Spiritual

भगवान गणेश को क्यों अप्रिय हैं तुलसी, जानें क्या है इसके पीछे का रहस्य

हिन्दू धर्म के ग्रन्थों और पुराणों में बताया गया है कि भगवान विष्‍णु, राम और कृष्‍ण भगवान को यदि तुलसी जी का भोग लगाया जाए तो इससे भगवान बेहद प्रसन्‍न होते हैं और प्रसाद को ग्रहण करते हैं, परंतु शास्त्रों में ही ऐसा भी बताया गया है की देवों के देव महादेव और माता पार्वती के पुत्र श्री गणेशजी के भोग में तुलसी का प्रयोग पूरी तरह से वर्जित बताया गया है। ऐसा माना जाता है की यदि गणेशजी को तुलसी का भोग लगाये जाने से भगवान नाराज हो जाते हैं। हिन्दू धर्म-ग्रंथों के अनुसार बताया गया है की भगवान गणेश श्री कृष्ण का अवतार हैं और भगवान श्री कृष्ण स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं।

यहाँ पर ध्यान देने वाली बात ये है की तुलसी, भगवान विष्णु को इतनी ज्यादा प्रिय कि भगवान विष्णु के ही एक रूप शालिग्राम का विवाह तुलसी से होता है जिसे हिन्दू धर्म में उत्सव की तरह तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि हिंदू धर्म में तुलसी को सर्वाधिक पवित्र तथा माता स्वरुप माना जाता है। आपको यह भी बताते चलें की आयुर्वेद की दृष्टि से भी तुलसी को औषधीय गुणों वाला पौधा माना जाता है साथ ही साथ शास्त्रों में तुलसी को मां लक्ष्मी कहकर भी पुकारा गया है। अब यहाँ बात ये आती है की आखिर ऐसी कौन सी बात है जो तुलसी भगवान गणेश को अप्रिय है। शास्त्रों के अनुसार इसके पीछे एक वजह बताया गया है, जो श्री गणेश और तुलसी जी के संबंध में है, जिसकी वजह से गणेश भगवान तुलसी को पसंद नही करते।

इसके सम्बन्ध में एक पौराणिक कथा है

पुराणों के अनुसार बताया गया है कि कभी एक बार भगवान गणेश गंगा नदी के तट पर अपनी तपस्‍या में लीन थे संयोगवस उसी दौरान देवी तुलसी विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा पर निकली हुई थी। देवी तुलसी सभी तीर्थस्थलों का भ्रमण करते हुए गंगा के तट पर पहुंची। राह से गुजरते वक़्त उनकी नजर श्री गणेश पर पड़ी जिन्होने अपने पूरे तन पर चन्दन का लेप लगाया हुआ था और चमकीले पीले वस्त्र में उनका बदन और भी ज्यादा सुनहरा लग रहा था, गणेश जी के इस रूप को देखकर देवी तुलसी उनपर एकदम से मोहित हो गयी और उनके सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया।

मगर यहाँ परिस्थिति कुछ और ही हो गयी और तुलसी के विवाह प्रस्ताव ने गणेश जी का ध्यान भंग कर दिया, जिससे भगवान गणेश रुष्ट हो गए और उन्होने पहले तो तुलसी द्वारा तप भंग करने को अशुभ बताया और जब तुलसी के प्रस्ताव की जानकारी हुई तो उन्होने स्वयं को ब्रह्मचारी बताकर उसके विवाह प्रस्ताव को एकदम से नकार दिया। विवाह आवेदन ठुकराए जाने पर देवी तुलसी ने अपना अपमान समझा और भगवान गणेश से नाराज हो क्रोध में आकर उन्हे श्राप दे दिया के उनका अब एक नहीं दो दो विवाह होगा। श्रापित गणेश जी तुलसी से इस कृत्य से बेहद ही क्रोधित हो गए और फिर उन्होने खुद भी तुलसी को श्राप दे दिया की तुंहरा विवाह किसी राक्षस से होगा।

राक्षस से विवाह की बात सुनकर ही देवी तुलसी काँप उठीं और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगने लगीं, तब श्री गणेश ने तुलसी से कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा, लेकिन फिर तुम भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण को प्रिय होने के साथ ही कलयुग में जगत के लिए जीवन और मोक्ष देने वाली होगी मगर मेरी पूजा में तुलसी चढ़ाना शुभ नहीं माना जाएगा और उस रोज से ही किसी भी शुभ कार्य को करते वक़्त गणेश जी पुजा तो की जाती है मगर उनकी पुजा में कभी भी तुलसी नहीं चढ़ाया जाता है।

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