पूर्व पीएम अटल बिहारी के निधन से शोक में डूबा देश, जानिए कैसा रहा इनका राजनीतिक सफर
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का निधन हो गया, उन्हें दिल्ली के एम्स में लाइफ सपोर्ट सिस्टम में रखा गया था। जहां उनकी हालत नाजुक बताई जा रही थी, लेकिन बुधवार देर शाम उन्होंने आखिरी सांस ली। 93 वर्षीय अटलजी को बीती रात से लाइफ सपोर्ट सिस्टम में रखा गया था। अटल बिहारी बाजपेयी एक महान शख्सियत के रूप में जाने जाते हैं। एक राजनेता होने के साथ साथ वक्ता और कवि भी थे। अटलजी भारतीय राजनीति के युगपुरूष हैं। उनकी महान शख्सियत के कारण ही उन्हें भारत सरकार ने कुछ ही दिन पहले भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न के साथ नवाजा था। तो चलिए जानते हैं अटलजी के व्यक्तित्व और उनके राजनीतिक जीवन के बारे में।
अटल बिहारी बाजपेयी का राजनीतिक सफर-
अटल बिहारी बाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर सन् 1925 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। स्नातक स्तर तक की शिक्षा ग्वालियर में ही हुुई इसके बाद राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर की परीक्षा कानपुर के डी.ए.वी. कॉलेज से पास की और यहीं से वे आरएसएस के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में संघ से जुड़े रहे। इसके बाद राजनीतिक सफर जनसंघ पार्टी के साथ शुरू हुई और पार्टी के अध्यक्ष भी चुने गए। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के जरिए उन्होंने भारतीय राजनीति में कदम रखा था।
1955 में उन्होंने पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था परंतु इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली। फिर उन्होंने जनसंघ की ओर से बलरामपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी बने और 1959 में लोकसभा पहुँचे। प्रधानमंत्री बनने से पहले से मोरारजी देसाई की सरकार में वे विदेश मंत्री थे। 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की और अध्यक्ष का पद भी संभाला। भारत के दो बार प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी बाजपेयी का पहला कार्यकाल 16 मई 1996 से 1 जून 1996 तक रहा जबकि 19 मार्च 1998 से 22 मई 2004 तक रहा। बाजपेयी पहले गैर कांग्रसी नेता थे जिन्होंने गैर कांग्रेस प्रधानमंत्री के तौर पर अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था। अटल बिहारी बाजपेयी को भाजपा का उदारवादी चेहरा भी बताया जाता है। उनके नाम 12 बार सांसद बनने का रिकॉर्ड भी है।
अटलजी एक कवि-
अटल बिहारी बाजपेयी देश के एक बड़े राजनेता तो थे ही इसके अलावा वे एक कवि के रूप में भी विख्यात हैं। और उनकी कविताएँ जैसे मेरी इक्वावयन कविताएँ अटलजी की प्रसिद्ध काव्यरचना है। इसके अलावा उनकी कविता मौत से ठन गई और दूध में दरार पड़ गई जैसी कविताएँ जन जन में आज भी याद किया जाता है।
सन 2009 से सक्रिय राजनीति से दूर – सन् 2009 में डिमेंशिया नामक गंभीर बीमारी के चलते वे चल फिर नहीं पाते और 2009 से ही व्हीलचेयर पर हैं।