आख़िर क्यों इस्लाम में ज़रूरी है नमाज़ अदा करना? जानें इस्लाम के 5 ज़रूरी फ़र्ज
यह दुनिया बहुत बड़ी है और यहाँ तरह-तरह के लोग रहते हैं, इस दुनिया में कई धर्मों का पालन किया जाता है। कुछ लोग ईसाई धर्म का पालन करते हैं तो कुछ लोग इस्लाम का पालन करते हैं। भारत जैसे देश में हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या ज़्यादा है। हर धर्म की अपनी एक ख़ासियत होती है और हर धर्म का अपना नियम होता है। उस धर्म में आस्था रखने वाले लोगों को उन नियमों का पालन करना ज़रूरी होता है। जिस तरह सी हिंदू धार में पूजा-पाठ का महत्व है, ठीक उसी तरह इस्लाम में भी 5 फ़र्ज हैं, जो बहुत ही ज़रूरी हैं।
इस्लाम में सबसे ज़्यादा महत्व नमाज़ को दिया गया है। हर व्यक्ति जो इस्लाम का पालन करता है, उसे पाँच वक़्त की नमाज़ पढ़नी चाहिए। यह इस्लामिक मान्यताओं में सबसे महत्वपूर्ण मानी गयी है। नमाज़ अल्लाह को राज़ी करने और उनसे माफ़ी माँगने का एक ज़रिया है। ऐसा कहा जाता है कि नमाज़ अता करते समय व्यक्ति अल्लाह के सबसे क़रीब होता है। आइए आज हम आपको बताते हैं कि इस्लाम के कौन से वो 5 फ़र्ज हैं, जिनका पालन हर मुसलमान को करना ही चाहिए।
इस्लाम के पाँच महत्वपूर्ण स्तम्भ:
*- शहादत (पहला कलमा):
यह इस्लाम का पहला स्तम्भ होता है। ‘ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूल अल्लाह।’ इसका मतलब इस दुनिया में केवल एक ही अल्लाह है, अल्लाह के सिवा कोई माबूद यानी दूसरा खुदा नहीं है और पैग़म्बर मुहम्मद उसी अल्लाह के रसूल हैं।
*- सलात (नमाज़):
नमाज़ को हर मुस्लिम के लिए ज़रूरी बताया गया है। हर मुसलमान को दिन में 5 बार नमाज़ अता करनी चाहिए। फज्र (भोर), ज़ुहर (दोपहर), अस्र (सूरज ढलने से पहले), मगरिब (सूर्यास्त के बाद) और ईशा (रात)। इन समयों में नमाज़ पढ़ी जाती है। इसके अलावा कई नफ़ील नमाजें भी होती हैं जो अलग-अलग दिनों और अलग-अलग मौक़ों पर पढ़ी जाती है। नफ़ील की नमाज़ पढ़ना फ़र्ज तो नहीं है लीकिं इसे पढ़ने वाले को बहुत सवाब मिलता है।
*- ज़कात (दान):
हर धर्म में दान के महत्व को बताया गया है। इस्लाम में भी दान यानी ज़कात बहुत ही पवित्र माना जाता है। इस्लाम के अनुसार हर व्यक्ति को अपनी कमाई का एक निश्चित हिस्सा ग़रीब व्यक्ति को देना चाहिए। रमज़ान के महीने में ज़कात देना बहुत ही ज़रूरी माना जाता है।
*- रोज़ा:
जिस तरह से हिंदुओं में अलग-अलग अवसर पर व्रत रखा जाता है, उसी तरह से इस्लाम में पूरे एक महीने के लिए व्रत रखा जाता है, जिसे रोज़ा कहा जाता है। रमज़ान के महीने में रोज़ा रखना सभी मुसलमानों का फ़र्ज माना जाता है। रोज़ा से केवल उन्ही लोगों को छूट दी गयी है, जो लोग सफ़र में हों या शारीरिक रूप से इसे करने में सक्षम नहीं हों। इस्लाम के अनुसार रमज़ान इबादत का महीना होता है। इस महीने में कोई भी मुसलमान अपने गुनाहों को माफ़ करवा सकता है।
*- हज (मक्का यात्रा):
हज इस्लाम का पाँचवा फ़र्ज माना गया है। हालाँकि इसे हर मुसलमान करने में सक्षम नहीं होता है, क्योंकि हज यात्रा पर जानें के लिए काफ़ी पैसों की ज़रूरत पड़ती है। लेकिन जो मुसलमान आर्थिक रूप से मज़बूत हो उसे अपने जीवन में एक बार हज की यात्रा ज़रूर करनी चाहिए। बता दें हज की यात्रा जिलहिज के महीने में की जाती है।