क्या आप राष्ट्रपति के अंगरक्षकों के बारे में जानते हैं, जानिए कुछ हैरान करने वाली बातें
नई दिल्ली: अगर कभी आप 26 जनवरी की परेड देखने राजपथ पर गए होंगे तो आपने वहाँ घोड़े पर सजे-धजे कुछ सिपाहियों को देखा होगा। दरअसल वो कोई आम सिपाही नहीं होते हैं, वो राष्ट्रपति के अंगरक्षक होते हैं। इनसे जुड़ी कुछ ऐसी बातें हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। आप भी इनके बारे में बहुत कुछ जानना चाहते होंगे, लेकिन आपको इसका जवाब नहीं मिला होगा। अगर इनसे जुड़े सवालों का जवाब अब तक आपको नहीं मिला है तो आज हम आपको राष्ट्रपति के अंगरक्षकों के बारे में सबकुछ बताने जा रहे हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि राष्ट्रपति के अंगरक्षक यानी प्रेसिडेंट बॉडीगार्ड या पीबीजी कहा जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि ये लगभग 250 साल पुराने हैं। जब 1773 में भारत का वायसराय वारेन हेस्टिंग को बनाया गया था, उसी समय उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए इस टुकड़ी का गठन किया था। उस समय वारेन हेस्टिंग के लम्बे-चौड़े, मज़बूत लोगों की 50 जवानों की टुकड़ी बनायी थी। 1947 में आज़ादी मिलने के बाद इस देश से अंग्रेज़ चले गए, लेकिन 1773 से बनी हुई यह टुकड़ी आज तक काम करती है। पहले वायसराय की सुरक्षा करने वाले अब देश के राष्ट्रपति के अंगरक्षक के तौर पर काम करते हैं।
राष्ट्रपति के अंगरक्षकों का काफ़ी लम्बा इतिहास है। इसमें विभिन्न टुकड़ियों से जवानों को भर्ती किया जाता है। इस समय इस टुकड़ी में जो भी जवान हैं, उन्हें विशेष प्रशिक्षण मिला हुआ है। यह हर क्षेत्र में माहिर होते हैं। इनकी सबसे ख़ास बात होती है, इनके घोड़े। आपको बता दें जर्मनी की ख़ास क़िस्म के केवल इन्ही घोड़ों को लम्बे बाल रखने की इजाज़त है। जबकि सेना में जो अन्य घोड़े रखे गए हैं, उनके बालों को समय-समय पर काट दिया जाता है। 500 किलो वज़न के ये घोड़े लगभग 50 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से दौड़ने में माहिर होते हैं। अंगरक्षकों के दिन की शुरुआत ही इन घोड़ों के साथ होती है।
ड्रिल के तौर पर ये जवान घोड़ों का दमख़म आज़माते हैं। ये जवान घोड़ों के साथ इतने ट्रेंड होते हैं कि 50 किमी प्रतिघंटे की रफ़्तार में भी बिना लगाम थामे आसानी से घुड़सवारी करते हैं। राष्ट्रपति भवव में आने वाले हर गणमान्य के लिए इनकी तैयारियाँ भी होती है। इनके लिए वो दिन सबसे ख़ास होता है, जिस दिन राष्ट्रपति इन्हें अपना ध्वज सौंपते हैं। 1923 में ब्रिटिश वायसराय ने अपने अंगरक्षकों को दो सिल्वर ट्रम्पेट और एक बैनर सौंपा था। इसके बाद से ही यह प्रथा जारी है। आज़ाद भारत में भी हर नया राष्ट्रपति अंगरक्षक की टुकड़ी के प्रमुख को अपना ट्रम्पेट और बैनर सौंपता है। यह समारोह भी काफ़ी भव्य होता है। इस दौरान टुकड़ी अपना बेहतरीन प्रदर्शन भी करती है।
शायद आप यह जानकर हैरान हो जाएँ कि इस टुकड़ी में कुछ ऐसे भी सदस्य हैं, जिनकी तीन पीढ़ियाँ इसमें रह चुकी हैं। कई लोग तो देश के कई राष्ट्र्पतियों को अपनी सेवाएँ दे चुके हैं। यह टुकड़ी हर समय राष्ट्रपति भवन में तैनात रहती है। भारत का राष्ट्रपति भवन लगभग 2 लाख स्क्वायर फ़ीट में फैला हुआ है। यह दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत अधिकारिक इमारतों में से एक है। राष्ट्रपति का अंगरक्षक बनने के लिए लोग लालायित रहते हैं। इसमें जानें के लिए जवान का 6 फ़ीट लम्बाई होना अनिवार्य है। इस टुकड़ी का ड्रेस भी काफ़ी शानदार होता है। इन जवानों को कहीं भी तैनात किया जा सकता है। अंगरक्षक बनने के लिए किसी भी नए जवान को दो साल के कठिन प्रशिक्षण से गुज़रना पड़ता है। इसके बाद वह अपने तलवार का प्रदर्शन करता है, जिसको छूकर उसका कमांडेंट उसे अंगरक्षक में भर्ती करता है।