पूरे सावन महीने में इस जगह पर रहते हैं भगवान शिव, इस वजह से उन्होंने लिए था यह फ़ैसला
यह बात सभी लोग जानते हैं कि 28 जुलाई से सावन महीने की शुरुआत हो चुकी है। सावन महीने का हिंदू धर्म में बहुत ज़्यादा महत्व है। भगवान शिव को इस महीने से ख़ास लगाव है। शिवभक्तों को सावन के महीने का पूरे साल इंतज़ार रहता है। ऐसा माना जाता है कि सावन के महीने में भगवान शिव को बहुत आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है, इसी वजह से उनके भक्त उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। भगवान शिव को इस महीने में केवल जल चढ़ाकर भी प्रसन्न किया जा सकता है।
जाना जाता है दक्षेश्वर महादेव मंदिर के नाम से:
आज सावन के इस पवित्र महीने में हम आपको भगवान शिव से जुड़ी एक ऐसी बात बताने जा रहे हैं, जो शायद ही आप जानते होंगे। क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव सावन में कहाँ पर रहते हैं? अगर नहीं तो हम आपको बताते हैं कि भगवान शिव सावन में पूरे महीने कहीं और नहीं बल्कि अपने ससुराल में रहते हैं। जी हाँ आपको सुनकर भले ही अजीब लग रहा हो लेकिन यह सच्चाई है। हरिद्वार के नज़दीक ही कनखल नाम की एक जगह है। यहाँ एक मंदिर है जिसे दक्षेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव सावन के पूरे महीने इसी मंदिर में रहते हैं। यह मंदिर माता सती के पिता दक्ष प्रजापति के नाम पर है, लेकिन यह भगवान शिव का मंदिर है। आपने भी माता सती के भस्म होने की कथा सुनी होगी। सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के ख़िलाफ़ जाकर भगवान शिव से शादी की थी। इस बात से नाराज़ होकर जब दक्ष विराट यज्ञ करवा रहे थे तो सती और शिव को निमंत्रण नहीं भेजा था। भगवान शिव माता पार्वती को मना रह रहे थे लेकिन वो ख़ुद को अपने पिता के घर जाने से रोक नहीं पायीं।
माफ़ी माँगने पर लगा दिया था बकरे का सिर:
शिव के मना करने के बाद भी वो अपने पिता के घर गयीं। बिना निमंत्रण के वहाँ पहुँची सती को देखकर दक्ष ने भगवान शिव का काफ़ी अपमान किया। इससे नाराज़ होकर सती ने ख़ुद को यज्ञ की अग्नि में ही भस्म कर लिया। जब इसके बारे में भगवान शिव को पता चला तो वह ग़ुस्से में गए और दक्ष का सिर काट दिया लेकिन बाद में माफ़ी माँगने पर उनका सिर पुनः लगा दिया लेकिन उन्होंने बकरे का सिर लगाया। मान्यता है कि सावन में पूरे एक महीने के लिए भगवान शिव कनखल के इसी मंदिर में निवास करते हैं।
आज भी अपने स्थान पर मौजूद है यज्ञ कुंड:
आपको जानकर हैरानी होगी कि मंदिर में यज्ञ कुंड आज भी अपनी ही जगह पर स्थित है। इस यज्ञ कुंड को सती कुंड के नाम से जाना जाता है। मंदिर के पास ही गंगा किनारे दक्षा घाट है। यही पर श्रद्धालु स्नान करके मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं। सावन के महीने में इस मंदिर में हज़ारों की संख्या में भक्त भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुँचते हैं। यहाँ पहुँचने वाले हर भक्त की मनोकामना भगवान शिव अवश्य पूरी करते हैं। इसी वजह से यह मंदिर भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में रहने वाले हिंदुओं के लिए भी बहुत ख़ास है।