लंदन से पढ़कर आयी इस लड़की ने बदल दी हज़ारों भारतियों की ज़िंदगी, अपने काम से कमा रही नाम
बिहार राज्य की महत्ता सभी लोग जानते हैं। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद भी बिहार से ही थे। बिहार के ज़ीरादेई की पहचान अबतक केवल उन्ही के नाम से होती थी, लेकिन आजकल इसे एक नई पहचान देने का काम एक लड़की कर रही है। आपकी जानकारी के लिए बता दें इस लड़की का नाम सेतिका सिंह है। आपको जानकर हैरानी होगी कि सेतिका सिंह लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स से पढ़ने के बाद भी अपने बेहतर भविष्य को ठुकराते हुए आपने गाँव का भविष्य सँवारने की राह अपनाई।
शुरुआती पढ़ाई की है पटना से:
बता दें सेतिका से अपने गाँव की आठ एकड़ ज़मीन पर परिवर्तन कैंपस खोला और यहाँ वह महिलाओं एवं पुरुषों को व्यक्तित्व विकास का गुर सिखाकर रोज़गार परक बना रही हैं। इस कैंपस में आस-पास के गाँव के बेरोज़गार लोगों को निशुल्क व्यक्तित्व निखारने के गुर सिखाए जाते हैं। यही कारण है कि अब तक इस संस्था से प्रखंडों के 36 गाँवों के हज़ारों महिला और पुरुषों का जीवन बेहतर हुआ है और वो रोज़गार से जुड़े हैं। सेतिका सिंह मुख्य रूप से ज़ीरादेई प्रखंड के नरेंद्रपर की रहने वाली हैं। इनकी प्रारम्भिक पढ़ाई पटना में हुई है।
दो साल का लम्बा समय लगा कैंपस सुसज्जित करने में:
इसके बाद इन्होंने विदेश में भी पढ़ाई की। विदेश में पढ़ने के बाद भी इन्होंने अपने गाँव को ही अपनी कर्मस्थली के रूप में चुना। इस समय सेतिका सिंह पटना में रहती हैं और समय-समय पर आती रहती हैं। परिवर्तन कैंपस के प्रबंधक के रूप में काम कर रहे, आलोक कुमार ने बताया कि इस साँठ की स्थापना 2009 में हुई थी। लेकिन सभी व्यवस्थाओं को सुसज्जित करने में दो साल का समय लग गया। इस कैंपस में स्मार्ट क्लासेज, कम्प्यूटर रूम, सिलाई-कढ़ाई सहित स्कूल की व्यवस्था है। यह कैंपस आठ एकड़ में फैला हुआ है।
काम करती हैं हज़ारों महिला-पुरुष:
इस कैंपस में 36 गाँवों की हज़ारों महिलाएँ और पुरुष काम करते हैं। महिलाएँ यहाँ सिलाई-कढ़ाई, स्कूल ड्रेस तैयार करना आदि काम करती हैं। इनका काम दो शिफ़्ट में चलता है। पहली शिफ़्ट सुबह 6 से 1 बजे तक और दूसरी शिफ़्ट 1 से 6 बजे तक। परिवर्तन कैंपस के प्रशिक्षक जिले के 22 सरकारी स्कूलों में भी जाकर अपना योगदान देते हैं। यहाँ पर वो बच्चों को पर्सनालिटी डिवेलप्मेंट की क्लास देते हैं। परिवर्तन का मुख्य उद्देश्य खादी को बढ़ावा देना भी है। इसी वजह से यहाँ खादी के कपड़ों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। यहाँ खादी के कपड़ों की बुनाई भी की जाती है।
किसानों को सिखाए जाते हैं किसानी के गुर:
आपको बता दें परिवर्तन कैंपस में एक पाठशाला भी बनाई गयी है। इस पाठशाला में खेती से जुड़े हुए किसानों को खेती के नए क़िस्मों के बारे में बताया जाता है। इसका प्रयोग करके किसान अपने खेतों में बेहतर काम करके बेहतर उत्पादन कर आर्थिक लाभ कमा सकें। जल्दी ही परिवर्तन में काम करने वाले लोगों द्वारा सेरेमिक के बर्तन भी तैयार किए जाएँगे और उन्हें बाज़ार में बेचा जाएगा। ऐसा इसलिए कि मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों को भी रोज़गार मिल सके। हालाँकि अभी इसका प्लान तैयार किया जा रहा है।