गणेश जी की आरती : जानिये गणपति बप्पा की आरती के महत्व क्या है?
गणेश जी की आरती : हिंदू धर्म में गणेश जी की पूजा सभी शुभ कामों के दौरान किया जाता है। इन दिनों पूरे देश में धूमधाम से बप्पा को स्थापित किया गया है। ये दिन गणेश भक्त के लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण रखते हैं। इन दिनों जगह जगह पर गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है। गणेश भक्त पूरी तरह से भक्ति के रंग में रंग जाते हैं। ग्यारह दिनों तक देश भर में धूमधाम से इस त्यौहार को मनाया जाता है। तो चलिए जानते हैं कि हमारे इस लेख में आपके लिए क्या खास है?
गणेश जी की आरती के बिना हिंदू धर्म में कोई पूजा पूरी नहीं मानी जाती है, क्योंकि तमाम देवी देवताओं से पहले गणेश जी का नाम लेना बहुत ज़रूरी है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार गणेश जी की पूजा किये बिना किसी भी पूजा का फल पूरा नहीं मिलता है, क्योंकि गणेश जी को सर्वप्रथम होने का वरदान मिला है। इसलिए जब भी आप कोई पूजा पाठ करें तो उसमें सबसे पहले गणेश जी का नाम लेना बिल्कुल न भूले। इतना ही नहीं, हिंदू धर्म में हर शुभ काम को शुरू करने से पहले गणेश जी का नाम लिया जाता है।
गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥ जय…
एक दंत दयावंत चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जय…
हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥ जय…
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय..
गणेश जी की आरती
गणपति की सेवा मंगल मेवा, सेवा से सब विघ्न टरैं।
तीन लोक के सकल देवता, द्वार खड़े नित अर्ज करैं॥
गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
रिद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विराजें, अरु आनन्द सों चमर करैं।
धूप-दीप अरू लिए आरती भक्त खड़े जयकार करैं॥
गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
गुड़ के मोदक भोग लगत हैं मूषक वाहन चढ्या सरैं।
सौम्य रूप को देख गणपति के विघ्न भाग जा दूर परैं॥
गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
भादो मास अरु शुक्ल चतुर्थी दिन दोपारा दूर परैं।
लियो जन्म गणपति प्रभु जी दुर्गा मन आनन्द भरैं॥
गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
अद्भुत बाजा बजा इन्द्र का देव बंधु सब गान करैं।
श्री शंकर के आनन्द उपज्या नाम सुन्यो सब विघ्न टरैं॥
गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
आनि विधाता बैठे आसन, इन्द्र अप्सरा नृत्य करैं।
देख वेद ब्रह्मा जी जाको विघ्न विनाशक नाम धरैं॥
गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
एकदन्त गजवदन विनायक त्रिनयन रूप अनूप धरैं।
पगथंभा सा उदर पुष्ट है देव चन्द्रमा हास्य करैं॥
गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
दे शराप श्री चन्द्रदेव को कलाहीन तत्काल करैं।
चौदह लोक में फिरें गणपति तीन लोक में राज्य करैं॥
गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
उठि प्रभात जप करैं ध्यान कोई ताके कारज सर्व सरैं।
पूजा काल आरती गावैं ताके शिर यश छत्र फिरैं॥
गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
गणपति की पूजा पहले करने से काम सभी निर्विघ्न सरैं।
सभी भक्त गणपति जी के हाथ जोड़कर स्तुति करैं॥
गणपति की सेवा मंगल मेवा…।
कोई भी पूजा बिना आरती के संपन्न नहीं होती है। दरअसल, आरती के पांच अंग होते हैं, जिनमें पहला दीपक, दूसरा शुद्ध जल या गंगाजल युक्त शंख, तीसरा स्वच्छ वस्त्र, चौथा आम या फिर पीपल के पवित्र पत्ते और पांचवा दंडवत प्रणाम करना शामिल है। आरती के लिए इन सभी चीजोंं का बड़ा महत्व होता है। इसलिए गणे जी की आरती के दौरान इन पांच अंगो को ज़रूर शामिल करना चाहिए।