राजनीति

स्कूल में केवल 1 विद्यार्थी, मगर फिर भी ये टीचर जाता है 130 किलोमीटर की दूरी तय करके पढ़ाने!

आज के समय में हम लोग सिर्फ सवाल उठाना जानते है पर क्या हम लोग कभी कारण की तरफ नजर डाली है? नहीं लोग हमेशा ये समझते आ रहे है कि एक शिक्षक की नौकरी बहुत ही आराम की नौकरी है परन्तु आज हम आपको एक ऐसे शिक्षक के बारे में बताएंगे जिसके बारे में आप जानकर हैरान रह जाओगे। आज के समय में जहां शिक्षा को व्यापार समझ लिया है वहीं एक ऐसे शिक्षक भी मौजूद है जो निस्वार्थ भाव से सेवा के लिए तत्पर है। शिक्षक ही आपको दुनिया के साथ खड़ा होना सिखाता है। बचपन से लेकर जब तक आप पढ़ाई करते हैं तब तक ये टीचर आपका दिशा निर्देश करता है. आजकल के ज़माने में अच्छे टीचर की कमी हो गई है. ऐसा लोग कहते हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसा उदाहरण देंगे, जो आपकी सोच ही बदल देगा ये शक्स है रजनीकांत मेडे जो कि पेशे से शिक्षक है पर इनका दर्जा भगवान से कम नहीं।

पेशे की खातिर महज़ एक बच्चे को पढ़ाने के लिए रजनीकांत अपनी मोटर साइकिल से रोजाना 130 किलो मीटर का सफ़र तय कर पढ़ाने आते हैं। सफर के दौरान रजनीकांत को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। बावजूद इसके रजनीकांत ने हार नहीं मानी और पिछले 8 साल से उनका सफर लगातार जारी है।एक खबर केमुताबिक़ रजनीकांत मेंढे नागपुर के रहने वाले हैं और पेशे से एक सरकारी शिक्षक हैं। साल 2010 में उनकी पोस्टिंग पुणे से करीब 65 किलोमीटर दूर भोर के चंदर गांव के प्राथमिक विद्यालय में हुई थी। इस विद्यालय में मात्र 1 ही विद्यार्थी है और इस 1 बच्चे को पढ़ने के लिए रजनीकांत सरी हदे पार कर उस बच्चे को शिक्षा प्रदान करने आते है।

उनके स्कूल तक का सफर काफी चुनौतियों से भरा है रास्ते में उनके काफी रुकावटें भी आती हैं पर वो इन सबको पार कर जाते है और अपना धर्म पूरा करने की ओर अग्रसर होते है। इस गांव तक पहुंचने के लिए ऊंची पहाड़ी और धूल मिट्टी से भरे रास्तों से गुजरना पड़ता है. इस सफर को तय करने के लिए रजनीकांत मेंढे बाइक का सहारा लेते हैं. हर दिन किसी न किसी तरह से रजनीकांत मेंढे वहां गाँव के स्कूल में पहुंचते हैं।

उस गाव में पढ़ाई को लेकर कोई जागरूकता नहीं है। गव में और भी बच्चे है पर सिर्फ युवराज ही स्कूल तक पहुंच पाता है। रजनीकांत का कहना है कि कभी कभी युवराज को भी पकड़ कर लेना पड़ता है। वो बचने के लिए कभी कभी पेड़ से तो कभी घर में छुप जाता है। ये गांव इतना पिछड़ा हुआ है कि यह सरकार की कोई भी नीति नहीं पहुंच पाती और लोगो में जागरूकता की भी कमी है।

क्या फायदा है ऐसी किसी नीति का जो बच्चो तक शिक्षा पहुंचा भी नहीं पाए और बच्चो तक शिक्षा की महत्वता ना पहुंचा सके। इन सब राजनीति के चलते अगर मासूमों के जीवन के साथ खिलवाड़ हो रहा है तो इससे बुरी बात क्या है। रजनीकांत अपने जीवन में जो काम कर रहे है वो शायद ही किसी की नजर में है। पर जो वो कर रहे है इससे उनका दर्जा भगवान से कम नहीं है उस गाव के लिए।

रजनीकांत का कहना है कि सिर्फ कागज पर प्लान बनने से कुछ नहीं होगा हमें कुछ ऐसा करना होगा जो तुरंत ही बदलाव लेकर आए। आज के समय में जहां लोग मुफ्त की रोटी तोड़ने में यकीन रखते। हवाही रजनीकांत पहाड़ों और धूल मिट्टी से गुजरकर उस एक बच्चे को पढ़ने जाते है। रजनीकांत भले ही मीडिया पर ना छाए हो पर हमारी पूरी कोशिश है कि उनके काम को लोगो के नजर में लाया जाए।

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