अध्यात्म

रावण की कहानी : जानिये लंकापति के जन्म, पुत्र और मौत से जुड़ी कुछ रोचक बातें

रावण की कहानी: रावण को लोग बुराई का प्रतीक मानते हैं, और उससे घृणा करते हैं। ये सच बात है कि उसमें राक्षस प्रवृत्ति कूट कूट कर भरी थी। लेकिन इसके बावजूद उसके अच्छाईयों को नकारा नहीं जा सकता है। रावण में अवगुण तो थे ही, लेकिन रावण में कई ऐसे गुण थे, जो उसे प्रकांड विद्वान बनाते हैं। रावण को वेद शास्त्र से लेकर, ज्योतिष विद्या का बहुत ही अच्छा ज्ञान था। उसे तंत्र मंत्र का भी भलि भांति ज्ञान था।और भगवान शंकर का बहुत ही बड़ा भक्त था। तो आइये जानते हैं रावण के बारे में कुछ दिलचस्प बातें ।

रावण की कहानी

रावण की कहानी: जन्म

रावण के जन्म की अलग अलग कहानियाँ हैं। विभिन्न पौराणिक कथाओं में रावण के जन्म को लेकर अलग अलग कथाएं हैं। वाल्मिकी द्वारा रचित रामायण के अनुसार हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दूसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए। पौराणिक कथाओं के अनुसार ऋृषि मुनि भगवान विष्णु के दर्शन हेतु बैकुंठ गए थे, लेकिन भगवान विष्णु के दो द्वारपाल जय और विजय ने उन्हेें अंदर प्रवेश करने से मना कर दिया।

इसी बात से नाराज होकर ऋृषि मुनि ने शाप दे दिया और जय विजय को कहा कि तुम दोनों राक्षस हो जाओ। जय विजय समेत भगवान विष्ण ने भी ऋृषि मुनियों से इस अपराध के लिए माफी मांगी। जिससे ऋृषि मुनियों ने शाप की तीव्रता कम कर दी। और कहा कि तीन जन्मों तक तो तुम्हें राक्षस योनि में पैदा होना पड़ेगा। उसके बाद तुम इस पद पर पुनः प्रतिष्ठित हो पाओगे। साथ ही ऋृषि मुनियों ने ये शर्त रख दी की भगवान विष्णु के किसी भी अवतार के  हाथों तुम्हारा मरना जरूरी होगा।

रावण की कहानी

पहले जन्म में जय विजय हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु नाम से पैदा हुए। दोनों ही बहुत ही शक्तिशाली और पराक्रमी थे। हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को उठाकर पाताललोक में पहुँचा दिया। इसके बाद भगवान विष्णु को वराह अवतार धारण कर पृथ्वी को हिरण्याक्ष का वध कर उससे मुक्त कराया। हिरण्यकशिपु को हिरण्याक्ष का वध का बहुत दुख हुआ और वह विष्णु विरोधी था। उसने विष्णुभक्त प्रहलाद को मरवाने की कोशिश की। अंत में स्वयं भगवान विष्णु ने, नृसिंह अवतार धारण कर हिरण्यकशिपु का वध किया।
रावण की कहानी

दूसरे जन्म यानि त्रेतायुग में ये दोनों भाई रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए, जिनका वध भगवान विष्णु के ही अवतारी पुरूष भगवान राम ने किया।

तीसरे जन्म यानी की द्वापर युग में इन्होने शिशुपाल और दन्तवक्र के रूप में जन्म लिया था. और इन का अंत भगवान श्री कृष्णा ने किया था

रावण के जन्म की एक और कहानी भी काफी प्रचलित है। जिसमें माना जाता है कि रावण, कैकसी और महर्षि विश्रवा का पुत्र था। कैकसी और विश्रवा के चार संतान रावण, कुंभकर्ण, शूर्पणखा और विभिषण थे। इसमें से सबसे छोटा पुत्र विभिषण धर्मात्मा था। जबकि बाकी संतान दुष्ट और क्रूर थे। क्योंकि कैकसी ने अशुभ बेला में गर्भ धारण किया था। इसलिए महर्षि विश्रवा ने ही कहा था कि तुम्हारी सन्तान दुष्ट स्वभाव वाली क्रूरकर्मा होगी। ऐसा सुनकर कैकसी चरणों में गिर पड़ी जिससे मुनि ने कहा कि तुम्हारा छोटा पुत्र धर्मात्मा पैदा होगा। यही छोटा पुत्र विभीषण था।

रावण की कहानी: जन्म स्थान

रावण का जन्म स्थान गौतम बुद्ध नगर के बिसरख गाँव में माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस गांव का नाम पहले विश्रवा ही था। विश्रवा रावण के पिता का नाम है। समय के साथ साथ इस गांव का नाम विश्रवा से बिसरख हो गया । कहा जाता है कि यहाँ पर एक शिवलिंग है जिसकी पूजा रावण और उसके पिता विश्रवा किया करते थे। ये अष्टकोण के आकार का शिवलिंग खुद ही पृथ्वी से निकलकर आया था।

रावण के पिता का नाम

रावण के पिता का नाम विश्रवा था, जो महान ऋृषि मुनि पुलस्त्य के पुत्र थे। विश्रवा का मतलब वेद ध्वनि सुनने वाला। महर्षि विश्रवा की दो पत्नियां थी। एक का नाम देववर्णिनि तो दूसरे का नाम कैकसी था। रावण कैकसी और विश्रवा का पुत्र था।

रावण के कितने पुत्र थे

रावण की तीन पत्नियां थीं। मंदोदरी, दम्यमालिनि और तीसरे का नाम कहीं उल्लेखित नहीं है। मंदोदरी से तीन पुत्र त्रिशिरा, इंद्रजीत और अक्षयकुमार। दम्यमालिनि से एक पुत्र जिसका नाम अतिकाय था। तीसरे पत्नी का नाम कहीं उल्लेखित नहीं है। माना जाता है कि तीसरे पत्नी का वध स्वयं रावण ने कर दिया था, तीसरी पत्नी से भी तीन पुत्र थे। इस प्रकार रावण के कुल सात पुत्र हुए।

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रावण की कहानी: शव

भगवान राम के हाथों रावण के वध के बाद रावण के शव को अंतिम संस्कार के लिए विभिषण को सौंपा गया था। विभिषण को सौंपने के बाद रावण का अंतिम संस्कार हुआ भी या नहीं इस बात को लेकर आज भी संशय है।

श्रीलंका में हुए रावण के वध के बाद आज भी वहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि रावण का शव धरती पर आज भी मौजूद है। बताया जाता है कि रावण का शव श्रीलंका के रागला के घने जंगलों में ममी के रूप में आज भी सुरक्षित रखा गया है। जिसकी रखवाली के बारे में कहा जाता है कि भयंकर नाग और खुंखार जानवर रावण के शव की रक्षा करते हैं।

माना जाता है कि जिस गुफा में रावण तपस्या करता था कि उस गुफा में एक ताबूत में रावण के शव को रखा गया है। उस ताबुत की लंबाई 18 फीट और चौड़ाई 5 फीट है। उस ताबूत पर एक खास किस्म का लेप लगा है, जिससे आज भी ताबूत जस का तस रखा हुआ है।

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