निदा फाजली जन्मदिन विशेष- जिस शख्स ने शायरी और गजलों से रुह छू लिया
न्यूज़ट्रेन्ड वेब डेस्क: हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी जिस को भी देखना कई बार देखना…..जिंदगी के फलसफे को कितनी आसानी से शायरी में ढाल देते थे निदा फाजली (Nida fazli ) । फाजली की शायरी, दोहों, गजलों, नज्मों में जिंदगी और संगीत दोनों की खुशबी आती है। निदा का मतलब होता है रुह। इसे शब्दों का खेल ही समझिए कि जिसे आप आत्मा कहेंगे तो वो सूफियाना माहौल ना पैदा हो, लेकिन रुह कहेंगे तो बेहतर समझ सकेंगे। निदा का अर्थ ही है रुह और निदा की कलाकारी रुह को ही छूने वाली थी। उनकी नज्मों में आपको जिंदगी का हर सार मिलेगा। अगर दर्द में डूबे हैं तो नकी गजलें मरहम हैं, विदेश में हो तो शायरी से अपना दिल बहला लीजिए।
निदा ने अपनी फिल्मी गीत की शुरुआत निर्देशक कमाल अमरोही की फिल्म के साथ की। उनके गीत में भी उनकी शायरी वालाही सुकून था जो रुह को राहत देता था। शायरी मोहब्बत करने वालों, उसमें हार जाने वालों या उसे पार कर जाने वालों के ही बनी है। निदा उसी मोहब्बत को भी बेहतरीन तरीके से मसझते थे तभी तो उन्होंने लिखा था कि होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है…इश्क कीजे फिर समझिए जिंदगी क्या चीज है। यहां पढ़ें उनकी लिखी कुछ नज्में-
निदा फाजली की ग़ज़लें
बदला ना अपने आप को, जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से, मगर अजनबी रहे
बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
जो बित गया है वो गुजर क्यों नहीं जाता
दिल में ना हो जुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती
खैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कहीं जमीन तो कहीं आसमान नहीं मिलता
फकीर मिज़ाज़ हूं में, अपना अंदाज औरों से जुदा रखता हूं,
लोग मंदिर मस्जिद में जाते हैं मैं अपने दिल में खुदा रखता हूं….
निदा फ़ाज़ली बायोग्राफी ( Nida Fazli Biography )
निदा फाजली का जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली के कश्मीरी परिवार में हुआ था।. 8परवरी 2016 को मुंबई में निधन हुआ था।1969 में निदा फाजली की शायरी का पहला संकलना छपा। इसके बाद मोर नाचा, खोया हुआ सा कुछ, आंखों भर आकाश जैसे संग्रह छपे। इसके बाद वो लोगों के बीच लोकप्रिय होने लगे। खोया हुआ सा कुछ इतनी प्रसिद्ध हुई कि उनकी कलाकारी के लिए उन्हें अकादेमी पुरुस्कार से सम्मानित किया। निदा हिंदी और उर्दू के शब्दों से लोगों के दिल में जादू किया करते थे। उनकी फिल्मी गीत और शायरी में कभी लड़ाई नहीं हुई। उनकी लफ्जों के मीठेपन में लोग मदहोश हो जाया करते थे।
कुछ भी बचा ना कहने को हर बात हो गई
आओं कहीं शराब पिए रात हो गई
गम है अवारा अकेले में भटक जाता है
जिस जगह रहिए वहां मिलते मिलाते रहिए
कोई हिंदू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है
सब ने सान न बनने की कसम खाई है
अब किसी से भी शिकायट न रही
जाने किस किस से गिला था पहले
उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलों यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए
आज निदा फाजली हमारे बीच भले ना हो, लेकिन उनकी गीत उनकी शायरी और गजलें हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगी।