हिंदू धर्म के मैनेजमेंट गुरु हैं भगवान श्रीकृष्ण, उनकी 5 बातें बदल सकती हैं किसी का भी जीवन
3 सितम्बर को पूरे देश में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूरे धूम-धाम से मनायी जा रही है। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण को हिंदू धर्म में मैनेजमेंट गुरु के रूप में भी जाना जाता है। इन्होंने जीवनोपयोगी कई ऐसी बातें बताई हैं, जिसका पालन करने से किसी भी व्यक्ति का जीवन हमेशा के लिए बदल सकता है। उस समय बताई गयी उनकी बातें आज के समय में भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। श्रीकृष्ण का व्यवहारिक ज्ञान आज भी सफलता की गारंटी देता है।
महाभारत के सबसे बड़े योद्धा अर्जुन ने अपने गुरु से तो शिक्षा ली ही, इसके अलावा अपने जीवन के अनुभवों से भी बहुत कुछ सीखते रहे। आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौक़े पर हम आपको श्रीकृष्ण की 10 ऐसी बातों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका पालन करने पर आपको जीवन में कभी भी असफलता का मुँह नहीं देखना पड़ेगा।
गीता की पाँच बातें जो बदल सकती हैं आपका जीवन:
*- कर्म:
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्।।अध्याय 8, श्लोक 7
अर्थ:
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, अर्जुन तुम मेरा चिंतन करो, लेकिन इसके साथ ही तुम अपना कर्म भी करते रहो। श्रीकृष्ण अपना काम छोड़कर हर समय भगवान का नाम लेने के लिए नहीं कहते हैं। वह कभी भी किसी अव्यवहारिक बात की सलाह किसी को नहीं देते हैं। गीता में लिखा है कि बिना कर्म के जीवन बना नहीं रह सकता है। कर्म से जो मनुष्य को सिद्धि प्राप्त हो सकती है, वह सन्यास से भी नहीं मिलता है।
*- आजीविका:
सदृशं चेष्टते स्वस्या: प्रकृतेर्ज्ञानवानपि।
प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रह: किं करिष्यति।। अध्याय 3, श्लोक 33
अर्थ:
हर व्यक्ति को अपने स्वभाव के अनुसार ही अपना काम और आजीविका का चुनाव करना चाहिए। उसे वही काम करना चाहिए, जिसमें उसे ख़ुशी मिलती है। व्यक्ति को अपनी प्रकृति और क्षमता के अनुसार काम करना चाहिए। जिस चीज़ की ज़रूरत हो उसके अनुसार काम करें। गीता में लिखा है कि जो काम अभी आपके हाथ में है, उससे बेहतर और कुछ नहीं है। उसे पूरे मन से करना चाहिए।
*- शिक्षा:
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिन:।। अध्याय 4, श्लोक 34
अर्थ:
शिक्षा और ज्ञान वही व्यक्ति प्राप्त करता है, जो इसके लिए जिज्ञासु रहता है। सम्मान और विनयशीलता से ही सवाल पूछने पर ज्ञान की प्राप्ति होती है। जिन लोगों के पास जानकारी है वो उसी समय कोई बात बताएँगे, जब आप उनसे सवाल करेंगे। किताबों में जो पढ़ा है या जो कहीं से सुना है, उसे तर्क की कसौटी पर तौलना बहुत ज़रूरी होता है। जो शास्त्रों में लिखा है, जो गुरु से सीखा है और जो अनुभव से प्राप्त होता है, उन सभी ज्ञान के सही तालमेल से ही ज्ञान की प्राप्ति होती है।
*- सेहत:
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा।। अध्याय 6, श्लोक 17
अर्थ:
जो व्यक्ति सही मात्रा में भोजन करने वाला होता है और जो सही समय पर नींद लेने वाला होता है और जिसकी दिनचर्या नियमित होती है, उस व्यक्ति में योग यानी अनुशासन आ जाता है। ऐसे लोग जीवन के दुखों और रोगों से दूर रहते हैं। सात्विक भोजन सेहत के लिए बेहतर होता है। इससे जीवन, प्राणशक्ति, बल, आनंद और उल्लास बढ़ता है।
*- ख़ुशी:
मास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु: खदा:।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।। अध्याय2, श्लोक 14
अर्थ:
जीवन में सुख-दुःख मौसम की तरह होते है हैं। जिस तरह से सर्दी-गर्मी आती है और चली जाती है, उसी तरह दुःख-सुख भी है। इसे सहन करना सीखना चाहिए। गीता में लिखा है, जिसने बुरी इच्छाओं और लालच को छोड़ दिया उसे शांति मिलती है। कोई भी मनुष्य इच्छाओं से मुक्त नहीं हो सकता है। पर व्यक्ति को अपनी इच्छा की गुणवत्ता बदलनी होती है।