इसरो एक साथ 82 सैटेलाइट लॉन्च कर पूरी दुनियाँ को चौकाने की तैयारी में, बनेगा नया वर्ल्ड रिकॉर्ड!
इसरो अगले साल पूरी दुनियाँ को चौकाने की तैयारी में लगा हुआ है। इसरो 15 जनवरी 2017 को एकसाथ 82 सैटेलाइट लॉन्च करेगा। इन सैटेलाईटों में से 60 सैटेलाइट अकेले अमेरिका के होंगे। यदि यह मिशन सफल हुआ तो भारत पूरी दुनियाँ में एक साथ सबसे ज्यादा सैटेलाइट लॉन्च करने वाला पहला देश बन जाएगा। अभी इस सूचि में भारत का स्थान तीसरा है। इससे पहले इसरो (भारत) एकसाथ 20 सैटेलाइट लॉन्च कर चुका है।
मार्स मिशन के प्रोजेक्ट डायरेक्टर एस. अरुणन ने एक अंग्रेजी अखबार को बताया कि अगले साल भारत विश्व रिकॉर्ड बना सकता है। इसरो एकसाथ 82 सैटेलाइट लॉन्च करने की तैयारी में लगा हुआ है। इनमें 60 सैटेलाइट अमेरिका के, 20 सैटेलाइट यूरोप के और दो यूनाइटेड किंगडम के होंगे। सभी सैटेलाइटों को पीएसएलवी रॉकेट के सबसे नए और एडवांस वर्जन पीएसएलबी-एक्सएल के जरिये लॉन्च किया जाएगा।
रूस ने एकसाथ सबसे ज्यादा सैटेलाइट लॉन्च करने का विश्व रिकॉर्ड अपने नाम किया हुआ है। रूस ने 19 जून 2014 को 37 सैटेलाइट लॉन्च करके यह विश्व रिकॉर्ड बनाया था। इसके बाद दूसरा स्थान अमेरिका का है। अमेरिका ने 19 नवंबर 2013 को एकसाथ 29 सैटेलाइट लॉन्च किए थे। इस सूचि में भारत का स्थान तीसरे नंबर पर है। इसरो ने इसी साल 22 जून को एकसाथ 20 सैटेलाइट लॉन्च कर तीसरा स्थान प्राप्त किया था। इसरो ने जो सैटेलाइट लॉन्च किये थे, उसमे 13 सैटेलाइट अमेरिका के थे।
यदि जनवरी 2017 में इसरो का 82 सैटेलाइट लॉन्चिंग का मिशन सफल रहा तो ढाई साल में इसरो की यह दूसरी सबसे बड़ी सफलता होगी। 24 सितंबर 2014 को इसरो ने पहले प्रयास में ही मंगल की ऑर्बिट में मार्स मंगलयान को भेजा था। यह भी अपने आप में एक विश्व रिकॉर्ड था। 1993 से पीएसएलवी से अब तक 37 बार सैटेलाइट लॉन्चिंग की जा चुकी हैं। अब यह पूरी दुनियाँ का सबसे ज्यादा भरोसेमंद सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल बन गया है। इसके जरिये कई भारतीय और 35 विदेशी सैटेलाइट्स को स्पेस में पहुँचाया गया हैं। इसी से 2014 में मार्स मिशन में मंगलयान और 2008 में चंद्रयान-1 को लॉन्च किया गया था।
ग्लोबल सैटेलाइट बाजार में भारत की हिस्सेदारी दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। वर्तमान में इस इंडस्ट्री की कीमत 13 लाख करोड़ रुपए है। जिसमें अमेरिका की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा 41 फीसदी की है, जबकि भारत की हिस्सेदारी अभी भी बहुत कम है। भारत की हिस्सेदारी वर्तमान समय में 4 फीसदी से भी कम है।