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महर्षि वेदव्यास के जन्मदिन पर मनाया जाता है गुरु पूर्णिमा, जानें कैसे पैदा हुए थे महर्षि व्यास

अषाढ़ महीने की शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 3 जुलाई यानी आज मनाया जा रहा है। आज के दिन भारत में यह परम्परा है कि छात्र अपने गुरु की पूजा करते हैं और उन्हें उपहार देते हैं। भारतीय संस्कृति में सदियों से गुरु को देवताओं से भी बड़ा स्थान दिया गया है। गुरु ही होता है जो ईश्वर का ज्ञान करवाता है। इसी वजह से गुरु को देवताओं से भी बड़ा माना जाता है। गुरुपूर्णिमा के इस विशेष अवसर पर आज हम आपको महाभारत के रचनाकार महर्षि वेदव्यास के बारे में बताने जा रहे हैं। बहुत काम लोग उनके जन्म के बारे में जानते हैं।

वेदव्यास को माना जाता है पूरे मानव जाती का गुरु:

आपकी जानकारी के लिए बता दें महर्षि वेदव्यास का जन्म लगभग 3000 ईसा पूर्व अषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को हुआ था। उनके सम्मान ने ही हर साल अषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के तौर पर मनाय जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि वेदव्यास को पूरे मानव जाति के गुरु के रूप में माना जाता है। कई जगह पर लोग वेदव्यास जी के चित्र की पूजा करते हैं और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। कई जगहों पर लोग ब्रह्मलीन संतों की मूर्ति या समाधी की भी पूजा करते हैं।

ऋषि पराशर हो गए थे सत्यवती को देखकर मोहित:

 

हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बाद महर्षि पराशर घूमने के लिए निकले। घूमते समय उनकी नज़र एक महिला के ऊपर पड़ी। महिला का नाम सत्यवती था। सत्यवती एक मछुवारे की बेटी थी। सत्यवती देखने में बहुत सुंदर और आकर्षक थी, लेकिन उसके शरीर से मछली की बू आती थी। इसी वजह से सत्यवती को मतस्यगंधा भी कह जाता था। सत्यवती को देखते ही ऋषि पराशर उसपर मोहित हो गए और उसके साथ प्यार करने की इच्छा ज़ाहिर की। ऋषि की बात सुनकर सत्यवती ने कहा कि यह पाप है। में कैसे आपके साथ ऐसा नैतिक काम कैसे कर सकती हूँ।

पैदा होने वाली संतान होगी महा ज्ञानी:

 

सत्यवती ने कहा कि इस तरह से होने वाली संतान को में जन्म नहीं दे सकती हूँ। लेकिन पराशर ऋषि सत्यवती की ख़ूबसूरती देखकर मनमोहित हो चुके थे, इसलिए उन्होंने सत्यवती से विनती की। ऋषि को विनती करता देख सत्यवती ने उनके सामने तीन शर्तें रखी। सत्यवती की पहली शर्त यह थी कि उन्हें काम क्रिणा करते समय कोई देख ना पाए, दूसरी शर्त यह रखी कि उनकी कौमार्यता भंग ना हो और तीसरी शर्त थी की उनके शरीर से आने वाली मछली की बू फूलों की ख़ुशबू में बदल जाए। ऋषि ने उन्हें आश्वासन दिया कि ना ही उन्हें कोई देखेगा, ना ही उनकी कौमार्यता भंग होगी और पैदा होने वाली संतान भी महा ज्ञानी होगी।

महाभारत की घटनाओं के साक्षी रहे हैं वेदव्यास:

बाद में सत्यवती ने एक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का नाम कृष्णद्वैपायन रखा गया। यही बाद में चलकर वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। महाभारत काल में अपनी माँ के कहने पर इन्होंने विचित्रवीर्य की रानियों के साथ दासी के साथ नियोग किया। इसके बाद पाण्डु, धृतराष्ट्र और विदुर का जन्म हुआ। वेदों के विस्तार की वाज से ही इन्हें वेदव्यास के नाम से जाना जाता है। वेदों के विस्तार के साथ ही महर्षि वेदव्यास ने 18 महापुराणों और ब्रह्मसूत्र का भी प्रणयन किया। महाभारत के समय होने वाली घटनाओं के महर्षि वेदव्यास साक्षी रह चुके हैं।

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