कभी लाल बत्ती वाली गाड़ी में घूमती थी ये महिला, आज बकरी चराकर कर रही है अपना गुजारा
जिंदगी कब कैसी करवट लेती है ये कभी कोई नहीं जान पाता, फिर वो जितने हाथ-पैर मार ले होता वही है जो ऊपरवाले ने किस्मत में लिख दिया हो. जब किस्मत अच्छी होती है तो छोटे से छोटा इंसान बड़ी बुलंदियों को छू सकता है और अगर किस्मत अच्छी ना हो तो वे जितना अच्छा काम कर ले उनका भला नहीं हो पाता. कुछ ऐसा ही हुआ गांव में रहने वाली एक महिला के साथ, जिसके साथ कभी एक काफिला चलता था आज वो बिल्कुल अकेली और बेसहारा है. कभी लाल बत्ती वाली गाड़ी में घूमती थी ये महिला, मगर आज उस महिला को कोई भी पूछने वाला ही नहीं है. उसके बच्चे पढ़ाई नहीं बल्कि मजदूरी में अपनी मां का हाथ बंटाते हैं. मगर इतनी उपलब्धियां पाने के बाद उस महिला का ये हाल ऐसा कैसे हो गया, चलिए बताते हैं आपको इस पूरे आर्टिकल में.
कभी लाल बत्ती वाली गाड़ी में घूमती थी ये महिला
किस्मत सच में बहुत ही अजीब खेल खेलती है इंसानों के साथ, वो किसी को भी नहीं छोड़ती. अगर बुरा करने में आ जाए तो बहुत कुछ कर जाती है और अगर सही करना चाहे तो रंक भी राजा बन सकता है. उदाहरण के तौर पर आप इस महिला को ही ले लीजिए. ये कहानी मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले की बदरवास में रहने वाली जूली आदिवासी की है जो कभी जिला पंचायत अध्यक्ष हुआ करती थीं. तस्वीरों में दिखाई गईं जूली आज बकरी चराकर और मजदूरी करके अपना और अपने बच्चों का पेट भर रही हैं. मगर एक समय था जब इनका रुतबा ऐसा था जब बड़े-बड़े अधिकारी इन्हें मैडम कहकर बुलाते थे, और सभी का इनके सामने सिर झुका ही रहता था. इनके बच्चे भी अच्छे स्कूल में पढ़ते और अच्छे से जीवन यापन कर रहे थे लेकिन बाद में समय ने ऐसी करवट ली कि सबकुछ बदल गया. इनका रुतबा ऐसा हो गया कि इनका प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ उठाने के लिए जूली जब दफ्तर पहुंची तो वहां से इन्हें भगा दिया गया.
जब मीडिया ने उन अफसरों से ऐसे बर्ताव की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि जूली के पास सरकारी मकान है इसलिए उन्हें इस योजना का लाभ नहीं मिल सकता. जबकि जूली के अनुसार एक समय था जब उनके पास सरकारी आवास हुआ करता था उनकी एक कार के साथ कारों का पूरा काफिला निकलता था लेकिन अब उनके पास कोई सरकारी आवास नहीं है. सब उनसे छीन लिया गया आज वे एक छोटे से घर में अपने बच्चों और एक बकरी के साथ जी रही हैं और बकरी का दूध बेचने के साथ-साथ मजदूरी भी कर रही हैं.
जूली के साथ ऐसा कैसे हो गया इस बारे में जूली ने कुछ नहीं बताया लेकिन ये बात तो तय है कि उनके साथ कुछ गलत हुआ ही होगा. ऐसे में क्या सरकार को उनका साथ नहीं देना चाहिए ? उनकी इस तकलीफ को समझते हुए कम से कम उन्हें रहने के लिए एक पक्का मकान और दो वक्त की रोटी के लिए जिला पंचायत अध्यक्ष के तौर पर ही पेंशन भी मिलनी चाहिए. अगर ऐसा हो जाए तो जूली आदिवासी का जीवन आसान हो जाए और उसके बच्चे भी स्कूल जाने के लिए सक्षम हो जाएं.