती से जगमगा रहा है , सिर पर जहाँ बिंदायकजी पोछनी कर गये थे वहाँ हीरे के टीके व बिंदी जगमगा रहे थे।
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उस दिन देवरानी जेठानी के काम करने नहीं गई। बड़ी देर तक राह देखने के बाद जेठानी ने बच्चो को देवरानी को बुलाने भेजा। जेठानी ने सोचा कल खाना नहीं दिया इसीलिए शायद देवरानी बुरा मान गई है।
बच्चे बुलाने गए और बोले चाची चलो माँ ने बुलाया है सारा काम पड़ा हैं।
दुनियां में चाहे कोई मौका चूक जाए पर देवरानी जेठानी आपस में कहने का मौके नहीं छोड़ती। देवरानी ने कहा ” बेटा बहुत दिन तेरी माँ के यहाँ काम कर लिया ,अब तुम अपनी माँ को ही मेरे यहाँ काम करने भेज दो ”
बच्चो ने घर जाकर माँ को बताया कि चाची का तो पूरा घर हीरे मोतियों से जगमगा रहा है। जेठानी दौड़ती हुई देवरानी के पास आई और पूछा कि ये सब हुआ कैसे ? देवरानी ने उसके साथ जो हुआ वो सब कह डाला।
घर लौटकर जेठानी अपने पति से कहा कि आप मुझे धोवने और पाटे से मारो।
उसका पति बोला कि भलीमानस मैंने कभी तुम पर हाथ भी नहीं उठाया। मैं तुम्हे धोवने और पाटे से कैसे मार सकता हूँ। वह नहीं मानी और जिद करने लगी। मजबूरन पति को उसे मारना पड़ा।
उसने ढ़ेर सारा घी डालकर चूरमा बनाया और छीकें में रखकर और सो गयी।
रात को चौथ विन्दायक जी सपने में आये कहने लगे , “भूख लगी है , क्या खाऊँ ”
बोलो गणेश जी महाराज की – जय !!
!!! चौथ माता की – जय !!! तिल चौथ की कहानी ( Til chauth ki kahani ) आगे पढ़ें
जेठानी ने कहा ” हे गणेश जी महाराज , मेरी देवरानी के यहाँ तो आपने सूखा चूंटी भर तिलकुट्टा खाया था , मैने तो झरते घी का चूरमा बनाकर आपके लिए छींके में रखा हैं , फल और मेवे भी रखे है जो चाहें खा लीजिये ”
गणेश जी बोले ,”अब निपटे कहाँ ”
जेठानी बोली ,”उसके यहाँ तो टूटी फूटी झोपड़ी थी मेरे यहाँ तो कंचन के महल हैं जहाँ चाहो निपटो ”
फिर गणेश जी ने पूछा ,”अब पोंछू कहाँ ”
जेठानी बोली ” मेरे ललाट पर बड़ी सी बिंदी लगाकर पोंछ लो ”
धन की भूखी जेठानी सुबह बहुत जल्दी उठ गयी। सोचा घर हीरे जवाहरात से भर चूका होगा पर देखा तो पूरे घर में गन्दगी फैली हुई थी। तेज बदबू आ रही थी। उसके सिर पर भी बहुत सी गंदगी लगी हुई थी।
उसने कहा “हे गणेश जी महाराज , ये आपने क्या किया ” मुझसे रूठे और देवरानी पर टूटे।
जेठानी ने घर और की सफाई करने की बहुत ही कोशिश करी परन्तु गंदगी और ज्यादा फैलती गई। जेठानी के पति को मालूम चला तो वह भी बहुत गुस्सा हुआ और बोला तेरे पास इतना सब कुछ था फिर भी तेरा मन नहीं भरा।
परेशान होकर चौथ के बिंदायक जी ( गणेशजी ) से मदद की विनती करने लगी। बिंदायक जी ने कहा ” देवरानी से जलन के कारण तूने जो किया था यह उसी का फल है। अब तू अपने धन में से आधा उसे देगी तभी यह सब साफ होगा ”
बोलो गणेश जी महाराज की – जय !!
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उसने आधा धन बाँट दिया किन्तु मोहरों की एक हांडी चूल्हे के नीचे गाढ़ रखी थी। उसने सोचा किसी को पता नहीं चलेगा और उसने उस धन को नहीं बांटा ।
उसने कहा ” हे चौथ बिंदायक जी , अब तो अपना यह बिखराव समेटो ” वे बोले , पहले चूल्हे के नीचे गाढ़ी हुयी मोहरो की हांडी सहित ताक में रखी दो सुई की भी पांति कर।
इस प्रकार बिंदायकजी ने सुई जैसी छोटी चीज का भी बंटवारा करवाकर अपनी माया समेटी।
हे गणेश जी महाराज , जैसी आपने देवरानी पर कृपा करी वैसी सब पर करना। कहानी कहने वाले , सुनने वाले व हुंकारा भरने वाले सब पर कृपा करना। किन्तु जेठानी को जैसी सजा दी वैसी किसी को मत देना।
बोलो गणेश जी महाराज की – जय !!!
चौथ माता की – जय !!!
तिल चौथ की कहानी ( til chauth ki kahani ) समाप्त
तिलकुट्टे पर रुपए रख कर बयाना निकाल कर सांस को दें और पैर छूकर आशीर्वाद लें। अगर सास ना हो तो जेठानी या ननद को दिया जा सकता है। इसके बाद तिलकुट्टा खाए फिर भोजन ग्रहण करें। अगले दिन चौथ माता या चांदी की जो भी वस्तु पूजा में रखी थी से वापस अपने पास रख लें और बाकी सामान ब्राह्मण को दान कर दें।
तिल चौथ उद्यापन विधि ( til chauth udhyapan vidhi )
चौथ के उद्यापन के लिए ये जान लें कि जिस साल घर में लड़के का जन्म हुआ हो या लड़के की शादी हुई हो उस साल किया जाता है। तिल चौथ के उद्यापन के दिन तीन पाल तिल और आधा किलो गुड़ या बूरा लेकर तिलकुट्टा बनाया जाता है। उद्यापन के दिन तेरह सुहागिनों को तिलकुट्टा खिलाकर भोजन कराया जाता है। साथ ही सास को बयाना देकर आशीर्वाद लिया जाता है।
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